Author: Er. Kabir Khan B.E.(Civil Engg.) LLB, LLM
परिचय:
बाबरी मस्जिद का मामला भारतीय इतिहास में बहुत अहम और विवादास्पद रहा । इस मामले ने सिर्फ धार्मिक भावनाओं को ही नहीं, बल्कि राजनीति, समाज और कानून को भी प्रभावित किया । बाबरी मस्जिद का निर्माण 16वीं सदी में किया गया था, और इस पर लंबे समय से विवाद जारी रहा है। यह विवाद तब और बढ़ गया जब 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में स्थित इस मस्जिद को शहीद दिया गया। इसके बाद से कई कानूनी लड़ाइयाँ और आंदोलन हुए, और मुसलमानों को काला इंसाफ मिला।
इस ब्लॉग में हम बाबरी मस्जिद के फ़ैसले से जुड़े 20 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बात करेंगे। ये बिंदु न केवल इतिहास में अहम हैं, बल्कि वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को समझने में भी मदद करेंगे। आइए, इस जटिल मामले के विभिन्न पहलुओं पर नज़र डालते हैं।
बाबरी मस्जिद और तारीख़ी वाक़आत:
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1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण मीर बाकी द्वारा कराया गया।
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हिंदू मान्यता के अनुसार, यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है।
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1949 में, रामलला की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रखी गईं, जिससे विवाद भड़क गया।
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1950 में, इस विवाद पर मुकदमे दर्ज किए गए।
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1986 में ताले खोलने के बाद हिंदुओं को मस्जिद के अंदर पूजा करने की अनुमति मिली।
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1992 में बाबरी मस्जिद को हिंदू कारसेवकों द्वारा शहीद कर दिया गया।
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इसके बाद पूरे देश में धार्मिक दंगे फैल गए।
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2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
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2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
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राम मंदिर निर्माण की आधारशिला 2020 में रखी गई, इसके बाद राम मंदिर निर्माण का निर्माण हुआ।
- जजों को हुकूमत ने इनाम दिए ।
बाबरी मस्जिद का फ़ैसला:
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (9 नवंबर 2019) तारीख़ी और संवेदनशील मामला था, जिसमें कई कानूनी, ऐतिहासिक, और धार्मिक पहलुओं का निर्णय किया गया। यहाँ 20 मुख्य बिंदु प्रस्तुत किए गए हैं:
1. भूमि का स्वामित्व:
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि राम लला (बाल रूप में भगवान राम) को सौंप दी और इसे मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया।
2. मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि:
मुस्लिम पक्ष (सुन्नी वक्फ बोर्ड) को अयोध्या में 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का आदेश दिया गया, जहाँ मस्जिद का निर्माण हो सके।
3. अर्कियोलॉजिकल सबूत:
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट पर भरोसा जताया, जिसमें विवादित स्थल पर एक गैर-इस्लामी संरचना के अवशेष मिले थे, लेकिन इसे मस्जिद निर्माण के समय नष्ट किया गया यह प्रमाणित नहीं था।
4. 1949 की घटना:
1949 में विवादित स्थल पर रामलला की मूर्तियाँ रखी गई थीं। कोर्ट ने इस कृत्य को गैरकानूनी माना लेकिन इसके बाद से पूजा के अधिकार को भी स्वीकार किया।
5. 1992 की घटना:
1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस गैरकानूनी था, और इसे कानून का उल्लंघन बताया गया।
6. आस्था और कानून का संतुलन:
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला आस्था से अधिक कानूनी अधिकारों का था, और निर्णय कानूनी तथ्यों पर आधारित होना चाहिए।
7. साक्ष्य का विश्लेषण:
कोर्ट ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का विस्तृत विश्लेषण किया और पाया कि हिंदू पक्ष ने लगातार विवादित स्थल पर पूजा की थी, जबकि मुस्लिम पक्ष 1949 तक वहां नमाज अदा कर रहा था।
8. निर्णय का आधार:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को कानून और तथ्य पर आधारित बताया, न कि केवल आस्था पर।
9. शांति बनाए रखने का आह्वान:
कोर्ट ने सभी पक्षों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की, ताकि इस निर्णय के बाद कोई सामाजिक अस्थिरता न उत्पन्न हो।
10. न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा:
अदालत ने कहा कि वह ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का मंच नहीं है, लेकिन संपत्ति विवाद के रूप में इसे देखना चाहिए।
11. किसी धार्मिक स्थली का विध्वंस अनैतिक:
मस्जिद का विध्वंस एक गैरकानूनी और संवैधानिक उल्लंघन था, लेकिन यह भूमि के स्वामित्व के मामले को प्रभावित नहीं करता।
12. सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज:
अदालत ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस दावे को खारिज कर दिया कि 1857 से पहले से लगातार वहां नमाज अदा की जा रही थी।
13. निर्दिष्ट ट्रस्ट का गठन:
मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया, जो राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का काम करेगा।
14. हिंदू पक्ष का पूजा का अधिकार मान्य:
कोर्ट ने माना कि हिंदू पक्ष का वहां पूजा करने का अधिकार कई वर्षों से मान्य था।
15. 1856-57 से पहले की स्थिति:
विवादित स्थल की स्थिति को लेकर 1856-57 के पहले के साक्ष्य उपलब्ध नहीं थे, इसलिए अदालत ने इस अवधि को निष्पक्ष रूप से नहीं माना।
16. निर्णय का राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव:
अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि यह फैसला समाज में शांति और एकता बनाए रखने के लिए है, और किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है।
17. निर्णय की संवैधानिकता:
कोर्ट ने अपने निर्णय को संवैधानिक और कानूनसम्मत बताया, और किसी भी एक धर्म की प्रधानता को इस फैसले में प्राथमिकता नहीं दी गई।
18. राम जन्मस्थान का दावा मान्य:
अदालत ने हिंदू पक्ष के इस दावे को स्वीकार किया कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है।
19. सभी पक्षों के अधिकारों का सम्मान:
सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों के अधिकारों का सम्मान करते हुए एक संतुलित निर्णय दिया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की भावनाओं का ध्यान रखा गया।
20. निर्णय का पालन अनिवार्य:
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि इस फैसले का तुरंत और प्रभावी रूप से पालन किया जाए, ताकि आगे विवाद न हो।
इस निर्णय ने दशकों पुराने विवाद को कानूनी रूप से सुलझाने का प्रयास किया और इसे सभी पक्षों के लिए निष्पक्ष और संवेदनशील तरीके से हल किया गया।
बाबरी मस्जिद का फ़ैसला देने वाले इंसाफ़ पसन्द जज साहिबान:
बाबरी मस्जिद का फ़ैसला देने वाले इन्साफ़ पसंद जजों ने निहायत ही विवेकपूर्ण तरीक़े से, संवेदनशीलता और नैतिकता का परिचय देते हुए बग़ैर भेदभाव के, सच्चाई की खोज करके निष्पक्ष फ़ैसला दिया। जिसमें समाज के प्रति जिम्मेदारी भी नज़र आती है और वफ़ादारी भी।
1. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई:
- उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया है।
2. जस्टिस अशोक भूषण:
- उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का सदस्य बनाया गया है।
3. जस्टिस शरद अरविंद बोबडे:
- उन्होंने बाद में भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला।
4. जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड:
- उन्होंने भी बाद में भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला।
5. जस्टिस एस. अब्दुल नाज़ीर:
- उन्हें आंध्र प्रदेश का 22वाँ गवर्नर बनाया गया।