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✍️ तआर्रुफ़:

“जुदाई का ग़म” एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि एहसासात की वो ज़मीन है जिस पर हर आशिक़ के आँसू बोए गए हैं। इस ग़ज़ल में तन्हाई, जुदाई, रुसवाई, और इश्क़ की बेज़ुबान तकलीफ़ को शायरी की शक्ल दी गई है। हर शेर एक मुकम्मल तजुर्बा है — जो उन लोगों को छूता है जो चाह कर भी किसी को भूल नहीं पाए। इसमें ‘इज़ाफ़ती लफ़्ज़’ का ख़ास इस्तेमाल, अशआर में नफ़ासत और रवानी पैदा करता है। ‘कबीर’ के क़लम से निकली ये ग़ज़ल उन दिलों के लिए है, जो मुस्कराते हुए भी कहीं अंदर से टूटे होते हैं।

📝 ग़ज़ल: “जुदाई का ग़म”

मतला:

जुबाँ से क्या कहें हम तन्हाई का ग़म,
सदाओं में छुपा है रुसवाई का ग़म।

जो लम्हा-लम्हा बिखरे, वो हाल क्या कहे,
बयाँ करता है चुप में रुसवाई का ग़म।-1

नज़र के सामने सब कुछ था मगर क्या था,
न था जो पास, वही था तन्हाई का ग़म।-2

हुनरमंद थे हम भी हँसी लफ्ज़ों के लेकिन,
छुपा ना पाए दिल से जुदाई का ग़म।-3

न चेहरों में चमक, न लब पे कोई रंग,
उतर चुका है रूह में पुरवाई का ग़म।-4

कभी जो अश्क़ में लिपटी थी सारी बातें,
अब आँख भी न कहती सच्चाई का ग़म।-5

लबों से कुछ न निकला मगर साँसें बुझीं,
गवाही दे रहा था गहराई-ए-ग़म।-6

जो अश्क़ गिरते रहे तन्हा रातों में,
वो थे निशान-ए-दर्द, कहानी-ए-ग़म।-7

वो लौट आते तो क्या हासिल होता,
हमारे हिस्से रही तन्हाई-ए-नम।-8

जो रूठ जाए तो सदियाँ लगती हैं मनाने में,
जुदा हो जाए तो रह जाए याद-ए-ग़म।-9

मक़ता:

“कबीर” अब तो दिल में ये आहटें बसती हैं,
हर सन्नाटे में गूंजे जुदाई का ग़म।

🔚 ख़ातमा:

“जुदाई का ग़म” सिर्फ़ महबूब से दूर होने का नाम नहीं, बल्कि वो तजुर्बा है जो इंसान की रूह में उतर जाता है। इस ग़ज़ल में हर शेर एक ऐसी कहानी है जो हर टूटे हुए दिल की ज़बान बन सकती है। ‘कबीर’ ने जिन लफ़्ज़ों में जुदाई को पिरोया है, वो महज़ अल्फ़ाज़ नहीं, एक मुकम्मल अहसास हैं। इज़ाफ़ती अल्फ़ाज़ की मौजूदगी शेरों को शायरी का ख़ालिस रूप देती है और ग़ज़ल को एक अदबी ऊँचाई पर ले जाती है। यह ग़ज़ल उनके लिए है जो बिछुड़ कर भी मोहब्बत निभाते हैं — ख़ामोशी से, तन्हाई में, बिना किसी शोर के।

📚 मुश्किल अल्फ़ाज़ के मअ’नी:

इज़ाफ़त: सम्बन्ध/रिश्ता, रुसवाई: अपमान/बदनामी, तख़य्युल: कल्पना, ग़ुबार: धूल/धुंध, सदाएँ: आवाज़ें, गहराई: ग़ज़ब की तीव्रता, सन्नाटा: ख़ामोशी, सबक़: सीख, सजदा: सिर झुकाना (नमाज़ में), सख़्ती: कठोरता, चुप: ख़ामोशी, नम: भीगा हुआ, सलाम: अभिवादन या सच्चाई, दम: सांस/क्षण, जज़्बात: भावनाएँ