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“ख़ामोशियाँ बोलती हैं” एक ऐसी ग़ज़ल है जो लफ़्ज़ों के शोर में नहीं, बल्कि जज़्बात की तन्हा गलियों में साँस लेती है। ये उन लम्हों का तर्जुमान है जहाँ अल्फ़ाज़ कम पड़ जाते हैं और ख़ामोशी खुद एक बयान बन जाती है। इस ग़ज़ल में शायर ने उस भीतरी हलचल को लफ़्ज़ों में ढाला है, जो न तो खुलकर कहती है, न ही पूरी तरह छुपाई जा सकती है।

यहाँ हर शेर एक ऐसा आईना है जिसमें एक तन्हा रूह अपने ज़ख़्मों को देखती है। फुटपाथ पर सोते ख़्वाब, यादों की बारिश में भीगी कश्तियाँ, और वीरान दीवारों पर गूँजती सिसकियाँ — सब इस बात का सुबूत हैं कि “ख़ामोशियाँ बोलती हैं”।

ग़ज़ल सिर्फ दर्द नहीं बाँटती, बल्कि इस बात की भी तसदीक करती है कि जब अल्फ़ाज़ साथ छोड़ दें, तब भी जज़्बात अपनी राह बना ही लेते हैं — कभी टूटे हुए ख़तों में, कभी ठहरे हुए लम्हों में, और कभी ख़ामोशियों में जो बोलती हैं।

ग़ज़ल“ख़ामोशियाँ बोलती हैं

ज़हन का हर कोना रोशन है ख़यालों की चाँदनी से,
वो क्या करें जो राह खो बैठे इस फ़िक्र-ए-शहर में।-1

काग़ज़ की कश्ती, यादों की बारिश, और तूफ़ाँ की नज़र,
वक़्त बहा ले गया हर चीज़ इस वीरान-ए-शहर में।-2

क़दमों को थामा था हमने यक़ीन की डोर से,
पर खो ही बैठे हौसला फिर इस मुश्किल डगर में।-3

किससे कहें, कौन सुने, किसको खबर करें,
हर कोई मशग़ूल है अब अपने ही सफ़र में।-4

अहसास भी अब गिरवी रख दिए हैं वक़्त को,
कुछ तो है जो बिक चुका है इस दिल के शहर में।-5

फुटपाथ सोते हैं, ख़्वाब ओढ़े सर्द रातों में,
चाँद भी तनहा सा लगता है जुगनुओं के शहर में।-6

दीवारें कहती हैं कुछ, ख़ामोश सी छतें कुछ और,
गूँजता है दर्द बहुत इस बेज़ुबान घर में।-7

मेरे जुनूँ को दाग़ कहकर हँस दिए वो लोग,
जिन्हें सलीक़ा ही नहीं दिल के इस शरर में।-8

सवाल भी हैं, जवाब भी हैं, पर समझ कम है,
उलझ के रह गए हैं लोग अपने ही हुनर में।-9

नसीबों में लिखा है बस इंतिज़ार का मौसम,
ना बहार आई, ना सुकून मिला इस शजर में।-10

कुछ लोग मिलते हैं यूँ ही, छू जाते हैं रूह तलक,
कुछ बस रह जाते हैं जैसे आवाज़ हो सहर में।-11

चुप हैं मगर ज़िंदा हैं, ये भी कम नहीं शायद,
जैसे कोई लौ बची हो आँधियों के डर में।-12

कटता नहीं है वक़्त, ना रुकते हैं हादसे,
कुछ तो है जो कम रह गया था तदबीर-ए-सफ़र में।-13

हवाओं में उड़ते ख़तों को किसने पढ़ा है यूँ बेसबब,
वो क्या जानें जो डूब गए सागर-ए-ग़म की लहर में।

‘क़बीर’ चलो उम्मीद बाँध लें फिर से किसी चराग़ से,
बहुत अँधेरा है अभी इन हसरतों के घर में।-14

"A homeless person sleeps curled on a cold pavement under a torn blanket, surrounded by faintly glowing fireflies (jugnu). Bare winter branches frame a lonely moon in the night sky, evoking deep solitude."

मुश्किल उर्दू अल्फ़ाज़ और उनके आसान हिंदी अर्थ:

लफ़्ज़ — शब्द, जज़्बात — भावनाएँ, तन्हा — अकेला, तर्जुमान — अनुवादक या भावों को अभिव्यक्त करने वाला, अल्फ़ाज़ — शब्द, भीतरी हलचल — अंदर की बेचैनी या उथल-पुथल, रूह — आत्मा, ज़ख़्म — घाव, चोट, कश्ती — नाव, तूफ़ाँ — आँधी, बवंडर, वीरान — सुनसान, उजड़ा हुआ, यक़ीन — विश्वास, डगर — रास्ता, मशग़ूल — व्यस्त, गिरवी — बंधक रखना, शहर — नगर, यहाँ भावनात्मक संसार के रूप में, जुगनू — चमकने वाला कीट (firefly), बेज़ुबान — जो बोल न सके, शरर — चिंगारी, अग्नि, हुनर — कला, कौशल, शजर — पेड़, जीवन का प्रतीक, सहर — सुबह, लौ — दीपक की जलती हुई लौ, तदबीर — योजना, उपाय, सागर-ए-ग़म — दुख का समुद्र, चराग़ — दीपक, उम्मीद का प्रतीक, हसरतें — इच्छाएँ, तमन्नाएँ।