ज़ुल्म की वीरानी पर ग़ज़ल –

ग़ज़ल: “ज़ुल्म की वीरानी को ग़म-ए-दिलख्वे ना दे”

ज़न्नत-ए-कश्मीर को ज़ुल्म-ए-सियाह का सितम-ए-सहे ना दे,
बेगुनाहों के ख़ून से फ़र्द-ए-ख़ुदा को ग़म-ए-दिलख्वे ना दे।

नफ़रतों की साज़िशों में मोहब्बतों की चिराग़ी जले ना दे,
अम्न की इस वादी को ज़ख़्मों का मरहम-ए-कहे ना दे।

हर सदा पे उठते हैं अब सवालात तख़्लीक़ के,
बेसबब हर आह को तू सब्र का इल्ज़ाम-ए-बने ना दे।

जिनकी आँखों में थे कभी ख़्वाब-ए-सहर,
उन नज़रों को तू अब ख़ौफ़ का लिबास-ए-पहने ना दे।

मस्जिदों में अब सज़दे भी सहमे-सहमे से हैं,
इस फ़िज़ा को तू दहशत की सदा का बयां-ए-जले ना दे।

जिस ज़मीं पर चला करते थे क़ाफ़िले प्यार के,
उसी राह को तू अब आँसुओं का निशान-ए-कहे ना दे।

माँओं के आँगन में जो किलकारियाँ गूंजती थीं,
उन लम्हों को तू अब मातम का सुर-ए-सने ना दे।

शहादतों के शहर में अब बसी है चुप की जुबाँ,
इस ख़ामोशी को तू जंगे हक़ का बहाना-ए-बने ना दे।

सियासत के इन हाथों में खंजर हैं नर्म लफ़्ज़ों के,
इन लफ़्ज़ों को तू हक़ का झूठा तराना-ए-कहे ना दे।

जिसने भी इल्म-ओ-दिल से जन्नत का ख्वाब बुन लिया,
उसके सपनों को तू राख का नज़ारा-ए-जले ना दे।

हमने मोहब्बत को किताबों से सीखा था कभी,
उस किताब को तू अब नफ़रत का फ़साना-ए-बने ना दे।

हर मर्सिया में अब महज़ दर्द का तर्ज़ होता है,
इस तहज़ीब को तू रुसवाई का अफ़साना-ए-कहे ना दे।

कितनी मासूम रूहें हैं जो आज भी बेज़ुबां हैं,
उन सायों को तू बे-गुनाही का जनाज़ा-ए-सहे ना दे।

जो ग़ुलाबों के चमन में बहारों का रंग थे,
उन्हीं फूलों को तू अब ख़ूं का गवाह-ए-जले ना दे।

हर सहर को रोक लेती हैं अब ख़बरें लहू की,
ऐ ख़ुदा! तू इस सुबह को सदा का अंधेरा-ए-बने ना दे।

ग़म की स्याही से न लिख इंसाफ़ का कोई फ़स्ल,
इस अदालत को तू ज़ुल्म का फ़ैसला-ए-कहे ना दे।

हर गली में बिछ गया है साया-ए-ख़ौफ़ का सन्नाटा,
इस शहर को तू कभी जंग का नक़्शा-ए-जले ना दे।

रंग-ओ-नूर से बसा था जो माज़ी का अफ़साना,
उस हुस्न को तू अब हिज्र की तन्हाई-ए-बने ना दे।

तल्ख़ियाँ हैं हर तरफ़, फिर भी मोहब्बत ज़िंदा है,
इस सच्चाई को तू झूठ का नश्तर-ए-सहे ना दे।

ज़ुल्म की वीरानी ने ग़म-ए-दीद का आलम दिया,
तू इस राह को कभी और अंधेरे का रस्ता-ए-ख़ुदा न दे।

‘क़बीर’ की दुआ है — सुकूँ में रहे हर दिल का जहान,
इंसानियत को तू फिर से दर्द का क़ाफ़िला-ए-कहे ना दे।

A serene landscape with a calm river, diverse people praying together, symbolizing unity and peace, under a warm sunset sky."
A harmonious gathering of people from different backgrounds, united in prayer, in a tranquil setting that reflects hope, peace, and the essence of humanity.”