Introduction

उर्दू अल्फ़ाज़ (शब्द) सिर्फ़ गुफ़्तगू (बातचीत) का एक ज़रिया नहीं, बल्कि हमारी तहज़ीब (संस्कृति) और शख़्सियत (व्यक्तित्व) की झलक भी पेश करते हैं। जब लफ़्ज़ (शब्द) नफ़ासत (शालीनता) और दिलकशी (आकर्षण) से भरे हों, तो हर बात का असर (प्रभाव) कहीं ज़्यादा गहरा हो जाता है। उर्दू, जो अपनी शाइस्तगी (सभ्यता) और नज़ाकत (कोमलता) के लिए मशहूर है, आपकी गुफ़्तगू में ख़ास रंग भर सकती है।

इस ब्लॉग में हम ऐसे उम्दा (बेहतरीन) और पुरअसर (प्रभावशाली) उर्दू अल्फ़ाज़ से रु-ब-रु (परिचित) होंगे, जो आपकी ज़ुबान (बोलचाल) को पुरकशिश (आकर्षक) बना देंगे। चाहे आप किसी महफ़िल (समारोह) में हों या किसी ख़ास शख़्स (व्यक्ति) से हमकलाम (बातचीत) कर रहे हों, ये लफ़्ज़ आपकी बातें और भी असरदार और दिलनशीं (मनमोहक) बना देंगे। तो चलिए, इस ख़ूबसूरत सफ़र (यात्रा) की शुरुआत करते हैं और उर्दू अल्फ़ाज़ की मिठास (मधुरता) से अपनी ज़ुबान में नए जलवे (आकर्षण) भरते हैं।

1. “इंतिहा”-उर्दू अल्फ़ाज़

“इंतिहा” (انتہا) एक खूबसूरत उर्दू लफ़्ज़ है, जिसका मतलब “आख़िरी हद”, “चरम बिंदु”, “पराकाष्ठा” या “निहायत” होता है। यह किसी भी शय (چیز) की बुलंदी या इख़्तिताम को बयान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

“इंतिहा” के इस्तेमालात

  1. इश्क़ की इंतिहा – जब मुहब्बत (محبت) अपने आख़िरी मक़ाम (مقام) पर पहुँच जाए।
  2. सब्र की इंतिहा – जब किसी का सब्र (صبر) जवाब दे जाए।
  3. जुल्म की इंतिहा – जब सितम (ستم) हद से बढ़ जाए।
  4. ख़ुशी की इंतिहा – जब खुशी (خوشی) अपनी बुलंदी (بلندی) पर हो।

उर्दू शायरी में “इंतिहा” का इस्तेमाल

💬 “इंतिहा हो गई इंतज़ार की, आई ना कुछ ख़बर मेरे यार की।”
(यानी सब्र की हद ख़त्म हो गई, मगर महबूब (محبوب) की कोई ख़बर नहीं मिली।)

💬 “तेरी बेवफ़ाई की भी इंतिहा हो गई, अब तो मेरे अश्क़ (اشک) भी साथ छोड़ चुके हैं।”
(यानी तेरी बेवफ़ाई (بیوفائی) इतनी बढ़ गई कि अब मेरे आँसू भी सूख गए।)

“इंतिहा” अक्सर ग़म, इश्क़, सब्र, दर्द, ख़ुशी और जुल्म जैसी कैफ़ियतों के साथ इस्तेमाल किया जाता है, जो इसे एक जज़्बाती (جذباتی) और पुर-असर (پراثر) लफ़्ज़ बना देता है।

2. “ज़ेहनियत”-उर्दू अल्फ़ाज़

“ज़ेहनियत” (ذہنیت) एक ख़ूबसूरत और ग़ैर-मामूली उर्दू लफ़्ज़ है, जिसका ताल्लुक़ “सोच”, “अंदाज़-ए-फ़िक्र”, “नज़रिया” और “मानसिक रुझान” से होता है। यह किसी शख़्स (شخص) या मुआशरे (معاشرے) की सोचने-समझने की सलाहियत (صلاحیت) और उनके तर्ज़-ए-फिक्र (طرزِ فکر) को बयान करता है।

“ज़ेहनियत” के इस्तेमालात

  1. तंग-नज़री की ज़ेहनियत – जब कोई शख़्स या मुआशरा (समाज) फ़िक्री तौर पर बहुत महदूद (محدود) हो।
  2. आज़ाद-ख़्याली की ज़ेहनियत – जब किसी की सोच में वुसअत (وسعت) और लचक (لچک) हो।
  3. बद-ज़ेहनियत – जब किसी की सोच में नफ़रत (نفرت) या मकर (مکر) हो।
  4. रिवायती ज़ेहनियत – जब कोई पुरानी रस्मों और रवायतों (روایات) से बाहर नहीं निकलता।
  5. इल्मी ज़ेहनियत – जब कोई तालीम (تعلیم) और मालूमात (معلومات) को आगे बढ़ाने का जज़्बा रखता हो।

उर्दू शायरी और अदब में “ज़ेहनियत” का इस्तेमाल

💬 “तुम्हारी ज़ेहनियत में बंदिशों का राज़ है,
हमारी सोच में ताज़गी का परवाज़ है।”

(यानी तुम्हारी सोच क़ैद (قید) में है, जबकि हमारी सोच बुलंदी (بلندی) की तरफ़ उड़ान भर रही है।)

💬 “हर किसी की ज़ेहनियत को बदलना मुमकिन नहीं,
मगर इल्म (علم) और अदब (ادب) से सोच में निख़ार आता है।”

(यानी हर इंसान की फ़िक्र (فکر) नहीं बदली जा सकती, लेकिन इल्म और तालीम से उसमें बेहतरी लाई जा सकती है।)

“ज़ेहनियत” दरअसल इंसान के अंदाज़-ए-गुफ़्तगू (اندازِ گفتگو), रवैय्या (رویہ), और ज़िन्दगी के हर पहलू को बयान करता है। किसी भी मुआशरे की बेहतरी या बर्बादी का ताल्लुक़ उसी के अफ़राद की ज़ेहनियत से होता है।

3. “ग़ैर-मज़हबी” -उर्दू अल्फ़ाज़

“ग़ैर-मज़हबी” (غیر مذہبی) एक उर्दू लफ़्ज़ है, जो उन अफ़राद (افراد) या अफ़्कार (افکار) के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनका किसी मज़हब (مذہب) से ताल्लुक़ (تعلق) नहीं होता या जो मज़हबी यक़ीनात (یقینات) और अकीदों (عقائد) से दूर रहते हैं।

“ग़ैर-मज़हबी” के इस्तेमालात

  1. ग़ैर-मज़हबी ज़ेहनियत – ऐसी सोच (فکر) जो मज़हब से मुतास्सिर (متاثر) न हो।
  2. ग़ैर-मज़हबी अफ़्कार – ऐसे ख़्यालात (خیالات) जो किसी मज़हबी उसूल (اصول) पर मबनी (مبنی) न हों।
  3. ग़ैर-मज़हबी रवैय्या – ऐसा बरताव (برتاو) जिसमें मज़हबी तालीमात (تعلیمات) की झलक न हो।
  4. ग़ैर-मज़हबी मुआशरा – ऐसा समाज (معاشرہ) जो मज़हब को नज़रअंदाज़ करता हो।

उर्दू शायरी और अदब में “ग़ैर-मज़हबी” का इस्तेमाल 

💬 “किसी की ग़ैर-मज़हबी सोच को कोसने से बेहतर है कि हम अपने अकीदे (عقیدے) को मजबूत करें।”
(यानी दूसरों की सोच पर एतराज़ (اعتراض) करने के बजाय, हमें अपने ईमान (ایمان) को बेहतर बनाना चाहिए।)

💬 “मज़हबी होना ज़रूरी नहीं, मगर इंसानियत (انسانیت) का दामन थामना लाज़िमी है।”
(यानी मज़हब से जुड़ना ज़रूरी नहीं, मगर इंसानियत और अख़लाक़ (اخلاق) को नहीं छोड़ना चाहिए।)

“ग़ैर-मज़हबी” का फ़र्क़ ‘लादीन’ से

👉 ग़ैर-मज़हबी – जो किसी मज़हब की पैरवी (پیروی) न करता हो, मगर मज़हब का इनकार भी न करे।
👉 लादीन (لادین) – जो मज़हब की पूरी तरह नफ़ी (نفی) करे और उसे ग़लत समझे।

“ग़ैर-मज़हबी” का ताल्लुक़ सिर्फ़ मज़हबी रवैय्ये से होता है, जबकि इंसान की अख़लाक़ी और समाजी (سماجی) ज़िम्मेदारियाँ इससे अलग मसला हैं।

 इस्ते’मालात के और मिसालें:

  1. “ग़ैर-मज़हबी निज़ाम इंसाफ़ पर मबनी होता है।”
    (एक धर्मनिरपेक्ष शासन न्याय पर आधारित होता है।)

  2. “ग़ैर-मज़हबी सोच रखने वाले अक्सर इल्म और तहक़ीक़ (تحقیق) को तर्जीह (ترجیح) देते हैं।”
    (धर्म से अलग सोच रखने वाले अक्सर ज्ञान और अनुसंधान को प्राथमिकता देते हैं।)

  3. “मौशरे (معاشرے) की तरक़्क़ी (ترقی) में ग़ैर-मज़हबी अफ़्कार भी एहम किरदार अदा करते हैं।”
    (समाज की प्रगति में धर्मनिरपेक्ष विचार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।)

  4. “ग़ैर-मज़हबी तालीम (تعلیم) का मतलब ये नहीं कि इंसान अपने अख़लाक़ (اخلاق) से दूर हो जाए।”
    (धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति नैतिकता से दूर हो जाए।)

  5. “कुछ लोग मज़हब और ग़ैर-मज़हबी अफ़्कार के दर्मियान (درمیان) ताल-मेल (تالمیل) क़ायम रखने की कोशिश करते हैं।”
    (कुछ लोग धर्म और धर्मनिरपेक्ष विचारों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं।)

  6. “ग़ैर-मज़हबी हुकूमत (حکومت) का मक्सद (مقصد) हर मज़हब के मानने वालों को बराबरी देना होता है।”
    (धर्मनिरपेक्ष सरकार का उद्देश्य हर धर्म के अनुयायियों को समानता देना होता है।)

  7. “असली इंसाफ़ किसी ग़ैर-मज़हबी उसूल (اصول) के तहत ही मुमकिन है।”
    (सच्चा न्याय किसी धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के तहत ही संभव है।)

ये तमाम मिसालें ये बताती हैं कि “ग़ैर-मज़हबी” का ताल्लुक़ इंसाफ़, बराबरी, इल्म और समाजी तरक़्क़ी से हो सकता है।

4. इल्मी मज़ामीन (शैक्षिक लेख) -उर्दू अल्फ़ाज़

“इल्मी मज़ामीन” (علمی مضامین) का मतलब “शऊरी (बौद्धिक) और तालीमी (शैक्षिक) मज़ामीन (लेख)” या “इल्म-ओ-अगाही (ज्ञान और जागरूकता) से भरपूर तहक़ीक़ी (अनुसंधानपरक) और अदबी (साहित्यिक) मज़ामीन (लेख)” होता है।

👉 “इल्मी” (वैज्ञानिक/शैक्षिक) का मतलब “इल्म (ज्ञान) से मुताल्लिक़”, “तहक़ीक़ी (अनुसंधानपरक)”, या “दानिशवरी (बुद्धिमत्ता) से भरपूर” होता है।
👉 “मज़ामीन” (लेख) (جمع مضمون) का मतलब “मक़ालात (निबंध)”, “तहरीरी तख़लीक़ात (लिखित रचनाएँ)” या “इल्मी तहरीरात (शैक्षिक लेख)” होता है।

📖 इल्मी मज़ामीन के मिसालें (उदाहरण):

1️⃣ साइंस (विज्ञान) और टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) पर मज़ामीन (लेख) – जैसे “मशीन लर्निंग (मशीन शिक्षण) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का इस्तेहकाम (उपयोग)”, “तब्बी साइंस (चिकित्सा विज्ञान) में नई तहक़ीक़ात (अनुसंधान)”।
2️⃣ मज़हबी (धार्मिक) और तालीमी (शैक्षिक) मज़ामीन (लेख) – जैसे “कुरआन-ओ-हदीस (कुरआन और हदीस) की रोशनी में इल्म (ज्ञान) की एहमियत (महत्व)”, “इस्लामी दुनिया में तालीम-ओ-तहक़ीक़ (शिक्षा और अनुसंधान) का हाल (स्थिति)”।
3️⃣ तारीख़ी (ऐतिहासिक) और समाजी (सामाजिक) मज़ामीन (लेख) – जैसे “खिलाफ़त-ए-उस्मानिया (उस्मानी खलीफा शासन) का ज़वाल (पतन)”, “मुआशरती तरक़्क़ी (सामाजिक विकास) में तालीम (शिक्षा) का किरदार (भूमिका)”।
4️⃣ सेहत-ओ-तंदुरुस्ती (स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती) और गिज़ाई आदात (आहार संबंधी आदतें) पर मज़ामीन (लेख) – जैसे “मिलेट्स (मोटे अनाज) के फ़वायद (लाभ) और गिज़ाई एहमियत (पोषण महत्व)”, “तिब्ब-ए-नबवी (पैगंबर मुहम्मद की चिकित्सा पद्धति) और उसकी हिकमतें (तत्वज्ञान)”।

📌 सादा अल्फ़ाज़ (सरल शब्दों) में, इल्मी मज़ामीन वे तहक़ीक़ी (अनुसंधानपरक) और शऊरी (बौद्धिक) तहरीरात (लिखित सामग्री) होती हैं जो किसी मौज़ू (विषय) को तफ्सीलात (विस्तार) के साथ बयान करती हैं और लोगों की मालूमात-ओ-दानिश (ज्ञान और बुद्धिमत्ता) में इज़ाफ़ा (वृद्धि) करती हैं।

5. “रवादारी”(सहिष्णुता)

“रवादारी” (رواداری) एक खूबसूरत उर्दू लफ्ज़ है, जिसका मतलब “बर्दाश्त (सहनशीलता)”, “सबर-ओ-तहम्मुल (धैर्य और सहनशीलता)”, “अख़लाक़ी बुलंदी (नैतिक ऊँचाई)” और “एक-दूसरे के नज़रियात (विचारों) और अकीदों (विश्वासों) का एहतराम (सम्मान) करना” होता है।

📌 रवादारी का मतलब और इस्तेमाल:

👉 रवादारी से मुराद “दूसरों के अकीदों (विश्वासों), तहज़ीब-ओ-तमद्दुन (संस्कृति और सभ्यता), सोच-विचार, और आदतों को बर्दाश्त करना और उनका एहतराम करना” है।
👉 यह लफ्ज़ ज्यादा तर मज़हबी (धार्मिक), समाजी (सामाजिक), और अख़लाक़ी (नैतिक) हालात में इस्तेमाल किया जाता है।

🏷 रवादारी के कुछ मिसालें (उदाहरण):

हमें एक-दूसरे के अकीदों (विश्वासों) और तहज़ीब (संस्कृति) की रवादारी करनी चाहिए।
असली इंसानियत की बुनियाद रवादारी और मोहब्बत पर क़ायम होती है।
अगर दुनिया में अमन-ओ-शांति (शांति और सद्भाव) चाहिए, तो हमें रवादारी को फरोग़ (बढ़ावा) देना होगा।
रवादारी सिर्फ़ दूसरों को बर्दाश्त करने का नाम नहीं, बल्कि उनके एहसासात (भावनाओं) की कद्र करने का नाम है।

रवादारी का पैग़ाम

रवादारी का मतलब सिर्फ़ “सहनशीलता” नहीं, बल्कि “मोहब्बत (प्रेम), अख़लाक़ (नैतिकता), और एक-दूसरे के हक़ूक़ (अधिकारों) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) करने की सलाहियत (योग्यता)” भी है।

6. “मजीद”

“मजीद” (مجید) – दो मुख़्तलिफ़ मआनी (अर्थ) और इस्तेमाल (प्रयोग)

1️⃣ “मजीद” बतौर सिफ़त (गुण) – अज़मत (महानता) और बुज़ुर्गी (गरिमा) के मायने में:

🔹 “मजीद” का एक मायना “शान-ओ-अज़मत (गरिमा और महानता)”, “बुज़ुर्गी (महानता)”, “इज़्ज़त-ओ-वकार (सम्मान और प्रतिष्ठा)” होता है।
🔹 यह ज़्यादातर अल्लाह तआला (ईश्वर) के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:

📖 “अल-मजीद” (المجید) → बहुत ज़्यादा बुज़ुर्ग (महान) और शान वाला।
📖 “कुरआन-ए-मजीद” (قرآن مجید) → बुज़ुर्ग और अज़मत वाली किताब (महान और गरिमा संपन्न ग्रंथ)।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 अल्लाह अल-मजीद है, उसकी अज़मत (महानता) और शान (वैभव) की कोई हद नहीं।
🔸 कुरआन-ए-मजीद इंसानियत के लिए हिदायत (मार्गदर्शन) का सरचश्मा (स्रोत) है।

2️⃣ “मजीद” बतौर ज़र्फ़ (Adverb) – और ज़्यादा (More) के मायने में:

🔹 “मजीद” का दूसरा मायना “और ज़्यादा (अधिक)”, “ज़्यादा बेहतरी (और अच्छा)”, “तरक्क़ी (प्रगति)” होता है।
🔹 यह आम बातचीत और लिखाई में बेहतर बनाने, बढ़ाने, और सुधारने के लिए इस्तेमाल होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 अगर हम मजीद मेहनत करें, तो कामयाबी यक़ीनी (निश्चित) है। 🟢 (“और ज़्यादा मेहनत”)
🔸 आपकी मदद से हम इस प्रोजेक्ट को मजीद बेहतर बना सकते हैं। 🟢 (“और बेहतरीन”)
🔸 मजीद मालूमात (और ज़्यादा जानकारी) के लिए हमसे राब्ता करें। 🟢 (“अधिक जानकारी”)

7. “नफ़ासत” (“नज़ाकत (कोमलता), पाकीज़गी (पवित्रता), नज़्म-ओ-ज़ब्त (सुव्यवस्था), और बारीकी (सूक्ष्मता)”

“नफ़ासत” एक अरबी-मूल का लफ़्ज़ है, जिसका मतलब “नज़ाकत (कोमलता), पाकीज़गी (पवित्रता), नज़्म-ओ-ज़ब्त (सुव्यवस्था), और बारीकी (सूक्ष्मता)” होता है।

इसका ताल्लुक़ सिर्फ़ ظाहिरी खूबसूरती (बाहरी सुंदरता) से नहीं, बल्कि अख़लाक़ (व्यवहार), आदात (आदतें), सोहबत (संगति), और ज़िंदगी के अंदाज़ (जीवनशैली) से भी होता है।

🟢 “नफ़ासत” के मुख़्तलिफ़ मायने और इस्तेमाल:
1️⃣ ज़ाहिरी (बाहरी) नफ़ासत – पाकीज़गी (साफ़-सफ़ाई) और नज़ाकत (कोमलता)

👉 जब “नफ़ासत” को जिस्मानी सूरत (शारीरिक रूप), पहनावे, या चीज़ों की सफ़ाई-सुथराई के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो इसका मतलब “शालीनता, सफ़ाई, और तरतीब (व्यवस्थितता)” होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 उनका पहनावा बड़ी नफ़ासत से चुना गया है। 🟢 (“बड़ी बारीकी और सलीके से”)
🔸 उनके घर की सजावट में नफ़ासत झलकती है। 🟢 (“साफ़-सुथरी और नज़ाकत भरी”)

2️⃣ अख़लाक़ी (नैतिक) नफ़ासत – शाइस्तगी (सभ्यता) और तहज़ीब (संस्कार)

👉 जब “नफ़ासत” इंसान की गुफ़्तगू (बातचीत), अख़लाक़ (नैतिकता), या रवैय्या (व्यवहार) के लिए इस्तेमाल हो, तो इसका मतलब “शालीनता, नर्मी, और तहज़ीब” होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 उनकी गुफ़्तगू में नफ़ासत है, जिससे हर शख़्स मुतास्सिर होता है। 🟢 (“उनकी बातचीत में मिठास और तहज़ीब है।”)
🔸 बड़े अदब (सम्मान) और नफ़ासत से पेश आना चाहिए। 🟢 (“शालीनता और सभ्यता से व्यवहार करना चाहिए।”)

3️⃣ फिक्र-ओ-फन (विचार और कला) की नफ़ासत – बारीकी (सूक्ष्मता) और हुस्न (सौंदर्य)

👉 जब “नफ़ासत” सोच-विचार, अदब (साहित्य), या फ़न-ओ-हुनर (कला और शिल्प) के लिए इस्तेमाल हो, तो इसका मतलब “बारीकी, सूक्ष्मता, और उच्च कोटि की कलात्मकता” होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 उनकी शायरी में नफ़ासत का एक अलग ही रंग है। 🟢 (“उनकी कविता में कोमलता और सुंदरता की झलक है।”)
🔸 मुग़लिया तामीरात (मुग़ल वास्तुकला) में नफ़ासत और हुस्न का बेमिसाल संगम है। 🟢 (“सूक्ष्मता और भव्यता का मिश्रण”)

“नफ़ासत” सिर्फ़ एक लफ़्ज़ नहीं, बल्कि एक आला ज़िंदगी जीने का अंदाज़ (उच्च जीवनशैली), पाकीज़ा अख़लाक़ (शुद्ध नैतिकता), और हुनर में बारीकी (कला की सूक्ष्मता) को बयान करता है।

8. “मारूफ़ आलिम-ए-दीन”

📌 “मारूफ़ आलिम-ए-दीन” (معروف عالمِ دین) का मायने (अर्थ):

“मारूफ़” (معروف) यानी “जाना-माना, प्रसिद्ध, मक़बूल (लोकप्रिय)”,
“आलिम” (عالم) यानी “इल्म (ज्ञान) रखने वाला, विद्वान, विद्वत्ता में माहिर (विशेषज्ञ)”,
“दीन” (دین) यानी “इस्लामिक शरीअत (धार्मिक कानून), मज़हबी उलूम (धार्मिक शिक्षा), और अख़लाक़ी तालीमात (नैतिक शिक्षाएं)”

इसलिए, “मारूफ़ आलिम-ए-दीन” से मुराद (अर्थ) है – “वो इस्लामी विद्वान जो इल्मी लिहाज़ (शैक्षिक दृष्टिकोण) से मक़बूल (लोकप्रिय) हो और दीन-ओ-शरीअत (धर्म और धार्मिक कानून) का गहरा इल्म रखता हो।”

🟢 “मारूफ़ आलिम-ए-दीन” के मुख़्तलिफ़ पहलू (विभिन्न पक्ष):

1️⃣ दीन-ए-इस्लाम में गहरी समझ रखने वाला

👉 एक मारूफ़ आलिम-ए-दीन वो होता है, जो क़ुरआन (पवित्र ग्रंथ), हदीस (पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ की शिक्षाएं), फ़िक़्ह (इस्लामी क़ानून), और अक़ीदा (आस्था) की पूरी जानकारी रखता हो।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 इमाम अबू हनीफा एक मारूफ़ आलिम-ए-दीन थे। 🟢 (“इस्लामी क़ानून और ज्ञान के बड़े विशेषज्ञ”)
🔸 शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह एक मक़बूल आलिम-ए-दीन थे। 🟢 (“प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान और आध्यात्मिक मार्गदर्शक”)

2️⃣ इस्लामी तालीमात (धार्मिक शिक्षाओं) का प्रचार करने वाला

👉 एक मारूफ़ आलिम-ए-दीन इस्लाम की सही तालीम (शिक्षा) को फैलाने वाला, लोगों को दीन की सही समझ देने वाला, और उम्मत (समुदाय) का रहनुमा (नेता) होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 डॉ. ज़ाकिर नाइक एक मारूफ़ आलिम-ए-दीन माने जाते हैं। 🟢 (“इस्लामी शिक्षा को आधुनिक संदर्भ में समझाने वाले विद्वान”)
🔸 मौलाना अशरफ़ अली थानवी रहमतुल्लाह अलैह ने इस्लामी तालीम को बहुत फैलाया और वो एक मारूफ़ आलिम-ए-दीन थे। 🟢 (“धार्मिक शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने वाले”)

3️⃣ अख़लाक़ी (नैतिक) और समाजी (सामाजिक) रहनुमा

👉 एक सच्चा मारूफ़ आलिम-ए-दीन सिर्फ़ इस्लामी किताबों का जानकार नहीं, बल्कि अख़लाक़ (नैतिकता) और अमल (कर्म) में भी बेहतरीन होता है।

मिसालें (उदाहरण):

🔸 एक सच्चे आलिम-ए-दीन को सिर्फ़ इल्म ही नहीं, बल्कि अख़लाक़ और अमल में भी बेहतरीन होना चाहिए। 🟢 (“ज्ञान के साथ-साथ नैतिक आचरण भी उत्तम होना चाहिए।”)
🔸 जो आलिम-ए-दीन समाज में हक़ और इंसाफ़ (सत्य और न्याय) की बात करता है, वही असल में मारूफ़ और मक़बूल बनता है। 🟢 (“धर्म को न्याय और सच्चाई के साथ पेश करने वाला ही लोगों का प्रिय होता है।”)

9. अकाबिर 

अकाबिर (अकाबिरین) अरबी लफ्ज़ (शब्द) है जिसका मतलब बुज़ुर्ग (वरिष्ठ), बड़े (महान), सम्मानित (प्रतिष्ठित) और अज़ीम (विख्यात) शख़्सियतें (व्यक्तित्व) होता है। इस लफ्ज़ (शब्द) का इस्तेमाल आमतौर पर उन उलमा (विद्वानों), सूफ़िया (संतों), और दीनदार (धर्मपरायण) हस्तियों (महापुरुषों) के लिए किया जाता है जिनका इल्म (ज्ञान), तजुर्बा (अनुभव) और किरदार (चरित्र) बेहतरीन होता है।

अकाबिर की अहमियत

इस्लामी तारीख़ (इतिहास) में अकाबिर (महान हस्तियां) उन हस्तियों (व्यक्तियों) को कहा जाता है जिन्होंने अपने इल्म (ज्ञान), अमल (कर्म) और तक़वा (धर्मपरायणता) से दीन (धर्म) की खिदमत (सेवा) की और उम्मत (समुदाय) को सही रास्ता दिखाया। जैसे कि इमाम ग़ज़ाली (Imam Ghazali), हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Hazrat Khwaja Moinuddin Chishti), शाह वलीउल्लाह देहलवी (Shah Waliullah Dehlavi) वग़ैरा (आदि)।

इस्तेमाल का अंदाज़ (उपयोग का तरीका)
  • हमारे अकाबिर (बुज़ुर्गों) ने हमें तालीम (शिक्षा) दी कि सच्चाई (ईमानदारी) और अमानतदारी (ईमानदारी और भरोसा) सबसे अहम हैं।
  • अकाबिर (महान हस्तियों) की नसीहतों (उपदेशों) पर अमल करने से ज़िंदगी (जीवन) में सकून (शांति) और बरकत (समृद्धि) मिलती है।
  • इस्लाम की तारीख़ (इतिहास) अकाबिर उलमा (महान विद्वानों) और औलिया (संतों) के किरदार (चरित्र) से रोशन है।

अकाबिर (बुज़ुर्गों) का लफ्ज़ (शब्द) उन बड़ी शख़्सियतों (महान हस्तियों) के लिए इस्तेमाल (उपयोग) होता है जो इल्म (ज्ञान) और दीन (धर्म) की राह में क़ुर्बानियाँ (बलिदान) देकर उम्मत (समुदाय) की रहनुमाई (मार्गदर्शन) करते हैं।

10. पुरकशिश 

पुरकशिश (पुरکشش) एक उर्दू (भाषा) का लफ्ज़ (शब्द) है, जिसका मतलब दिलचस्प (आकर्षक), खुबसूरत (सुदर्शन), और मोह लेने वाला (आकर्षणकारी) होता है। यह उन चीज़ों (वस्तुओं), अफ़राद (व्यक्तियों) या अंदाज़ (शैली) के लिए इस्तेमाल होता है जिनमें जज़्ब (आकर्षण) करने की सिफत (गुण) हो।

पुरकशिश की अहमियत

कोई भी शख़्स (व्यक्ति) या शे’ (वस्तु) तब पुरकशिश (आकर्षक) कहलाती है जब वह दूसरों (अन्य लोगों) को अपनी तरफ़ माइल (आकर्षित) करने की सलाहियत (क्षमता) रखती हो।

इस्तेमाल का अंदाज़ (उपयोग का तरीका)
  • उसकी गुफ़्तगू (बातचीत) इतनी पुरकशिश (आकर्षक) थी कि हर कोई सुनने के लिए बेताब (उत्सुक) था।
  • यह मंज़र (दृश्य) इतना पुरकशिश (आकर्षक) है कि देखने वाला हैरत (आश्चर्य) में पड़ जाता है।
  • उसकी शख़्सियत (व्यक्तित्व) बेहद पुरकशिश (आकर्षक) है, हर कोई उससे मुलाक़ात (भेंट) करना चाहता है।

पुरकशिश (आकर्षक) वह सिफत (गुण) है जो किसी भी शख़्स (व्यक्ति), शे’ (वस्तु) या अंदाज़ (शैली) को दूसरों (अन्य लोगों) के लिए दिलचस्प (आकर्षक) और मोह लेने वाला (आकर्षणकारी) बना देती है।