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🌍 अंतरराष्ट्रीय समाचार | ग़ज़ा बना दुनिया की सबसे भूखी जगह, बच्चों की मौतें जारी, हालात बेहद गंभीर

ग़ज़ा पट्टी, जून 2025 – ग़ज़ा में मानवीय संकट अपने सबसे भयावह दौर में पहुँच चुका है। संयुक्त राष्ट्र और विश्व की प्रमुख सहायता संस्थाओं ने ग़ज़ा को “दुनिया की सबसे भूखी जगह” घोषित किया है। मार्च 2, 2025 से मानवीय मदद की पूरी तरह नाकाबंदी के बाद यहाँ की करीब 21 लाख आबादी बेहद कठिन हालात में जी रही है।

भूख का कहर: आधी आबादी संकट में

Integrated Food Security Phase Classification (IPC) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ा की लगभग 23% आबादी, यानी करीब 5 लाख लोग, भयानक भूख, कुपोषण और बीमारियों की स्थिति में जी रहे हैं। 93% लोग खाने की बेहद कमी से जूझ रहे हैं, जिनमें से तीन-चौथाई ‘आपात’ या ‘विनाशकारी’ स्थिति में हैं।

बचपन ख़तरे में: 57 बच्चों की भूख से मौत

अब तक 57 बच्चों की जान भुखमरी से जा चुकी है, और यह संख्या शायद और भी अधिक हो सकती है। आंकड़ों के मुताबिक, 71,000 बच्चे अगले कुछ महीनों में गंभीर कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। वहीं करीब 17,000 गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं भी इलाज की मोहताज हैं।

स्वास्थ्य व्यवस्था ढह गई

ग़ज़ा का स्वास्थ्य ढाँचा पूरी तरह से चरमरा चुका है। कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे आम बीमारियाँ भी जानलेवा बन रही हैं। वैक्सीनेशन घट चुका है, और साफ पानी व दवाइयाँ उपलब्ध नहीं हैं।

भूख मिटाने को जानवरों का चारा, रेत मिला आटा

स्थानीय लोग अब पेट भरने के लिए जानवरों का चारा, सड़ा-गला आटा, और रेत मिला आटा खाने को मजबूर हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया कि आटे की कीमतें 3,000% तक बढ़ चुकी हैं। जबकि सीमाओं पर लाखों टन खाद्य सामग्री तैयार पड़ी है, उसे ग़ज़ा में पहुँचने नहीं दिया जा रहा।

संयुक्त राष्ट्र की अपील: तुरंत खोला जाए सहायता मार्ग
इस संकट से बचाव के लिए संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने दुनिया से अपील की है कि मानवीय aसहायता की आवाजाही तुरंत और बिना रुकावट शुरू की जाए। समय पर मदद न मिलने की स्थिति में आने वाली पीढ़ी कुपोषण, मानसिक कमजोरी और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की शिकार हो सकती है।

यह संकट अब केवल भूख का नहीं, बल्कि इंसानियत की अग्निपरीक्षा बन चुका है।

                                                                         कुछ आँसू हैं जो ख़बरों में नहीं दिखते,
                                                                         कुछ बच्चे हैं जो अब सपने नहीं बुनते।
                                                                         ग़ज़ा का दर्द सिर्फ़ आँकड़ों में नहीं,
                                                                         वो चीख़ है जो दीवारें भी नहीं सुनते।

निष्कर्ष:

ग़ज़ा संकट में मानवीय भयावहता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र और विश्व की प्रमुख सहायता संगठनों द्वारा ग़ज़ा को “दुनिया की सबसे भूखी जगह” घोषित किया जाना, वहाँ के हालात की गंभीरता को स्पष्ट करता है। लाखों लोग भूख, कुपोषण और बीमारियों से जूझ रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ढह चुकी है। बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की तकलीफें सबसे अधिक हैं। स्थानीय लोग अब अपनी जान बचाने के लिए जानवरों का चारा तक खाने को मजबूर हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने तुरंत और बिना रुकावट मानवीय सहायता की मांग की है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो ग़ज़ा की आने वाली पीढ़ी कुपोषण, मानसिक कमजोरी और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की शिकार बन सकती है। यह संकट अब सिर्फ भूख का नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की परीक्षा बन चुका है। अब समय की मांग है कि दुनिया एकजुट होकर ग़ज़ा के लोगों की मदद करे और उन्हें निराशा के अंधकार से बाहर निकाले।


रिपोर्ट: कबीर ख़ान | विशेष संवाददाता, अंतरराष्ट्रीय मामलों पर विशेष नज़र
Website: www.knowledgegainers.com