
तआर्रुफ़
“अदम की आवाज़” एक एहतेजाजी ग़ज़ल है जो मौलाना अदम गौंडवी की बाग़ी रूह और उनके सच्चे लफ़्ज़ों को सलाम पेश करती है। इस ग़ज़ल में शायर ने अदम के तंज़, तल्ख़ी और तहज़ीब को ग़ज़ल की शक्ल में ढाला है। हर शेर एक ऐसे समाज की तस्वीर पेश करता है जहाँ भूख, मुफ़लिसी, सियासी गिरफ़्त और मज़हबी तिजारत आम है। अदम साहब ने अपनी शायरी से जो बेबाकी और अदब की ज़ुबान दी, उसी रूह को यह ग़ज़ल ज़िंदा करती है। यह न सिर्फ़ अदम को ख़िराज है, बल्कि उस हर शायर की आवाज़ है जो क़लम को बिकने नहीं देता। मक़्ता में ‘क़बीर’ की खामोशी अदम के असर का इक़रार करती है, जो अब भी सच्चाई की हिम्मत बन चुकी है।
ग़ज़ल: “अदम की आवाज़”
अदम साहब ने लफ़्ज़ों से शरारत कर दी,
सतर-ए-अव्वल को हरामख़ोर कहकर सियासत कर दी।
जो क़लम बिक गई तख़्तो-ताज की गलियों में,
अदम ने उस पे सदा देकर बग़ावत कर दी।-1
वो जो लहजे में फ़क़ीरों का हक़ीक़त रखते,
उन्हीं अश’आर ने बादशाहत से अदावत कर दी।-2
न हिजाब बाक़ी रहा, न कोई पर्दा अब,
बेबसी ने हमारी नस्लों की विरासत कर दी।-3
शेर तल्ख़ थे मगर दिल से निकलते थे ‘अदम’,
उनकी आवाज़ ने माज़ी से मुहासिबत कर दी।-4
जो सियासत के लिए क़ौम को तक़सीम करे,
अदम ने जुबाँ से फिर ऐसी हिकारत कर दी।-5
अदब में लिपटी हुई चिंगारी जब शोला बनी,
अदम ने ग़ज़ल से फिर लाठी की सिफ़ारिश कर दी।-6
भूख को जब कभी नग़्मा बना कर गाया,
अदम ने दर्द की लौ को इनक़िलाबत कर दी।-7
मुफ़लिसी, ज़ुल्म, सियासत की गिरफ़्तें जो थीं,
इन सभी को अदम ने लफ़्ज़ों की अदालत कर दी।-8
जो किताबों से न निकली, वो हक़ीक़त बोली,
अदम ने नज़्म से फिर अवाम की वकालत कर दी।-9
हरामख़ोर लफ़्ज़ कोई हल्का नहीं होता जनाब,
ये तो बस अदम ने सच की इबादत कर दी।-10
जो अमीरों की तरफ़दारी में फ़तवे देते,
अदम ने शेर से उन सब की फ़ज़ीहत कर दी।-11
जो न मज़हब से मिला, और न मिल्लत से मिला,
अदम ने उस ग़रीब की सदा से मोहब्बत कर दी।-12
हुक्मरानों को जो आईना दिखाया बेख़ौफ़,
अदम ने सियासत में शायरी की शरीफ़त कर दी।-13
सच कहा तो उसे ग़द्दारी कहा जाने लगा,
झूठ को क़ौम ने अब सच की सियासत कर दी।-14
मक़्ता:
अब “क़बीर” अपनी भी खामोशी से डरने लगे,
जब से अदम ने ग़ज़ल में सदा की हिम्मत कर दी।
ख़ात्मा (Conclusion)
“अदम की आवाज़” सिर्फ़ एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि एक चेतावनी है उस सिस्टम को जो सच से डरता है। इसमें अदम गौंडवी की वो बेबाक़ी ज़िंदा है जो भूख, मुफ़लिसी और सियासत के झूठ को लफ़्ज़ों की अदालत में खड़ा करती है। हर शेर एक तर्ज़-ए-बयान है जो इंसाफ़ और ज़मीर की बात करता है। आज जब झूठ को सच बना कर पेश किया जाता है, “अदम की आवाज़” जैसे कलाम हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि अदब की असल ताक़त क्या है। ये ग़ज़ल सिर्फ़ अदम को नहीं, बल्कि हर उस शायर को सलाम है जिसने क़लम से बग़ावत की, और हक़ की इबादत की। शायरी के इस सफ़र में आइए हम सब भी अदम की आवाज़ बनें।
उर्दू शब्दों के आसान हिंदी अर्थ:
अदम – एक बाग़ी शायर का नाम, एहतेजाजी – विरोध करने वाली, बाग़ी – विद्रोही, तंज़ – व्यंग्य, तल्ख़ी – कड़वाहट, तहज़ीब – संस्कृति, मुफ़लिसी – ग़रीबी, गिरफ़्त – पकड़, तिजारत – व्यापार, ख़िराज – श्रद्धांजलि, मक़्ता – ग़ज़ल का आख़िरी शेर, एहसास – भावना, सतर-ए-अव्वल – पहली पंक्ति, हरामख़ोर – भ्रष्ट व्यक्ति (अपमानजनक अर्थ में), तख़्तो-ताज – सत्ता, फ़क़ीर – संत जैसा ग़रीब व्यक्ति, अदावत – दुश्मनी, माज़ी – अतीत, मुहासिबत – हिसाब-किताब, तक़सीम – बाँटना, हिकारत – घृणा, शोला – ज्वाला, इनक़िलाबत – क्रांति बन जाना, अदालत – न्यायालय, वकालत – पक्ष रखना, फ़ज़ीहत – बेइज़्ज़ती, मिल्लत – समुदाय, शरीफ़त – ईमानदारी, ग़द्दारी – धोखा, जुबाँ – भाषा, ज़मीर – अंतरात्मा, इबादत – पूजा, तर्ज़-ए-बयान – कहने का अंदाज़, गुस्ताख़ी – बेअदबी, बे-नक़ाब – बेपर्दा, बेबाक़ी – निडरता, सदा – आवाज़, इंक़लाब – बदलाव।