यह ग़ज़ल “पंचर वाले” उन्हीं शख़्सीयतों का एहतराम करती है, जिन्होंने अपनी मेहनत और कुर्बानियों से अंधेरों में रोशनी पैदा की। हमारे समाज में ऐसे बे़शुमार लोग हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, जद्दो-जहद और अज़्म से न सिर्फ अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाई बल्कि पूरे मुल्क और दुनिया में अपने कारनामों से एक निशान छोड़ दिया।

ग़ज़ल: पंचर वाले

मुजरिम नहीं हलाल रिज़्क कमाने वाले,
सिर्फ हम ही नहीं, और भी हैं पंचर वाले।

हम सब जानते हैं कि कामयाबी के लिए ईमानदारी और मेहनत की कितनी अहमियत है। यह ग़ज़ल उन्हीं लोगों की तरफ इशारा करती है, जो बिना किसी दिखावे के अपनी मेहनत और जद्दो-जहद से समाज में तवील बदलाव लाते हैं।

मिसाइल मैन-ए हिन्द बने खुशियों की क़ीमत पर,
वो भारत रत्न कलाम भी थे क्या पंचर वाले।

डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे अज़ीम रहनुमा, जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी भारतीय साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मुल्क की खिदमत की, उनका ज़िंदगी का सबक ये है कि किसी भी काम में हिस्सा लेने का तरीका हमेशा सच्चाई और मेहनत से ही होता है।

शहादत की मिसाल बना अब्दुल हमीद,
सीमा पे लड़े, मिट्टी में मिले पंचर वाले।

हमारे बहादुर फौजी, जो अपनी जान की क़ुर्बानी दे कर मुल्क की सरहदों की हिफ़ाज़त करते हैं, वो वाक़ई में पंचर वाले हैं। उनकी क़ुर्बानियों की वजह से ही हम महफूज़ हैं।

ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी के क़िस्से हैं,
सर उठा के मरे, ना थे कभी झुके पंचर वाले।

यह ग़ज़ल हमें उन अज़ीम लोगों की याद दिलाती है जिन्होंने हर हालत में अपनी इज्जत-नफ्स को बरकरार रखा और कभी अपनी ज़मीन को नुकसान पहुंचाने वाले दुश्मन के सामने नहीं झुके।

अशफ़ाक ने हँसते-हँसते फांसी को अपनाया,
इंक़लाब की राह में निकले थे पंचर वाले।

इंक़लाब की राह पर चलते हुए अशफ़ाक अहमद ने अपनी जान की क़ुर्बानी दी। उनकी क़ुर्बानी ने हमें यह सिखाया कि हक़ीकी तबीली के लिए हमें अपनी ज़िंदगी की क़ीमत लगानी पड़ती है।

इंडिया गेट पर भी हैं नाम हमारे ख़ून के,
शहादत की कहानी भी कहें पंचर वाले।

हज़ारों लोग अपनी जानों की क़ुर्बानी दे कर हिन्दुस्तान के तअरीख़ में जिंदा हैं। उनकी क़ुर्बानियाँ हम सब के लिए एक सबक हैं कि हम भी अपने मुल्क और समाज की बेहतरी के लिए काम करें।

हसन ख़ान मेवाती ने दुश्मन को ललकारा,
गर्व से बोले, हम हैं यही पंचर वाले।

हमारी तअरीख़ में बे़शुमार ऐसे किरदार हैं जिन्होंने अपनी क़ुर्बानियों और बहादुरी से हमें इज़्ज़त और आज़ादी दिलाई।

अज़हरुद्दीन ने बल्ला चलाया जैसे कलाम,
क्रिकेट के मैदान में चमके पंचर वाले।

क्रिकेट के मैदान में भी हमारे खिलाड़ी अपनी मेहनत और अज़्म से दुनिया भर में भारत का नाम रोशन कर चुके हैं।

सानिया ने टेनिस में हिंद को नाम दिया,
जो कभी गली में खेलते थे वो पंचर वाले।

आज हम दुनिया के हर कोने में अपने खिलाड़ियों के कारनामे सुनते हैं, जो कभी छोटे से गाँव में खेलते थे, लेकिन आज उनकी मेहनत की बदौलत वे ग्लोबल लेवल पर कामयाब हैं।

शाहरुख़, सलमान, आमिर की अदाओं में जादू है,
सिनेमा की रौशनी में दिखते पंचर वाले।

फिल्म इंडस्ट्री में भी ये अदाकार अपनी मेहनत और लगन से बड़े नाम बन चुके हैं। उनकी कामयाबी हमें यह सिखाती है कि मेहनत से ही कामयाबी मिलती है।

रफ़ी की सदा में खुदा की आवाज़ थी,
सुरों के सफ़र में बजते रहे पंचर वाले।

म्यूज़िक की दुनिया में भी बे़शुमार ऐसे फनकार हैं जिन्होंने अपनी आवाज़ से हमें सुकून और मोहब्बत दी।

नौशाद की धुनें, शकील की ग़ज़लें,
फन की गलियों में थे ये भी पंचर वाले।

बिस्मिल्ला की शहनाई से महफ़िल सजी,
साज़ की रूह में गूंजते रहे पंचर वाले।

यह सब फनकार और म्यूज़िककार अपनी मेहनत और लगन से अपने फन को इतना ऊँचा मुकाम देते हैं कि उनकी तखलीक़ात हमेशा याद रखी जाएंगी।

इक़बाल ने लिखा, “सारे जहाँ से अच्छा”,
क़लम की नोक से बोले थे पंचर वाले।

नफ़रत की दीवारों को गिरा के चलें,
मोहब्बत की नींव रखें सभी पंचर वाले।

यह ग़ज़ल हमें सिखाती है कि हमें अपनी ज़िंदगी में नफ़रत के बजाय मोहब्बत की जड़ें बढ़ानी चाहिए, क्योंकि यही हक़ीकी तबीली की निशानी है।

ज़फ़र इक़बाल की ड्रिब्लिंग, शाहिद की रफ़्तार,
हॉकी के मैदान में चमके थे पंचर वाले।

तारीख़ की परतों को जो सलीक़े से खोला,
इरफ़ान हबीब भी हैं हमारे पंचर वाले।

हमारी तारीख़ में ऐसे बे़शुमार लोग हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और तहकीक़ से हमारे इल्म को बढ़ाया।

जो दौलत को समझे ख़िदमत का ज़रिया,
अज़ीम प्रेमजी भी हैं हमारे पंचर वाले।

यह वो लोग हैं जिन्होंने अपनी दौलत को सिर्फ़ ज़ाती फायदे के लिए नहीं, बल्कि इंसानियत की भलाई के लिए इस्तिमाल किया।

पाँच टन सोना देकर बचाया मुल्क का मान,
निज़ाम उस्मान अली ख़ान भी थे पंचर वाले।

यह वो अज़ीम शख़्सियतें हैं जिन्होंने अपनी दौलत और ताक़त को अपने मुल्क की इज़्जत बचाने के लिए इस्तिमाल किया।

क़लम से लड़ी जंग बिना कोई हथियार लिए,
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भी थे पंचर वाले।

जिन्होंने जंग नहीं, तालीम से बदला नसीब,
सर सैयद भी थे उस क़ाफ़िले के पंचर वाले।

इंसाफ़ की कुर्सी को जिसने नसीहत दी,
मुख्य न्यायाधीश अहमदी भी थे पंचर वाले।

जिनकी उँगलियों से गूंजा तबले का जहाँ,
ज़ाकिर हुसैन भी हैं हमारे पंचर वाले।

जो दिल की गहराइयों से दर्द को बयां करते थे,
ट्रेजेडी किंग दिलिप कुमार भी थे पंचर वाले।

मक़ता:
अब बयाँ करूँ मैं अपनी तक़दीर का राज़,
जो चमके थे अंधेरों में, वही थे पंचर वाले।

नतीजा:
यह ग़ज़ल हमें यह सिखाती है कि हर कोई, चाहे वह किसी भी मैदान में हो, अपनी मेहनत, जद्दो-जहद और अज़्म से समाज में अपनी जगह बना सकता है। पंचर वाले सिर्फ़ एक इस्तिआरा नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के कठन रास्तों पर चल कर न सिर्फ़ अपनी तक़दीर बदल दी, बल्कि दुनिया को भी बेहतर बना दिया।

A young mechanic in a neon-lit urban workshop uses a digital pressure gauge to inspect a tubeless tire under an LED lamp. Holographic repair tutorials float nearby, while a carbon-fiber bike rests on a sleek stand. Blurred city traffic pulses outside the glass door, contrasting the workshop’s crisp precision."
Beneath neon and holograms, the future of repair hums—a symphony of silicon, sweat, and the unyielding rhythm of wheels.”