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🌿 तआर्रुफ़ (परिचय):

“अमन का पैग़ाम” ग़ज़ल सिर्फ़ अशआर का सिलसिला नहीं, बल्कि एक सोच, एक सरोकार, और एक सच्ची कोशिश है उस इंसानियत की जिसे सियासत, मज़हब और नफ़रत ने कई हिस्सों में बाँट दिया है। यह ग़ज़ल हर उस शख़्स के लिए है जो मोहब्बत की ज़बान बोलना चाहता है और नफ़रत के शोर से दूर रहना चाहता है।

इस तहरीर में हमने आज के हिन्दुस्तानी माहौल, मज़हबी हमआहंगी, और क़ौमी यकजहती की ज़रूरत को शाइरी के अंदाज़ में पेश किया है — ताकि हर दिल तक अमन का यह पैग़ाम पहुंचे। ‘क़बीर’ की आवाज़ में यह सदाएं — सिर्फ़ शेर नहीं, बल्कि वक़्त की पुकार हैं। आइए, इसे सिर्फ़ पढ़ें नहीं, समझें भी और फैलाएं भी।

ग़ज़ल: अमन का पैग़ाम

हम हिंद के मुसलमान हैं, अमन की हैं आवाज़,
हर दिल को ये समझा दो, फसाद से दूर रहो।-1

जो अपने ही वतन में उगलें नफ़रत बग़ैर सबब,
ऐसे फ़ितनेबाज़ों से, यार फसाद से दूर रहो।-2

धर्म में न हो सियासत, न हो कोई फ़रेब कभी,
इंसानियत को थाम लो, फसाद से दूर रहो।-3

जो नफ़रत के बीज बोएं, जड़ से वो मिट जाएंगे,
हम सबको मिलके कहना है, फसाद से दूर रहो।-4

तुम्हारी बंदूक क्या करेगी, मोहब्बत जीत लेगी हर बार,
फ़ूलों से भर दो हर गलियाँ, फसाद से दूर रहो।-5

पाक की सियासत का ज़हर समझ लो अब यारो,
वक़्त है होश में आओ, फसाद से दूर रहो।-6

ना बटें मज़हबों में हम, ना नस्ल की हो दीवार,
यह वतन सबका है प्यारा, फसाद से दूर रहो।-7

जो मस्जिदों में गूंजे शोर, वो दुआ नहीं नारा है,
ख़ुदा की रहमत के वास्ते, फसाद से दूर रहो।-8

क़ानून अपना काम करे, क़दम बढ़ाएं हम साथ,
हर जुल्म और साज़िश से, फसाद से दूर रहो।-9

सुलह का पैग़ाम हर दिल में, हर जुबां पे हो बहार,
इसी प्यार के गीत से, फसाद से दूर रहो।-10

सुलह का पैग़ाम हर दिल में, हर जुबां पे हो बहार,
इसी प्यार के गीत से, फसाद से दूर रहो।-11

अपने मुल्क की क़द्र करो, बढ़ाओ नाम अपना,
चलो फिर साथ-साथ चलें, फसाद से दूर रहो।-12

वतन की मिट्टी देती है ये पैग़ाम बार-बार,
कभी ना टूटेंगे हम, फसाद से दूर रहो।-13

मुश्किलें जितनी भी आएं, हम कभी ना डिगेंगे,
चमकेंगे फिर बुलंदियों पे, फसाद से दूर रहो।-14

मक़ता:
क़बीर’ कहता है ये, सुन लो दिल से ये आवाज़,
हर ज़हर से बचो, फसाद से दूर रहो।

A group of people from Hindu, Muslim, Sikh, and Christian backgrounds standing together, hands raised in unity, under a large Indian flag with sunlit fields and blooming flowers in the background, symbolizing peace and togetherness.
People from diverse backgrounds unite under the Indian flag, celebrating peace and harmony.

🕊️ ख़ात्मा (उपसंहार):

“अमन का पैग़ाम” ग़ज़ल एक आईना है — जो हमारी समाजी हकीकत, सियासी चालों और मज़हबी तंगनज़री को बेनक़ाब करता है। इसमें हर मिसरा एक सच्चाई है, और हर शे‘र एक नसीहत। यह ग़ज़ल बताती है कि नफ़रत कभी किसी मसले का हल नहीं रही — मोहब्बत ही एक वाहिद रास्ता है जो हमें मज़बूती और कामयाबी की जानिब ले जाता है।

‘क़बीर’ इस ग़ज़ल के ज़रिए यकजहती, सुलह, और ख़ुलूस की आवाज़ बुलंद करता है। वो कहता है कि जब तक हम मज़हब, नस्ल और ज़ुबान की दीवारों को गिराकर इंसानियत की बुनियाद नहीं रखेंगे, तब तक असली अमन मुमकिन नहीं।

अब वक़्त है — जब हर जुबां से निकले “अमन का पैग़ाम”, हर दिल में बसे मोहब्बत का चराग़, और हर क़दम बढ़े इंसाफ़ की राह पर। यही इस ग़ज़ल का मक़सद है, यही इसकी रूह है।

🌿 मुश्किल उर्दू अल्फ़ाज़ और उनके हिंदी अर्थ:

अशआर = शेरों का समूह, सिलसिला = क्रम, सरोक़ार = संबंध, सियासत = राजनीति, मज़हब = धर्म, हमआहंगी = मेलजोल, क़ौमी यकजहती = राष्ट्रीय एकता, तहरीर = लेख, सदाएं = पुकार / आवाज़ें, वक़्त की पुकार = समय की माँग, फ़साद = दंगा / उपद्रव, फ़ितनेबाज़ = षड्यंत्र फैलाने वाला, फ़रेब = धोखा, बीज बोना = शुरुआत करना, जड़ से मिटना = पूरी तरह खत्म होना, साज़िश = चाल / षड्यंत्र, सुलह = मेल-मिलाप, बहार = खुशी / सुहाना मौसम, क़द्र = क़ीमत / सम्मान, मक़ता = ग़ज़ल का आख़िरी शेर, समाजी हकीकत = सामाजिक सच्चाई, तंगनज़री = संकीर्ण सोच, नसीहत = सीख, वाहिद रास्ता = एकमात्र उपाय, यकजहती = भाईचारा / एकता, ख़ुलूस = सच्चाई, जानिब = दिशा, बुनियाद = नींव, चराग़ = दीपक, रूह = आत्मा / भावना।