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🟢 तआर्रुफ़:

मोहब्बत एक ऐसा अहसास है जो बिछड़ने के बाद भी ज़िंदा रहता है, कभी यादों में, तो कभी ख़्वाबों में। “नक़्श-ए-पाय तेरे” नाम की यह ग़ज़ल, एक ऐसे दिल की दास्तान है जो किसी के जाने के बाद भी उसका नाम, उसकी बातें और उसकी निशानियाँ सीने में महफूज़ रखे हुए है। यह अशआर उस दर्द को लफ़्ज़ों में ढालते हैं जो अक्सर चुपचाप दिल में पलते हैं। हर मिसरा एक अधूरी मुलाक़ात, हर शेर एक मुकम्मल जज़्बा बयान करता है। इस ग़ज़ल में मोहब्बत की रवानी है, जुदाई की तड़प है और इंतज़ार की शिद्दत भी। एक दिल की पुकार है जो अब भी उसी मोड़ पर ठहरी हुई है, जहाँ वादा-ए-वापसी किया गया था।

ग़ज़ल: “नक़्श-ए-पाय तेरे”
मतला:

दिल के चमन में बाकी हैं कुछ निशान तेरे,
अब तो राह में मिलते हैं बस ख्वाब तेरे।

तेरे बिना ये मौसम भी कुछ उदास है,
अब बहार में भी ढूंढते हैं नक़्श-ए-पाय तेरे।-1

हर शाम तेरा ज़िक्र लिए लौट आती है,
जैसे हवाओं में बिखर गए हों अल्फ़ाज़ तेरे।-2

जो बच गए थे आंखों से वो आंसू भी अब,
टपकने लगे हैं सुनकर अल्फ़ाज़ तेरे।-3

संभाल रखी हैं अब भी वो चिट्ठियाँ तेरी,
जिनमें थे जज़्बात और इज़हार के तेरे।-4

बिछड़ने का वो मंजर अब भी है आँखों में,
दिल में समाए हैं अब तक हिसाब तेरे।-5

हमने तो वक्त से भी ये कह दिया खुल के,
ना पूछे अब कोई किस्से-गुज़िश्ता तेरे।-6

लोग कहते हैं अब भूल जा उसे,
उन्हें क्या पता था असर-ए-ख़्वाब तेरे।-7

मिलना तो तुझसे मुमकिन नहीं रहा,
मगर ख्वाबों में रोज़ आते हैं जवाब तेरे।-8

तेरे बाद किसी से मोहब्बत न हो सकी,
दिल में अभी तक महफूज़ हैं नक़ाब तेरे।-9

जिस मोड़ पे तूने कहा था “लौट आऊंगी”,
वहीं खड़े हैं आज भी हम, लिए ख्वाब तेरे।-10

लौट आ अगर हो सके तो एक बार,
अब भी महफूज़ है दिल में मक़ाम तेरे।-11

तेरे बाद किसी और की आरज़ू न रही,
खुदा से भी अब नहीं कोई जवाब तेरे।-12

मक़ता:
क़ासिद से कह दो अब ना लाए कोई ख़बर,
‘कबीर’ ने बंद कर दिए हैं अब ख़त तेरे।

A lone man stands at a quiet, dusty crossroads at dusk, staring at fading footprints. Cherry blossom petals drift around him in the soft breeze, as if time itself hesitates. His empty hands and downturned gaze speak of a promise unfulfilled.
“Some paths are marked by footprints—others by the weight of the steps not taken.”

🔴 ख़ातमा:

“नक़्श-ए-पाय तेरे” एक रूहानी सफ़र है—जिसमें इश्क़ की मासूमियत, जुदाई की कसक और वफ़ा की गहराई नज़र आती है। यह ग़ज़ल न सिर्फ़ एक हारे हुए आशिक़ की आह बनकर उभरी है, बल्कि उन तमाम दिलों की आवाज़ भी है जो आज भी अपने महबूब के नक़्श-ए-कदम को तलाशते हैं। मक़ते में ‘कबीर’ ने बड़ी ख़ूबसूरती से अपने इश्क़ की तासीर को अल्फ़ाज़ दिए हैं—जहाँ अब ख़बरों की भी ज़रूरत नहीं रही, क्योंकि मोहब्बत अब खामोश हो चुकी है। यह ग़ज़ल उन पाठकों के दिल को छू लेगी जो जज़्बात को सिर्फ़ पढ़ते नहीं, महसूस भी करते हैं। मोहब्बत की इस दस्तान में हर शेर एक धड़कता लम्हा है—जो कभी किसी के दिल का हिस्सा रहा होगा।

📘 मुश्किल उर्दू अल्फ़ाज़ के आसान हिंदी अर्थ:

मोहब्बत – प्यार | अहसास – महसूस होना / भावना | बिछड़ने – जुदा हो जाना / अलग हो जाना | ख़्वाब – सपना | ग़ज़ल – शायरी की एक खास विधा | दास्तान – कहानी | महफूज़ – सुरक्षित / संभाल कर रखा गया | अशआर – शेर (ग़ज़ल की पंक्तियाँ) | लफ़्ज़ – शब्द | अधूरी मुलाक़ात – पूरी न हो पाई मुलाकात | मुकम्मल – पूरा / सम्पूर्ण | जज़्बा – भावना / इमोशन | रवानी – बहाव / प्रवाह | जुदाई – बिछड़ने का दर्द | शिद्दत – गहराई / तीव्रता | वादा-ए-वापसी – लौट आने का वादा

रूहानी – आत्मिक / दिल से जुड़ा हुआ | सफ़र – यात्रा | मासूमियत – सरलता / निश्छलता | कसक – चुभन / दर्द | वफ़ा – सच्चाई / निष्ठा / प्रेम में सच्चाई | हारे हुए आशिक़ – दुखी प्रेमी | आह – गहरी सांस / दुख की आवाज़ | महबूब – प्रिय / जिससे प्यार हो | नक़्श-ए-कदम – पैरों के निशान | तासीर – असर / प्रभाव | क़ासिद – संदेश लाने वाला / डाकिया | ख़बर – समाचार / सूचना | ख़त – पत्र / चिट्ठी | महसूस – अनुभव करना / दिल से जानना | धड़कता लम्हा – दिल को छू लेने वाला पल

दिल के चमन – दिल का बाग़ / हृदय का भावनात्मक संसार | निशान – चिन्ह / यादगार | नक़्श-ए-पाय – पैरों के निशान | ज़िक्र – चर्चा / स्मरण | अल्फ़ाज़ – शब्द | जज़्बात – भावनाएँ / इमोशन्स | इज़हार – अभिव्यक्ति / व्यक्त करना | मंजर – दृश्य / सीन | हिसाब – लेखा-जोखा / सब कुछ जो दिल में जमा है | किस्से-गुज़िश्ता – बीते हुए क़िस्से / पुरानी बातें | असर-ए-ख़्वाब – सपनों का प्रभाव | नक़ाब – परदा / ढकने की चीज़ (यहाँ: छुपी हुई यादें) | मोड़ – रास्ते का मोड़ / जीवन का मोड़ | मक़ाम – स्थान / जगह | आरज़ू – इच्छा / तमन्ना | ख़ुदा – भगवान / ईश्वर | जवाब – उत्तर / प्रतिक्रिया