Author: Er. Kabir Khan B.E.(Civil Engg.) LLB, LLM
प्रस्तावना:
20वीं सदी की सबसे अहम तारीख़ी वाक़यात में से पाकिस्तान का जन्म एक था। ये मुल्क एक आदर्श और बड़े ख़्वाब के साथ वुजूद में आया—ऐसी सरज़मीं जहां मुसलमान अपनी मज़हबी और तहज़ीबी पहचान के साथ आज़ादी से ज़िंदगी बसर कर सकें।
क़ाइद-ए-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना और उनके साथियों ने एक ऐसे मुल्क का तसव्वुर किया था जो मुसलमानों के मफ़ादात की हिफाज़त करेगा और उन्हें दुनिया में एक आज़ाद क़ौम के तौर पर पहचान दिलाएगा। लेकिन ये ख़्वाब, जो लाखों लोगों की उम्मीदों और अरमानों का मुज़ाहिरा था, वक़्त के साथ बिखरता चला गया।
पाकिस्तान के क़याम के पीछे मज़हबी, सियासी, और समाजी अस्बाब थे, लेकिन इसका अंजाम वैसा नहीं हुआ जैसा इसके बानीओं ने सोचा था। मज़हबी बुनियाद पर नए मुल्क का क़याम शुरू में बड़ा पुरजोश था, लेकिन इसके साथ ही तक़सीम की अलमनाक दास्तान, लाखों लोगों की हिजरत, और फ़िरक़ा-वाराना फ़सादात भी जुड़ गए थे। तक़सीम के बाद पाकिस्तान को कई मसाइल का सामना करना पड़ा—सियासी बेयक़ीनी, फ़ौजी मुदाखिलत, और मआशी बदइंतज़ामी, जो इसे एक मुस्तहकम रियासत बनने से रोकते रहे।
क़ाइद-ए-आज़म का ख़्वाब एक जम्हूरी और तरक़्क़ीपसंद मुल्क का था, लेकिन पाकिस्तान की तारीख़ अक्सर मज़हबी इंतिहा-पसंदी, सियासी बेयक़ीनी, और अंदरूनी नज़ा’आत से लिपटी रही। जिस मुल्क का क़याम उम्मीदों और ख़्वाबों के साथ हुआ था, वो धीरे-धीरे इन अरमानों के जनाज़े में तब्दील होता गया।
ये मज़मून पाकिस्तान के क़याम और इसके बाद पेश आने वाले वाक़यात पर रोशनी डालता है, जहां एक जानिब आज़ादी की ख़ुशी थी, वहीं दूसरी जानिब बिखरती हुई उम्मीदों और टूटते ख़्वाबों की भी दास्तान थी, जिसने इस मुल्क की असलियत और पहचान को बार-बार आज़माइश में डाला।
पाकिस्तान का जन्म और नाकाम रियासत में तब्दील होना:
पाकिस्तान का क़याम 1947 में एक बड़े ख़्वाब और मक़सद के तहत हुआ था। बानी-ए-पाकिस्तान, क़ाइद-ए-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना का मक़सद एक ऐसी रियासत क़ायम करना था जहाँ मुसलमान अपनी मज़हबी और सियासी आज़ादी के साथ तरक़्क़ी करें। मगर ये ख़्वाब और मक़सद वक़्त के साथ धुंधला होता गया, और पाकिस्तान धीरे-धीरे एक नाकाम रियासत की शक्ल इख़्तियार करता गया।
पाकिस्तान की नाकामी के पीछे कई अस्बाब और वजहात हैं। सियासी बेयक़ीनी सबसे बड़ी वजहों में से एक रही है। पाकिस्तान के क़ायम होते ही सियासी क़ियादत के अंदर इख़्तिलाफ़ात पैदा हुए, जिनकी वजह से जम्हूरी निज़ाम मज़बूत ना हो सका। जिन्ना की वफ़ात के कुछ ही सालों बाद पाकिस्तान में फ़ौज का ग़लबा हो गया और सियासी क़ियादत का फ़ौज पर इन्हिसार बढ़ता गया। बार-बार के मार्शल लॉ और फ़ौजी मुदाखिलत ने पाकिस्तान की सियासी बुनियादों को कमज़ोर कर दिया। जम्हूरियत का इन्सिदाद और जम्हूरी इदारे मज़ीद पसमांदगी की जानिब धकेले गए।
दूसरी अहम वजह मआशी बदइंतज़ामी रही है। पाकिस्तान की मआशी पालिसियाँ अक्सर नाकामी से दो-चार होती रहीं। ग़रीबी, बेरोज़गारी, और मआशी नाइंसाफी का आलम पाकिस्तान में सालों से बरक़रार है। ज़रई और सनअती शोबे के साथ-साथ तालीमी निज़ाम की बदहालत भी पाकिस्तान की मआशी पसमांदगी का सबब बनी रही।
अंदरूनी इंतिहा-पसंदी और फ़िरक़ा-वाराना नज़ा’आत ने मुल्क को और ज़्यादा पीछे धकेल दिया। मज़हबी इंतिहा-पसंदी और दहशतगर्दी की लहरों ने ना सिर्फ़ पाकिस्तान की अन्दरूनी सूरत-ए-हाल को कमज़ोर किया, बल्कि आलमी सतह पर उसकी साख को भी नुक़्सान पहुंचाया। मुल्क के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में मख़दूमियत और मज़हबी तशद्दुद ने पाकिस्तान के क़ानून और हुकूमत की क़ाबिलियत पर सवालिया निशान लगाते हुए इसे नाकाम रियासत की तरफ़ धकेल दिया।
मज़हबी और क़बाइली मसाइल, सियासी बेयक़ीनी, फ़ौजी मुदाखिलत, और मआशी पसमांदगी ने पाकिस्तान को एक नाकाम रियासत में तब्दील करने में अहम किरदार अदा किया है।
पाकिस्तान का जन्म और नाकाम रियासत बनने के कुछ वजहें:
कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- सियासी बेयक़ीनी (Political Instability)
- फ़ौजी मुदाखिलत (Military Interference)
- जम्हूरी इदारों की कमज़ोरी (Weak Democratic Institutions)
- मआशी बदइंतज़ामी (Economic Mismanagement)
- ग़रीबी और बेरोज़गारी (Poverty and Unemployment)
- फ़िरक़ा-वाराना नज़ा’आत (Sectarian Conflicts)
- मज़हबी इंतिहा-पसंदी (Religious Extremism)
- दहशतगर्दी (Terrorism)
- अंदरूनी तशद्दुद (Internal Violence)
- तालिमी निज़ाम की ख़राबी (Poor Education System)
- क़बाइली और मज़हबी मसाइल (Tribal and Religious Issues)
- अलमी सतह पर बदनामी (Global Reputation Damage)
ये सब मिलकर पाकिस्तान की तरक़्क़ी की राह में बड़ी रुकावट बने, जिसके नतीजे में मुल्क नाकाम रियासत की जानिब बढ़ता गया।
पाकिस्तान का जन्म और भ्रष्टाचार:
पाकिस्तान में भ्रष्टाचार एक गंभीर और जटिल मसला है, जो मुल्क की सियासी, मआशी और समाजी बुनियादों को कमज़ोर कर रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थान की रिपोर्टों के मुताबिक़, पाकिस्तान का नाम उन मुल्कों में शुमार होता है जहां भ्रष्टाचार की शिद्दत बहुत ज़्यादा है। सरकारी इदारों से लेकर निजी सैक्टर तक, हर स्तर पर रिश्वतखोरी, ताक़त का नाजायज़ इस्तेमाल, और माली घोटाले आम हैं।
भ्रष्टाचार की वजह से मुल्क में विकास की रफ्तार कम हो गई है। बुनियादी ढाँचे की तामीर, तालीमी निज़ाम की बेहतरी, और मआशी इस्लाहात जैसी ज़रूरी पालिसियों का अमलदरामद भ्रष्टाचार के चलते मुतास्सिर हो रहा है। सरकारी इदारों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी, रिश्वतखोरी, और ताक़त का ग़लत इस्तेमाल पाकिस्तान की तरक्की के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावटें हैं।
पाकिस्तान में भ्रष्टाचार की हद इतनी बढ़ चुकी है कि यह निचले स्तर से लेकर ऊपरी सतह तक मौजूद है। सियासी क़ियादत और हुकूमत के आला अफ़राद पर भी अक्सर माली घोटालों और बदउनवानी के इल्ज़ामात लगते रहे हैं। इसके अलावा, न्यायिक और पुलिस इदारे भी भ्रष्टाचार से मुतास्सिर हैं, जहां बिना रिश्वत के किसी केस का सही हल निकालना मुश्किल हो जाता है।
पाकिस्तान की मआशी पसमांदगी, ग़रीबी, और बेरोज़गारी भी किसी हद तक भ्रष्टाचार की देन हैं। करप्शन की वजह से बाहरी सरमायाकारी (Foreign Investment) में कमी आई है, जिससे मुल्क की माली हालत मज़ीद बिगड़ती जा रही है।
इस हद तक फैले हुए भ्रष्टाचार ने पाकिस्तान के अवाम का एतमाद अपने इदारों पर से उठाने में अहम किरदार अदा किया है। जब तक कठोर क़ानून, जवाबदेही का मज़बूत निजाम, और पारदर्शी इदारे क़ायम नहीं किए जाते, पाकिस्तान में भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी होती जाएंगी।
पाकिस्तान का जन्म और इस्लामी उसूलों की नाफरमानी:
पाकिस्तान की मौजूदा सूरत-ए-हाल पर नज़र डालने से ये समझ आता है कि मुल्क इस्लामिक उसूलों से अपनी वाबस्तगी (लगाव) को लेकर संगीन चैलेंजों का सामना कर रहा है। पाकिस्तान की बुनियाद एक इस्लामिक रियासत के तौर पर रखी गई थी, जिसका मक़सद था कि इस्लामिक शरिया के उसूलों को अपनाकर एक अदल (न्याय) और इंसाफ़ पर मबनी (आधारित) समाज क़ायम किया जाए। हालांकि, गुज़िश्ता (पिछली) कुछ दहाइयों में मुख़्तलिफ़ वजहों की बिना पर पाकिस्तान इस्लामिक उसूलों के साथ-साथ अपने बुनियादी मक़ासिद (उद्देश्यों) के ख़िलाफ़ एक खुली जंग लड़ता नज़र आया है।
1. सियासी और आर्थिक भ्रष्टाचार:
पाकिस्तान में सियासी और मआशी बदउनवानी (भ्रष्टाचार) ने इस्लामिक उसूलों की ख़िलाफ़त की है। बदउनवानी और रिश्वतखोरी इस्लाम के उसूलों के ख़िलाफ़ हैं, जो अदल, ईमानदारी और शफ़्फ़ाफ़ियत (पारदर्शिता) की तालीम देते हैं।
2. क़ानूनी और अदालती निज़ाम में खामियाँ:
पाकिस्तान के अदालती निज़ाम में बदउनवानी और अदम-बराबरी (असमानता) ने इस्लामिक अदल के उसूलों को कमज़ोर किया है। शरिया के क़वानीन (कानूनों) को मुअस्सिर (प्रभावी) तौर पर नाफिज़ नहीं किया गया, और अदालती अमल में कई मर्तबा (बार) अदल की बुनियादी बातों को नज़रअंदाज़ किया गया है।
3. मज़हबी इंतिहा-पसंदी (धार्मिक अतिवाद):
पाकिस्तान में कुछ गिरोहों और अफ़राद की तरफ़ से मज़हबी इंतिहा-पसंदी और शिद्दत-पसंदी (कट्टरता) को फरोग (प्रचार) देने की कोशिश की गई है, जो इस्लामिक उसूलों के ख़िलाफ़ है। इस्लाम हमेशा अमन (शांति), तहम्मुल (सहनशीलता), और इत्तेहाद (एकता) की तालीम देता है, लेकिन इंतिहा-पसंद नज़रियात (विचारधाराओं) के फैलाव ने मुआशरे (समाज) में इख़्तिलाफ़ात (विभाजन) पैदा किए हैं।
4. मुआशरती अदम-बराबरी (सामाजिक असमानता):
मुआशरती और मआशी अदम-बराबरी भी इस्लामिक उसूलों के ख़िलाफ़ जाती है, जो समाजी इंसाफ़ और बराबरी की तरफ़ इशारा करते हैं। पाकिस्तान में औरतों, अक़ल्लीयतों (अल्पसंख्यकों), और ग़रीबों के हुक़ूक़ की हिफाज़त (संरक्षण) के मामले में अक्सर कोताही (कमी) देखी गई है।
5. शरिया के क़वानीन का मुअस्सिर नफ़ाज़ (प्रभावी कार्यान्वयन):
पाकिस्तान में शरिया के क़वानीन को मुअस्सिर तौर पर नाफिज़ करने में नाकामी (विफलता) ने भी इस्लामिक उसूलों के ख़िलाफ़ एक इशारा दिया है। अदल और मज़हबी हुकूमत के बुनियादी उसूलों को नाफिज़ करने में नाकामी ने मज़हबी और समाजी मसाइल (समस्याएँ) को जन्म दिया है।
हालांकि, पाकिस्तान में कुछ इदारे (संस्थाएँ) और अफ़राद इस्लामिक उसूलों को दोबारा क़ायम करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा चैलेंजों और मसाइल की वजह से इसे पूरी तरह नाफिज़ करना मुश्किल हो रहा है। ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान एक तरह से इस्लामिक उसूलों के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहा है, हालांकि इसके पीछे मुख़्तलिफ़ सियासी, समाजी, और मआशी वजहात हैं।
पाकिस्तान का जन्म और उसके फाउंडर्स के ख्वाब:
पाकिस्तान के बानियों, खासकर क़ाइद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना, ने एक इस्लामिक रियासत की कल्पना की थी जिसका मकसद मुसलमानों को एक स्वतंत्र और सुरक्षित ज़िंदगी प्रदान करना था। उनके ख़्वाब और मकसद इस प्रकार थे:
मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र: मोहम्मद अली जिन्ना का मुख्य ख़्वाब था कि भारत में मुसलमानों के लिए एक ऐसा स्वतंत्र मुल्क क़ायम किया जाए, जहाँ वे अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और सियासी पहचान के साथ स्वतंत्र रूप से जी सकें। उनका मानना था कि भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क की ज़रूरत है, ताकि वे अपनी संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं को सुरक्षित रख सकें।
बराबरी और इंसाफ़: जिन्ना और उनके साथियों ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहाँ सभी नागरिकों को बराबरी और इंसाफ़ मिले। वे एक ऐसे संविधान की ओर इशारा कर रहे थे जो धार्मिक और जातीय भेदभाव के बिना सभी के अधिकारों की सुरक्षा करे।
इस्लामिक उसूलों पर आधारित समाज: पाकिस्तान के बानियों का यह भी मानना था कि नया मुल्क इस्लामिक उसूलों के आधार पर चलेगा, जिसमें धार्मिक और नैतिक मान्यताओं को प्राथमिकता दी जाएगी। हालांकि, उनका दृष्टिकोण एक उदार इस्लामिक समाज का था, जिसमें धार्मिक सहनशीलता और विविधता की भी मान्यता थी।
मआशी और समाजी तरक्की: पाकिस्तान के बानियों की यह भी उम्मीद थी कि नया देश मआशी और समाजी तरक्की की दिशा में बढ़ेगा। वे चाहते थे कि पाकिस्तान एक मजबूत और खुशहाल मुल्क बने, जिसमें सभी नागरिकों को बेहतर जीवन की सुविधाएं मिल सकें।
आम अमन और सहयोग: जिन्ना ने यह भी इच्छा जताई कि पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क बने जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सहयोग के सिद्धांतों को अपनाए। वे चाहते थे कि पाकिस्तान अपने पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे।
इन ख़्वाबों और मकसदों के तहत पाकिस्तान का निर्माण हुआ, लेकिन आज के पाकिस्तान में इन लक्ष्यों की प्राप्ति में विभिन्न चुनौतियों का सामना किया जा रहा है। बानियों के दृष्टिकोण और मूल विचारधारा के प्रति देश की प्रतिबद्धता को लेकर लगातार चर्चा और बहस जारी है।
पाकिस्तान के हुक्मरानों ने फॉउंडर्स के सपनों को कैसे चकनाचूर कर दिया ?
पाकिस्तान के हुक्मरानों ने फाउंडर्स के ख्वाबों को कैसे चकनाचूर कर दिया? इसका जवाब तारीख़ी और सियासी हालात से जुड़ा हुआ है। मोहम्मद अली जिन्ना और उनके साथियों ने पाकिस्तान का सपना एक तरक़्क़ीपसंद, जम्हूरी और इस्लामी मुल्क के तौर पर देखा था। लेकिन हुक्मरानों की ग़लतियों और ग़लत सियासी फ़ैसलों ने इस ख्वाब को टूटने पर मजबूर कर दिया। आइए देखते हैं कैसे:
फौजी हुकूमत का कब्ज़ा:
पाकिस्तान में सियासी अस्थिरता की वजह से बार-बार फौजी दखलंदाज़ी हुई। 1958 से लेकर 2008 तक पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा फौजी हुकूमत के दौर में गुज़रा, जिससे जम्हूरी (डेमोक्रेटिक) क़दरों को नुक़सान पहुंचा। इससे जिन्ना के जम्हूरी और दस्तीरी (कानूनी) उसूलों को ठेस लगी।
जम्हूरियत की नाकामी:
पाकिस्तान में जम्हूरी इदारे (संस्थाएं) और अमल कमजोर रहे हैं। फौज और ब्यूरोक्रेसी का हुकूमत में ज़्यादा दखल, बदउनवानी (भ्रष्टाचार), और कमजोर सिविल सोसाइटी ने मजबूत जम्हूरियत को पनपने नहीं दिया।
मज़हबी इंतिहा पसंदी (कट्टरता) का उरूज (बढ़ना):
पाकिस्तान के फाउंडर्स का ख्वाब एक तरक़्क़ीपसंद और सभी को शामिल करने वाला इस्लामी मुल्क था। मगर वक़्त के साथ मज़हबी इंतिहा पसंदी बढ़ती गई, जिसने समाज में तफरक़ा (विभाजन) डाल दिया और मज़हबी अक़लीयतों (अल्पसंख्यकों) के लिए मुश्किलात खड़ी कर दीं।
बंगाल की जुदाई (1971):
पाकिस्तान का बंटवारा, जिससे बांग्लादेश वजूद में आया, एक बड़ा धक्का था। यह जिन्ना के बनाए हुए मुल्क की बड़ी शिकस्त थी, और यह पाकिस्तान के हुक्मरानों की सियासी नाकामी का नतीजा था।
मआशी (आर्थिक) नाइंसाफ़ी:
फाउंडर्स का ख्वाब एक ऐसा मुल्क बनाने का था जहां मआशी तरक़्क़ी हो और सबके लिए बराबरी के मौके हों। लेकिन बदउनवानी और ग़लत पॉलिसियों की वजह से अमीर और गरीब के बीच फासला बढ़ता गया, जिससे अवाम में नाराज़गी पैदा हुई।
गैर-इस्लामी अमल का अड्डा बनना:
पाकिस्तान को इस्लामी उसूलों पर चलाने के लिए बनाया गया था, लेकिन वक़्त के साथ वहां कई गैर-इस्लामी अमल और तंज़ीमें (संगठन) पनपने लगीं। चरमपंथ, तशद्दुद (हिंसा), और इंसानी हुक़ूक़ की खिलाफ़वर्ज़ियां पाकिस्तान को इस्लाम के असल उसूलों से दूर ले गईं। यह भी एक बड़ा कारण है कि मुल्क के फाउंडर्स का ख्वाब टूटकर बिखर गया।
इन तमाम वजहों से पाकिस्तान अपने फाउंडर्स के ख्वाबों से दूर होता चला गया।
मौजूदा हालात (Current Situation):
पाकिस्तान की मौजूदा समाजी-इक्तिसादी और सियासी हालत कई संगीन मुश्किलात का सामना कर रही हैं, जो न सिर्फ़ मुल्क की स्थिरता को मुतासिर कर रही हैं, बल्कि इसके बानीयों के ख्वाबों से भी इसे दूर ले जा रही हैं। ये हालात मुल्क की तरक्की के लिए एक बड़ा मसला पैदा कर रहे हैं, और इसके कई वजूहात हैं जिन्हें समझना ज़रूरी है।
पाकिस्तान की मौजूदा समाजी-इक्तिसादी हालत
इक्तिसादी परेशानी
पाकिस्तान आज एक संगीन इक्तिसादी मुश्किलात से गुजर रहा है। महंगाई की शरह बढ़ती जा रही है, जिससे रोज़मर्रा की जरूरत की चीजें आम लोगों की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं। खाने-पीने की चीजों की कीमतें, पेट्रोल, और दूसरी जरूरी सामान की लागत बढ़ रही है, जिससे गरीब और मिडिल क्लास के लोगों के लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो गया है।
बेरोजगारी भी एक बड़ी मसला है, खास तौर पर नौजवानों के लिए। तालीम के शोबे में सुधार की कमी की वजह से नौजवानों को नौकरी हासिल करने में मुश्किल हो रही है। सरकारी पालिसियों की कमी और करप्शन ने भी इक्तिसादी तरक्की को रोक रखा है।
समाजी नाइंसाफी
समाजी लिहाज़ से, पाकिस्तान में नाइंसाफी बढ़ रही है। अमीर और गरीब के दर्मियान का फासला तेज़ी से बढ़ रहा है। तालीम और सेहत की सहूलतों की कमी ने इस नाइंसाफी को और बढ़ा दिया है। कई इलाकों में, खास तौर पर गाँवों में, बुनियादी सहूलतों की कमी ने लोगों के मियार-ए-ज़िंदगी को मुतासिर किया है।
सेहत और तालीम
सेहत की सहूलतों का बुरा हाल है। सरकारी अस्पतालों में सहूलतों की कमी और सेहत की खिदमात का फ़ुक़दान लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल रहा है। तालीम के शोबे में भी हालत संगीन है। अच्छी तालीम की कमी और सरकारी स्कूलों में सहूलतों की कमी ने नई नस्ल को सही इल्म और सलाहियत से महरूम कर दिया है।
सियासी बेचैनी
पाकिस्तान की सियासत में बेचैनी का एक लंबा तारीख़ है। बार-बार हुकूमत की तबदीली, फौजी हुकूमतों की मुदाख़लत, और सियासी पार्टियों के दरमियान लड़ाई ने जम्हूरियत को कमज़ोर कर दिया है।
करप्शन:
करप्शन पाकिस्तान के सियासी निज़ाम में एक बड़ी परेशानी बन चुका है। सियासी रहनुमाओं की तरफ से इक्तिदार का ग़लत इस्तेमाल और सरकारी ख़ज़ाने की लूट ने लोगों का एतमाद सियासी निज़ाम से उठा दिया है। इससे लोगों में मायूसी और नाख़ुशी बढ़ी है।
सियासी झगड़े:
सियासी पार्टियों के दरमियान की आपसी लड़ाई और एक-दूसरे पर इल्ज़ाम-तराशी ने सियासी स्थिरता को और मुतासिर किया है। इलेक्शन में धांधली और सरकारी मशीनरी का ग़लत इस्तेमाल भी आम हो गया है।
बानीयों के ख्वाबों से दूरी और इसके वजूहात:
पाकिस्तान के बानीयों ने एक ऐसा मुल्क बनाने का ख्वाब देखा था जहां हर शहरी को बराबर हुकूक और मौके मिलें। मगर मौजूदा हालत ने इस ख्वाब को काफी हद तक धुंधला कर दिया है।
मज़हबी इंतिहापसंदी:
मज़हबी इंतिहापसंदी और शिद्दतपसंदी ने पाकिस्तान को एक ऐसे समाज में तबदील कर दिया है जहां बर्दाश्त और मुख्तलिफ़ियत की कमी है। कई शिद्दतपसंद तंजीमें अपने अवामी रवैये और सोच की वजह से समाज में खौफ और तक़सीम पैदा कर रही हैं।
गैर-इस्लामी किरदार:
पाकिस्तान को इस्लामी उसूलों पर बुनियाद रखकर बनाया गया था, लेकिन वक्त के साथ मुख्तलिफ़ गैर-इस्लामी किरदारों ने पाकिस्तान की पहचान को धुंधला कर दिया है। समाजी अखलाक़ में गिरावट, बढ़ती तशद्दुद और इंसानी हुकूक की पामाली ने मुल्क को मुश्किल में डाल दिया है।
पाकिस्तान की मौजूदा हालत न सिर्फ़ इसके बानीयों के ख्वाबों के खिलाफ़ है, बल्कि ये मुल्क को एक ऐसे मुस्तक़बिल की तरफ़ ले जा रही है जहां उम्मीदें और मौके कम होते जा रहे हैं। जब तक पाकिस्तान अपनी समाजी-इक्तिसादी और सियासी मुश्किलात का हल नहीं निकालता, तब तक ये अपने बानीयों के ख्वाबों को पूरा करने की राह पर नहीं बढ़ सकेगा।”
पाकिस्तान का जन्म इण्डियन मुसलमानों के लिए लानत कैसे बन गया ?
पाकिस्तान का वजूद एक ऐसे मकसद के साथ हुआ था, जिसमें उपमहाद्वीप के मुसलमानों के लिए एक अलग रियासत का ख्वाब देखा गया था। मोहम्मद अली जिन्नाह और उनके साथियों ने यह तसव्वुर किया था कि मुसलमानों को हिन्दू बहुसंख्यक हुकूमत में इंसाफ और बराबरी नहीं मिलेगी, और एक अलग मुल्क ही उनकी पहचान और हुक़ूक की हिफाज़त कर सकता है। लेकिन, वक्त के साथ पाकिस्तान का यह तसव्वुर न सिर्फ़ हिंदुस्तान के मुसलमानों के लिए बल्कि खुद पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ी नाकामी साबित हुआ। यह तजुर्बा हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए लानत क्यों बना, इसके पीछे कई पहलू हैं।
पाकिस्तान की नाकामी और इण्डियन मुसलमानों की मुश्किलें
सियासी और इक्तिसादी नाकामी:
पाकिस्तान ने आज तक एक मज़बूत, स्थिर और तरक्कीपसंद मुल्क बनने में कामयाबी हासिल नहीं की है। पाकिस्तान की हुकूमतें बार-बार फौजी मुदाख़लत और सियासी बेदखली का शिकार रही हैं, जिससे न सिर्फ़ जम्हूरियत कमजोर हुई, बल्कि मुल्क का इक्तिसादी ढांचा भी बुरी तरह मुतासिर हुआ। पाकिस्तान का इक्तिसादी हालात आज इतने बिगड़ चुके हैं कि मुल्क को दुनिया भर से भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ा है। यह कहना अब आम हो चुका है कि अगर इण्डियन मुसलमान पाकिस्तान चले गए होते, तो शायद वह भी आज इसी भीख मांगने वाली हालत में होते।
पाकिस्तान की बदहाली और हिंदुस्तानी मुसलमानों की पहचान:
पाकिस्तान की मौजूदा हालत हिंदुस्तान के मुसलमानों के लिए एक नाकाबिल-ए-इनकार सबक है। वह पाकिस्तान, जिसका ख्वाब हिंदुस्तानी मुसलमानों की हिफाज़त और तरक्की के लिए देखा गया था, आज खुद भूखा मर रहा है। हिंदुस्तान में आज मुसलमानों को आए दिन ‘पाकिस्तान भेजने’ की धमकियां मिलती हैं, और पाकिस्तान की बदहाली इन गालियों को और भी वजनी बना देती है। हिंदुस्तानी मुसलमानों को यह सुनना पड़ता है कि अगर वह पाकिस्तान चले जाते, तो उनकी हालत बदतर होती। पाकिस्तान की इक्तिसादी और सियासी नाकामी ने हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिए उनकी सामाजिक और सियासी हैसियत को और भी कमजोर किया है।
जारी तशद्दुद और मज़हबी इंतिहापसंदी:
पाकिस्तान में मज़हबी शिद्दतपसंदी और तशद्दुद का बढ़ता हुआ असर भी एक बड़ी वजह है, जिसके चलते इण्डियन मुसलमानों को हिंदुस्तान में शक की नज़र से देखा जाता है। पाकिस्तान में मज़हबी तंज़ीमें और शिद्दतपसंद ग्रुप्स मुल्क के सियासी और समाजी ढांचे को कमजोर कर रहे हैं, जिसके नतीजे में पाकिस्तान को एक अस्थिर और शिद्दतपसंद मुल्क के तौर पर देखा जाता है। यह सूरत-ए-हाल हिंदुस्तान में मुसलमानों के लिए मुश्किलात पैदा करती है, क्योंकि हर तशद्दुद या आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान का नाम सामने आता है, और हिंदुस्तानी मुसलमानों पर उंगलियां उठाई जाती हैं।
तालीम और तरक्की के मौकों की कमी:
पाकिस्तान की मौजूदा हालत के चलते हिंदुस्तान के मुसलमानों के सामने तालीम और तरक्की के बेहतर मौके हासिल करने का सवाल उठ खड़ा होता है। पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क बन गया है जहां तालीम, सेहत और इक्तिसादी तरक्की के मौके नदारद हैं। अगर इण्डियन मुसलमान पाकिस्तान चले गए होते, तो शायद उन्हें इन बुनियादी सुविधाओं का सामना भी न होता। पाकिस्तान की नाकामी ने यह साबित कर दिया है कि मुल्क का मज़हबी बुनियाद पर तामीर होना एक हल नहीं है, बल्कि तालीम और तरक्की के बेहतर मौके के लिए एक मजबूत और स्थिर जम्हूरी निज़ाम ज़रूरी है।
भारत-पाक संबंध और मुसलमानों पर असर
भारत और पाकिस्तान के दरमियान हमेशा से दुश्मनी और तनाव रहा है, जिसके चलते हिंदुस्तानी मुसलमानों को ‘पाकिस्तानपरस्ती’ का इल्ज़ाम झेलना पड़ता है। पाकिस्तान की नाकामी और बदहाली ने हिंदुस्तान में यह धारणा मजबूत की है कि पाकिस्तान एक असफल रियासत है, और इस वजह से मुसलमानों पर शक और संदेह की निगाह से देखा जाता है। अगर पाकिस्तान एक तरक्कीपसंद मुल्क होता, तो शायद आज हिंदुस्तान के मुसलमानों को इतना संघर्ष और ताने सुनने की नौबत न आती।
पाकिस्तान का नाकाम रियासत में बदलना न सिर्फ़ खुद उसके लिए, बल्कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के लिए भी एक लानत साबित हुआ है। पाकिस्तान की बिगड़ती हालत और उसकी सियासी, इक्तिसादी और समाजी नाकामियों ने हिंदुस्तानी मुसलमानों को कमजोर किया है। अगर पाकिस्तान अपने असल मकसद और ख्वाब को पूरा करने में कामयाब होता, तो शायद आज मुसलमानों को हिंदुस्तान में गालियां न सुननी पड़तीं, और वह समाज में एक मजबूत और इज़्ज़तदार पहचान रखते।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):
सवाल – पाकिस्तान के बानीयों का ख्वाब क्या था?
जवाब – पाकिस्तान के बानीयों, खासतौर पर क़ायदे-आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह का ख्वाब एक ऐसे मुल्क का था, जो इस्लामी उसूलों पर मबनी हो, जहां इंसाफ, बराबरी, और मज़हबी आज़ादी हर शहरी को हासिल हो। उनका तसव्वुर एक तरक्कीपसंद और जम्हूरी पाकिस्तान का था, जहां हर इंसान को इज़्ज़त और इंसानियत से जीने का मौका मिले।
सवाल – पाकिस्तान अपने बानीयों के ख्वाब से कैसे दूर हो गया?
जवाब – पाकिस्तान धीरे-धीरे सियासी नाकामियों, फौजी मुदाख़लत, करप्शन, और मज़हबी शिद्दतपसंदी की वजह से अपने असल मकसद से दूर हो गया। जम्हूरियत को बार-बार कमजोर किया गया, और मज़हबी इंतिहापसंदी ने मुल्क की समाजी बर्दाश्त और अखलाक़ी ढांचे को मुतासिर किया।
सवाल – मौजूदा पाकिस्तान को किन इक्तिसादी मुश्किलों का सामना है?
जवाब – पाकिस्तान इस वक्त संगीन इक्तिसादी परेशानियों का सामना कर रहा है। महंगाई की शरह बहुत ज़्यादा है, बेरोजगारी आम है, और इक्तिसादी नाइंसाफियाँ बढ़ रही हैं। अवाम की बुनियादी ज़रूरतें, जैसे सेहत और तालीम, भी मुश्किल से पूरी हो रही हैं।
सवाल – पाकिस्तान में सियासी अस्थिरता के क्या कारण हैं?
जवाब – पाकिस्तान में सियासी अस्थिरता का एक लंबा इतिहास है, जिसकी वजह बार-बार फौजी हुकूमतों का दखल, सियासी पार्टियों के दरमियान तसादुम, और करप्शन है। इस वजह से जम्हूरियत मजबूत नहीं हो पाई और अवाम का एतमाद सियासी निज़ाम से उठ गया।
सवाल – मज़हबी शिद्दतपसंदी का पाकिस्तान पर क्या असर है?
जवाब – मज़हबी शिद्दतपसंदी ने पाकिस्तान में नफ़रत और तशद्दुद को बढ़ावा दिया है। कई शिद्दतपसंद तंजीमें अवामी सोच पर हावी हो गई हैं, जिससे समाज में मुख्तलिफियत की बर्दाश्त कम हो गई है और अवामी अमन खतरे में है।
सवाल – पाकिस्तान के मौजूदा हालात को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
जवाब – पाकिस्तान को अपने मौजूदा हालात सुधारने के लिए सियासी स्थिरता, करप्शन का खातमा, और मज़हबी इंतिहापसंदी पर काबू पाने की ज़रूरत है। साथ ही, इक्तिसादी सुधार, तालीम और सेहत के शोबों में बेहतरी और अवामी एतमाद को बहाल करने के लिए ईमानदार हुकूमत की ज़रूरत है।
सवाल – क्या पाकिस्तान के बुनियादी उसूलों की तरफ़ वापसी मुमकिन है?
जवाब – जी हाँ, अगर मुल्क अपने असल उसूलों पर दोबारा अमल करने की सच्ची कोशिश करे, तो बुनियादी उसूलों की तरफ़ वापसी मुमकिन है। इसके लिए मज़बूत जम्हूरी निज़ाम, इन्साफ, और बराबरी का निफ़ाज जरूरी है।
सवाल – पाकिस्तान का मुस्तकबिल कैसा दिखता है?
जवाब – पाकिस्तान का मुस्तकबिल इस पर मुनहसर है कि वो मौजूदा मुश्किलात से कैसे निपटता है। अगर सही फैसले और सही राह पर चलने की कोशिश की जाए, तो पाकिस्तान तरक्की और स्थिरता की तरफ बढ़ सकता है, वरना मौजूदा हालात इसकी उम्मीदों को और भी धुंधला कर देंगे।