
“इश्क़ का क़हल” (प्यार का सूखा या ठहराव) की यह ग़ज़ल मोहब्बत के उन लम्हों को बयान करती है जहाँ जज़्बात अपनी आख़िरी हदों तक पहुँचकर ख़ामोशी ओढ़ लेते हैं। इस ग़ज़ल में शायर ‘क़बीर’ ने मोहब्बत के शुरुआती लफ़्ज़ से लेकर जुदाई के आख़िरी एहसास तक की सफ़र-नुमा दास्तान बयाँ की है। हर शेर में दर्द की एक अलग परत है, जो दिल-ए-बेज़ार (उदास दिल) की गहराइयों से निकलती है और साहिल (किनारा) तक लरज़ती (काँपती) हुई पहुँचती है।
यह ग़ज़ल एक ऐसी रूहानी दास्तान है, जहाँ मोहब्बत का मसीहा-ए-अमल (क्रियाशील मसीहा) कहीं गुम हो गया है और पीछे रह गई है सिर्फ़ हलचल, यादें, और वो अल्फ़ाज़ जो लहू से लिखे गए थे मगर क़लम से मिटा दिए गए। “और बस” सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि हर टूटे हुए तअल्लुक़ (रिश्ते) की आख़िरी सदा है।
ग़ज़ल: “इश्क़ का क़हल”
मिरी ज़िंदगी का था वो हर्फ़-ए-अव्वल और बस,
मिला जो इश्क़ में इक दर्द-ए-मुश्त’इल और बस।-1
वो मेरी बात को समझा भी तो कैसे भला,
मैं लाया था दिल-ए-बेज़ार-ओ-मयल और बस।-2
जला दिए थे चराग़ों के साथ ख़्वाब भी,
न बच सका कोई मंज़र-ए-क़ाबिल और बस।-3
सुनाया जा रहा था फ़साना-ए-हिज्र जब,
लरज़ गया दिल-ए-सदाक़त से साहिल और बस।-4
उसे मिला भी तो क्या, शौक़-ए-नज़ारा-ए-रंग,
मिरी हयात थी इक साया-ए-बदल और बस।-5
तअज्जुब है कि मिट्टी की ये तलाश रही,
कहाँ गया वो मसीहा-ए-अमल और बस।-6
कहीं पे चुप, कहीं रोशन, कहीं बेजान भी,
हयात का था ये चेहरा-ए-दो पहल और बस।-7
वो दिन भी था कि मोहब्बत में जी लिए थे हम,
अब आ गया है बस इक दौर-ए-क़हल और बस।-8
तसव्वुरात में डूबी रही हर इक साँस,
न मिला कभी भी हक़ीक़त से हासिल और बस।-9
सितारों से भी उलझे, ज़मीन से भी लड़े,
मिली शिकस्त में इक शोहरत-ए-ग़ाफ़िल और बस।-10
गुलों से वादा-ए-ग़ुंचा किया मगर ‘क़बीर’,
ख़िज़ाँ से था मिरा रिश्ता-ए-अजल और बस।-11
किसी के नाम से जलते रहे दिलों के चराग़,
किसी के लब पे था बस शोर-ए-असल और बस।-12
मिरी सदा थी तअल्लुक़ की आख़िरी नवा,
उसे मिला था कोई और मिज़ाज-ए-सजल और बस।-13
हयात भर जो लहू से लिखा इक अल्फ़ाज़,
क़लम से कट गया वो नक़्श-ए-अजल और बस।-14
मक़्ता:
‘क़बीर’ राह-ए-वफ़ा में गुज़ारे कुछ लम्हे,
रहा हर एक तजुर्बा दिल में हलचल और बस।-15
उर्दू शब्दों के अर्थ:
हर्फ़-ए-अव्वल – पहला शब्द, शुरुआत, इश्क़ – प्रेम, दर्द-ए-मुश्त’इल – उग्र वेदना, दिल-ए-बेज़ार-ए-मयल – निराश और इच्छाहीन दिल, चराग़ – दीपक, ख़्वाब – सपना, मंज़र-ए-क़ाबिल – उचित दृश्य, फ़साना-ए-हिज्र – जुदाई की कहानी, लरज़ – कांपना, सदाक़त – सत्य, साहिल – तट, शौक़-ए-नज़ारा-ए-रंग – रंगीन दृश्य का आकर्षण, हयात – जीवन, साया-ए-बदल – परिवर्तन की छांव, तअज्जुब – आश्चर्य, मसीहा-ए-अमल – कार्य करने वाला उद्धारक, चेहरा-ए-दो पहल – दो पहलुओं वाला चेहरा, दौर-ए-अतल – कष्ट का समय, तसव्वुरात – कल्पनाएँ, हक़ीक़त – वास्तविकता, शोहरत-ए-ग़ाफ़िल – लापरवाह की प्रसिद्धि, गुलों से वादा-ए-ग़ुंचा – फूलों से मुरझाने का वादा, ख़िज़ाँ – शरद ऋतु, रिश्ता-ए-अजल – समय का संबंध, चराग़ – दीपक, शोर-ए-असल – असली शोर, तअल्लुक़ – संबंध, मिज़ाज-ए-सजल – आरामदायक स्वभाव, लहू – खून, क़लम – कलम, नक़्श-ए-अजल – नियति का चित्र, राह-ए-वफ़ा – वफ़ा का रास्ता, तजुर्बा – अनुभव, हलचल – उथल-पुथल।