
तआर्रुफ़:
“किसी की कहानी” एक जज़्बाती ग़ज़ल है जो वक़्त, यादों और रिश्तों के बदलते मआनी को गहराई से बयान करती है। यह शायरी उन लम्हों का आईना है, जब इंसान किसी के अफ़साने का हिस्सा होते हुए खुद एक अफ़साना बन जाता है। ग़ज़ल की हर मिसरा दिल की तहों में छिपे दर्द, चुप्पियों और खोई हुई मोहब्बत की आवाज़ बनकर उभरता है। इसमें बीते हुए पल, उजड़े ख़्वाब और दिल में दबी बातें एक रवानी के साथ सामने आती हैं। “क़बीर” की कलम से निकली यह ग़ज़ल उन सभी लोगों को समर्पित है जो किसी ज़माने में सबके लिए सबकुछ थे, मगर अब सिर्फ यादों में बसते हैं — एक अधूरी मगर गूंजती हुई कहानी की तरह।
ग़ज़ल का नाम: “किसी की कहानी”
मतला:
कितने लोगों ने सुनाई हमें दास्ताँ अपनी,
हम भी किसी की कहानी बनकर रह जाएँगे।
कदमों में बिछे थे जो कल तक गुलों की तरह,
वो भी वक़्त की निशानी बनकर रह जाएँगे।-1
हर इक ख़्वाब जो आँखों में रोशन हुआ था कभी,
किसी रोज़ की वीरानी बनकर रह जाएँगे।-2
जिसे समझा था हमने अपना हमराज़ उम्र भर,
वो भी इक याद की रवानी बनकर रह जाएँगे।-3
अभी तो हैं यहाँ कुछ लम्हों की शहनाइयाँ,
कल ग़म की भी निशानी बनकर रह जाएँगे।-4
जिनकी बातों में जादू था, असर था, दर्द था,
वो भी ख़ामोश ज़ुबानी बनकर रह जाएँगे।-5
वो जो रोशन थे जैसे चिराग़-ए-ख़याल में,
अब धुंधली सी निशानी बनकर रह जाएँगे।-6
हमने जो पल जिए थे दर्द और राहत में,
अब किसी की बुझी कहानी बनकर रह जाएँगे।-7
जिसने तोड़ी थी ख़ामोशी मेरे लफ़्ज़ों की,
वो ही फिर इक वीरानी बनकर रह जाएँगे।-8
हम जो कहते रहे उम्र भर कुछ अल्फ़ाज़,
वो भी चुप की जुबानी बनकर रह जाएँगे।-9
हमने खुद को समेटा है हर अल्फ़ाज़ में,
कल ये बस एक निशानी बनकर रह जाएँगे।-10
जिसे सीने में रखा जैसे चिराग़-ए-राह,
अब रुकी सी वो रवानी बनकर रह जाएँगे।-11
मक़ता:
“क़बीर” हम भी थे एक वक़्त में ख़्वाबों जैसे,
अब तहरीर की निशानी बनकर रह जाएँगे।
ख़ात्मा:
“किसी की कहानी” महज़ अल्फ़ाज़ नहीं, बल्कि वो आईना है जिसमें हम अपने बीते रिश्तों और भूले-बिसरे लम्हों की परछाइयाँ देख सकते हैं। यह ग़ज़ल हमें याद दिलाती है कि हर रिश्ता, हर जज़्बा वक़्त के साथ एक निशानी बन जाता है — कोई तहरीर में, कोई ख़ामोशी में। “क़बीर” की ये पेशकश उन सभी लोगों की आवाज़ है, जो कभी किसी की दास्ताँ थे और आज याद बनकर रह गए। जब हम ग़ज़ल के आख़िरी मिसरे तक पहुँचते हैं, तो एक एहसास हमारे साथ रह जाता है — कि हम सब किसी न किसी की कहानी में ज़िंदा रहते हैं, कभी अल्फ़ाज़ों में, तो कभी सिर्फ़ खामोशियों में।
मुश्किल उर्दू अल्फ़ाज़ आसान हिंदी में:
जज़्बाती = भावुक, मआनी = मतलब, अर्थ, अफ़साना = कहानी, मिसरा = शेर की एक पंक्ति, तहों = परतों, रवानी = बहाव, प्रवाह, चिराग़-ए-ख़याल = सोच का दीपक, राहत = सुकून, लफ़्ज़ों = शब्दों, अल्फ़ाज़ = शब्द, तहरीर = लेख, लिखावट, परछाइयाँ = छायाएँ, पेशकश = प्रस्तुति, एहसास = भावना, अनुभूति, ख़ामोशी = चुप्पी, दास्ताँ = कहानी, ज़िंदा = जीवित, गूंजती = सुनाई देती, अधूरी = अधर में लटकी हुई, निशानी = स्मृति, यादगार.