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तआर्रुफ़:

यह ग़ज़ल “ख़ामोश इंक़िलाब” उस बेआवाज़ मगर असरदार जद्द-ओ-जहद का बयान है जो एक तहज़ीब, एक क़ौम, और एक सोच ने हर ज़ुल्म, तशद्दुद और साज़िश के मुक़ाबिल में किया। हर शेर एक जवाब है—शिद्दत के सवाल पर सब्र का, आग के सवाल पर इल्म का, नफ़रत के सवाल पर मोहब्बत का। शायर ने हर मिसरे में अदबी तहज़ीब, इंसानी वजूद, और फ़िक्र-ओ-फ़न को इस अंदाज़ से पिरोया है कि वह सिर्फ़ जवाब नहीं, बल्कि एक मुकम्मल बयान बन जाते हैं। यह ग़ज़ल हमारे वजूद की सदा है, जो ख़ामोश रहकर भी बुलंद आवाज़ बन जाती है। यहाँ हर लफ़्ज़ एक इंक़िलाब है—बिन लहू, बिन तलवार, सिर्फ़ कलम और फ़िक्र के ज़रिए।

ग़ज़ल: ख़ामोश इंक़िलाब

तशद्दुद हुआ बहुत, मगर सब्र से जवाब आया,
जुनून माँग रहा था लहू, अक़्ल से जवाब आया।-1

हमारे हिस्से में ग़म था, न ताज था न ख़िताब,
मगर ज़मीं पे उतर कर, हुनर से जवाब आया।-2

जलाया घर, तो किताबों ने और जल के कहा,
सवाल आग का था—इल्म से जवाब आया।-3

जो पूछता था मेरी पहचान नक़्श-ए-पायाब,
उसे तहज़ीब-ए-दिलकश से जवाब आया।-4

वो चीख़ते रहे मेरे दीन-ओ-ईमान के नाम पर,
हर बार सुकून-ए-वुज़ू की तरह जवाब आया।-5

हिजाब छीना गया जब हमारी बेटियों से,
तो उनकी निगाह-ए-शर्मीली से जवाब आया।-6

सवाल रोज़ नए थे मज़हबी उसूलों पर,
हर बार खामोश तहज़ीब-ए-दिलकश से जवाब आया।-7

हक़ीक़तें न दबेंगी अब अफ़वाहों की भीड़ में,
हर बार सचाई की रवानी से जवाब-ए-गज़ब आया।-8

हमें गिरा के भी खुद को बचा न पाए वो,
हमारे सब्र के दरिया से जवाब आया।-9

वो सोचते थे के हम तो मिटा दिए जाएँगे,
मगर वजूद की जद्द-ओ-जहद से जवाब आया।-10

जिन्हें थी फ़िक्र हमारी सियासतों की तरह,
उन्हें हमारे हर इक फ़न से जवाब आया।-11

सवाल उठता रहा ‘किसके हो, कहाँ से आए?’
हमारे लौह-ए-वतन से जवाब-ए-असर आया।-12

वो बेज़ुबान थे लेकिन असर में थे बुलंद,
हर एक दस्त-ए-गुमनाम से जवाब-ए-तहय्युर आया।-13

मक़ता:
क़बीर’ जो भी उठा लाया फसाद का परचम,
उसे मेरे कलाम-ए-ख़ुलूस से जवाब आया।-14

"A stormy river’s surface reflects chaos, while underwater, a surge of fists, pens, and roses moves relentlessly. A faceless figure tries to chain the river, but it splits into glowing streams leading to distant cities—symbolizing unstoppable resistance."
They thought chains would halt the current,
But the river turned every restraint into new paths.

ख़ातमा:

“ख़ामोश इंक़िलाब” की यह ग़ज़ल एक ऐसे सफ़र का बयान है जो तशद्दुद के दौर में भी तहज़ीब को नहीं छोड़ता। यह शायरी चुप्पी की ताक़त, सब्र की शान और फ़िक्र की ऊँचाई को बयान करती है। इस ग़ज़ल में शायर ने एक-एक शेर के ज़रिए ये साबित किया कि जवाब सिर्फ़ ज़ुबान से नहीं दिए जाते—अक़्ल, हुनर, तहज़ीब, मोहब्बत और इमाँ भी जवाब होते हैं। आख़िरी शेर में ‘क़बीर’ के नाम से शायर ने अपनी शिनाख़्त पेश की है और यह पैग़ाम दिया है कि फसाद उठाने वालों के लिए सबसे बेहतरीन जवाब कलाम-ए-ख़ुलूस है। यह ग़ज़ल उन तमाम लोगों को समर्पित है जो ख़ामोशी से इंक़िलाब लाते हैं—हर बार, हर सवाल पर।

कठिन उर्दू अल्फ़ाज़ का मतलब:

ख़ामोश = चुप, इंक़िलाब = क्रांति, बड़ा बदलाव, बेआवाज़ = बिना आवाज़ के, चुप, असरदार = प्रभावशाली, ताकतवर, जद्द-ओ-जहद = संघर्ष, मेहनत, तहज़ीब = संस्कृति, सभ्यता, क़ौम = समुदाय, जनता, ज़ुल्म = अत्याचार, तशद्दुद = हिंसा, ज़ोर-ज़बरदस्ती, साज़िश = षड्यंत्र, चालाकी, शिद्दत = ताक़त, ज़ोर, इल्म = ज्ञान, पढ़ाई, नफ़रत = द्वेष, नाराज़गी, मोहब्बत = प्यार, अदबी = साहित्यिक, वजूद = अस्तित्व, होना, ज़िंदगी, फ़िक्र-ओ-फ़न = सोच और कला, मुकम्मल = पूरा, संपूर्ण, सदा = आवाज़, पुकार, कलम = लेखन का उपकरण, जुनून = बहुत ज़्यादा जोश या इच्छा, माँग रहा था लहू = खून की मांग कर रहा था (यानी हिंसा या लड़ाई), अक़्ल = बुद्धि, समझदारी, हुनर = कला, कौशल, सवाल = प्रश्न, नक़्श-ए-पायाब = पैरों के निशान, पहचान का निशान, तहज़ीब-ए-दिलकश = मनमोहक संस्कृति या सभ्यता, दीन-ओ-

ईमान = धर्म और विश्वास, सुकून-ए-वुज़ू = पवित्रता का एहसास, हिजाब = पर्दा, चुनरी, निगाह-ए-शर्मीली = शर्मीली नजर, मज़हबी उसूल = धार्मिक नियम, अफ़वाहों की भीड़ = झूठी बातें फैलाने वाली भीड़, रवानी = बहाव, प्रवाह, ग़ज़ब = ग़ुस्सा, क्रोध, दरिया = नदी, यहाँ धैर्य का प्रतीक, फ़िक्र = चिंता या सोच, फ़न = कला, लौह-ए-वतन = देश की मिट्टी या देशभक्ति का निशान, असर = प्रभाव, दस्त-ए-गुमनाम = अनजानी हाथ, यानी अज्ञात लोग, तहय्युर = हैरानी, चौंकना, कलाम-ए-ख़ुलूस = सच्चे दिल से कहा गया शब्द या बातें, सफ़र = यात्रा, चुप्पी = मौन, खामोशी, ताक़त = शक्ति, शान = गरिमा, सम्मान, ऊँचाई = महानता, स्तर, शेर = कविता का एक भाग, ज़ुबान = बोलने की भाषा, इमाँ = आस्था, विश्वास, शिनाख़्त = पहचान, पैग़ाम = संदेश, फसाद = विवाद, बर्बादी, समर्पित = देना।