Spread the love

तआर्रुफ़:_

“ग़ुस्सा-ए-वफ़ा”  एक दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल है जो मोहब्बत के उन लम्हों को बयाँ करती है जहाँ जुदाई भी वफ़ा का सबूत लगती है। यह ग़ज़ल उर्दू शायरी की नाज़ुक रवायत को समेटे हुए, इश्क़ के अनकहे जज़्बात और छुपे हुए दर्द को बेहद ख़ूबसूरती से पेश करती है। मतला से लेकर मक़्ता तक हर शेर में महबूब की बेरुख़ी में छिपा लुत्फ़-ए-मोहब्बत झलकता है। यह शायरी ना सिर्फ़ जज़्बात का इज़हार है बल्कि दिल की उन तन्हाइयों का बयान है जो मोहब्बत में बिछड़ जाने के बाद भी दिल को उसी की तरफ़ खींचती हैं। “कबीर” की ये ग़ज़ल उन दिलों के लिए है जो दूर रहकर भी किसी की क़ुर्बत महसूस करते हैं।

ग़ज़ल: “ग़ुस्सा-ए-वफ़ा”

मतला:
उसकी बेरुख़ी में भी कोई एहसास छुपा लगता है,
ये मोहब्बत को छुपाने का अंदाज़ नया लगता है।

शेर:
उसकी नज़रों में कोई शाम छुपी बैठी है,
हर झलक उसकी मोहब्बत का इशारा लगता है।-1

तर्क-ए-तअल्लुक़ की बातें भी कुछ यूँ कही उसने,
जैसे हर बात में एक नर्म सा लहज़ा लगता है।-2

हमने रो-रो के पुकारा तो ये राज़ खुला,
वो जो दूर है, दिल के बहुत क़रीब लगता है।-3

तन्हा रातों में जब यादें उसका ज़िक्र-ए-ग़म सुनाती हैं,
दिल का हर ज़ख़्म एक नग़्मा-ए-वफ़ा सा लगता है।-4

हर सफ़्हे में उसी की तहरीर-ए-ग़म मिलती है,
दिल अब उसी की किताब-ए-हयात लगता है।-5

मैंने पूछा तो कहा, ‘बस यूँ ही ख़फ़ा हूँ तुमसे’,
इस ग़ुस्से में भी कोई अरमान-ए-वफ़ा लगता है।-6

देखो तो साथ नहीं, न देखो तो याद आते हो,
तेरा शिकवा भी मेरी चाहत की सज़ा लगता है।-7

कितनी बार कहा ‘अब नहीं मिलना’, मगर फिर भी,
हर मुलाक़ात पहली सी मुलाक़ात-ए-तमन्ना लगता है।-8

जलते हैं हम भी कि उसकी नज़र किसी और पर,
पर ये जलन भी उसी का करम-ए-वफ़ा लगता है।-9

मक़्ता:
“कबीर” अब तक नहीं समझ पाया कोई उसे,
दिल से दूर है, मगर पास का एहसास लगता है।

A burning candle melts into a heart-shaped pool of wax in a dim, lonely room. Scattered old love letters surround it, with one open letter showing an Urdu verse: "वो जो दूर है, दिल के बहुत क़रीब लगता है।" The atmosphere holds a silent sorrow, reflecting a gentle pain—ग़ुस्सा-ए-वफ़ा. Outside the window, a crescent moon shines softly, illuminating two shadows that stand close but never touch, symbolizing love bound by distance.
“वो जो दूर है, दिल के बहुत क़रीब लगता है…”
(The one who is far away feels so close to the heart…)
Love burns in silence, and distance only deepens the ache. 💔✨

ख़ात्मा:_

“ग़ुस्सा-ए-वफ़ा” एक ऐसी ग़ज़ल है जो मोहब्बत के ख़ामोश पहलुओं को अल्फ़ाज़ देती है। इसमें ना शिकवा है, ना शिकायत—सिर्फ़ एक गहरा अहसास है जो बेरुख़ी के पर्दे में भी वफ़ा तलाशता है। हर शेर में एक ग़ैर-मामूली दर्द है, मगर वो दर्द भी मोहब्बत का ही हिस्सा बनकर सामने आता है। कबीर की यह ग़ज़ल उन लोगों के लिए आईना है जो जज़्बात को अल्फ़ाज़ देने की कोशिश में रहते हैं। यह ग़ज़ल साबित करती है कि इश्क़ महज़ पास होने का नाम नहीं, बल्कि उस एहसास का नाम है जो जुदाई में भी ज़िंदा रहता है। इसकी नर्म, गहरी और सच्ची बातों से हर मुहब्बत करने वाला ख़ुद को जोड़ सकता है।