
तआर्रुफ़:
“भूल चले हैं” एक दर्द से लिपटी हुई ग़ज़ल है जो मोहब्बत, जुदाई और बेवफ़ाई के उन लम्हों को बयान करती है, जहाँ चाहने वाले की मौजूदगी अब सिर्फ़ यादों में सिमट कर रह जाती है। यह ग़ज़ल उन रिश्तों की तहरीर है जिनमें वफ़ा की उम्मीद थी लेकिन बदले में तन्हाई मिली। हर शेर टूटे हुए दिल की एक सदा है, जिसमें कभी महकते लफ़्ज़ थे, और अब सिर्फ़ सिसकती आवाज़ बची है। “क़बीर” ने इस ग़ज़ल में अपनी शायरी के ज़रिए एक ऐसे सफ़र को कलमबंद किया है जहाँ अज़ीज़ लोग यादों से भी रुख़सत हो चुके हैं। यह ग़ज़ल सिर्फ़ एक कहानी नहीं, हर उस शख़्स का आईना है जिसे कभी किसी ने पूरी शिद्दत से चाहा, मगर बदले में भुला दिया।
ग़ज़ल: “भूल चले हैं”
मतला:
क्यों न हो हम भी उदास, क्यों न आए आँसू,
जिन पर मरते थे, वो हमें भूल चले हैं।
जिनके लिए हमने तोड़ दिए अपने सपने,
वो हमारे ही अरमानों को रौंद चले हैं।-1
दिल ने जिनको माना था कभी दिल का सुकून,
अब वही दिल को तन्हा कर छोड़ चले हैं।-2
जिनके लबों पे बसता था नाम हमारा,
अब वो ग़ैरों के क़िस्से भी जोड़ चले हैं।-3
हमने जो ख्वाब पाले थे उम्र भर के लिए,
वो बिना देखे ही सब कुछ छोड़ चले हैं।-4
हमसे जो खींचते थे हर दर्द की स्याही,
वही अब हमें ही किताबों से फाड़ चले हैं।-5
जिनसे सीखी थी वफ़ा साँसों की तर्ज़ पे,
वही अब बेवफ़ाई की मिसाल हो चले हैं।-6
जिनके लिए दिल को जला बैठा था ‘क़बीर’,
वो हमें राख में तन्हा छोड़ चले हैं।-7
हम जो बैठे रहे राहों में उनकी आस लिए,
वो हमारे सब इंतज़ारों को ही छल चले हैं।-8
गुलों की तरह महकती थी हमारी ये सदा,
अब उसी साज़-ए-नवा को कुचल चले हैं।-9
जिनसे बाँटी थी रूह की खामोशियाँ,
वो हमारे लफ़्ज़ों को भी झुठला चले हैं।-10
हमसे जो कहते थे, ‘तुम ही हो बस तुम’,
अब किसी और के होके बदल चले हैं।-11
मक़ता:
“क़बीर” अब तो शिकायत भी नहीं रही उनसे,
जो कभी जान थे हमारी, अब दिल से निकल चले हैं।
ख़ात्मा:
“भूल चले हैं” सिर्फ़ एक ग़ज़ल नहीं बल्कि एक दर्द की दस्तावेज़ है, जिसमें मोहब्बत के हर उस मोड़ को दर्ज किया गया है जहाँ रिश्ता सिर्फ़ नाम का रह जाता है और एहसास दरारों में बिखर जाते हैं। यह ग़ज़ल उन लोगों के लिए है जो कभी किसी के लिए सब कुछ छोड़ बैठे थे, लेकिन बदले में तन्हाई की चादर ओढ़ने पर मजबूर हो गए। “क़बीर” की ये शायरी हर उस दिल की आवाज़ है जो खामोश है लेकिन टूटा नहीं। यह ग़ज़ल हमें याद दिलाती है कि मोहब्बत की राहें हमेशा फूलों से नहीं भरी होतीं, कभी-कभी वो रूह तक को ज़ख़्मी कर जाती हैं। और शायद इसी का नाम इश्क़ है — सच्चा, मगर बेमुलाक़ात।
उर्दू शब्द – आसान हिंदी मतलब:
ग़ज़ल – शायरी का एक ख़ास रूप, तआर्रुफ़ – परिचय, दर्द – पीड़ा, जुदाई – बिछड़ना, बेवफ़ाई – विश्वासघात, लम्हे – पल, मौजूदगी – उपस्थिति, सिमट – सघन या छोटी हो जाना, तहरीर – लेख या दस्तावेज़, वफ़ा – निष्ठा, तन्हाई – अकेलापन, सदा – आवाज़, महकते – खुशबू बिखेरते, सिसकती – हल्की रोने की आवाज़, कलमबंद – लिख देना, अज़ीज़ – प्रिय, रुख़सत – विदा लेना, शिद्दत – तीव्रता से, मतला – ग़ज़ल का पहला शेर, अरमान – इच्छा, रौंद – कुचल देना, सुकून – चैन, लबों – होंठों, ग़ैरों – अजनबियों, ख़्वाब – सपना, स्याही – काली स्याही, तर्ज़ – तरीका, मिसाल – उदाहरण, राख – जली हुई राख, इंतज़ार – प्रतीक्षा, छल – धोखा, साज़-ए-नवा – मधुर स्वर का वाद्य, रूह – आत्मा, ख़ामोशियाँ – चुप्पियाँ, झुठला – अस्वीकार करना, मक़ता – आख़िरी शेर जिसमें शायर का नाम हो, शिकायत – गिला, दस्तावेज़ – लिखित प्रमाण, दरार – टूटन, चादर – ओढ़नी, राहें – रास्ते, ज़ख़्मी – घायल, बेमुलाक़ात – बिना मिले हुए।