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🖋️ तआर्रुफ़ (Introduction):

“तेरी यादों का नूर” एक रूहानी ग़ज़ल है जो मोहब्बत की ख़ामोश गहराई और जुदाई के बाद भी महबूब की मौजूदगी का अहसास बयाँ करती है। इसमें शायर “क़बीर” ने अपने जज़्बातों को इस अंदाज़ में पिरोया है कि हर शेर एक सांस की तरह दिल में उतरता है। इस ग़ज़ल की ख़ासियत है — सादगी में बसी पाक मोहब्बत, लफ़्ज़ों में नूर की तरह घुलता हुआ एहसास, और रदीफ़ “जाते हो” की लगातार गूँजती हुई मिठास। यह ग़ज़ल हर उस दिल की आवाज़ है जिसने मोहब्बत को सिर्फ महसूस किया है — बिन आवाज़, बिन शक्ल।

ग़ज़ल: तेरी यादों का नूर

मतला:

मेरे दिल में चुपके से कैसे उतर जाते हो,
जैसे साँसों में कोई नूर सा भर जाते हो।

कभी तसव्वुर में आके मुझसे कुछ कहते हो,
कभी ख़्वाबों में आहिस्ता से बिखर जाते हो।-1

तेरे लफ़्ज़ों का असर अब भी वैसा है,
जो कह दो, दिल में सदियों तक ठहर जाते हो।-2

कभी आँखों से छलकते हो अश्क बनकर,
कभी होंठों पे मुस्कान में उतर जाते हो।-3

तेरी ख़ुशबू सी कुछ बात बाक़ी है,
तुम जुदा होके भी मुझमें रह जाते हो।-4

तेरी याद में जो अल्फ़ाज़ पिरोए थे कभी,
वो किताबों से नहीं, दिल से उतर जाते हो।-5

तू हवा की तरह आता है, चला जाता है,
मगर साँसों में सदा के लिए बस जाते हो।-6

तेरे बिना कोई भी रात मुकम्मल न हुई,
हर सितारे में तुम्हीं नज़र आ जाते हो।-7

तेरे चेहरे का नूर कुछ ऐसा है,
अंधेरों में भी तुम ही नज़र आ जाते हो।-8

तेरी हर बात अब रस्म-ए-हयात बन गई,
तुम लफ़्ज़ों में उतर के साँस बन जाते हो।-9

तेरी यादों में अब रंगीनियाँ मिलती हैं,
तन्हा लम्हों में भी साथ निभा जाते हो।-10

तेरे इश्क़ ने मुझे सलीक़ा दिया,
हर अधूरी बात मुकम्मल कर जाते हो।-11

मक़ता:

“क़बीर” को अब तन्हाई भी तेरी लगती है,
तू जुदा होकर भी हर तरफ़ मुस्कराते हो।

🖋️ ख़त्मा (Conclusion):

“तेरी यादों का नूर” महज़ एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि एक अहसास है जो उन लम्हों में ज़िंदा रहता है जब हम अपनी तन्हाई में किसी के नूर से रौशन हो जाते हैं। इसमें इश्क़ का वो पहलू झलकता है जो वक़्त और दूरी से परे, साँसों में उतरकर हमेशा के लिए ज़िंदा रहता है। “क़बीर” का अंदाज़, अल्फ़ाज़ और जज़्बात मिलकर एक ऐसी नज़्म बनाते हैं जो दिल को छूकर रूह तक उतर जाती है

कठिन उर्दू शब्दों के सरल अर्थ:

रूहानी – आत्मा से जुड़ा हुआ, मोहब्बत – प्यार, ख़ामोश गहराई – चुपचाप मगर गहराई से भरा, महबूब – जिसे प्यार किया जाए, अहसास – भावना, शायर – कविता/ग़ज़ल लिखने वाला, जज़्बात – भावनाएँ, पिरोया – सजाया/जोड़ा गया, नूर – रौशनी, रदीफ़ – ग़ज़ल में दोहराया जाने वाला अंतिम शब्द, तसव्वुर – कल्पना, ख़्वाब – सपना, आहिस्ता – धीरे से, ठहरना – रुक जाना, अश्क – आँसू, वाबस्ता – जुड़ा हुआ, सदा – हमेशा, मुकम्मल – पूरा/पूर्ण, रस्म-ए-हयात – जीने का तरीका, लफ़्ज़ – शब्द, तन्हा – अकेला, लम्हा – पल, सलीक़ा – ढंग, अधूरी – अधूरा, मक़ता – ग़ज़ल का आख़िरी शेर जिसमें शायर का नाम होता है, नज़्म – कविता या रचना।