फ़िलस्तीन के दर्द पर

ग़ज़ल “मैं फ़िलस्तीन हूँ”

यह मेरी ज़मीन है, यह मेरी ज़मीन है,
हर दर्द की कहानी, मैं फ़िलस्तीन हूँ।

मैं फ़िलस्तीन हूँ, मैं फ़िलस्तीन हूँ।”

नक़्शे में बाँटा गया, फिर भी ज़िंदा हूँ,
मिट्टी में भी रवानी, मैं फ़िलस्तीन हूँ।

बच्चे जो क़ब्रों से करते हैं सवाल,
“क्यों मारी गई जवानी?” — “मैं फ़िल….. हूँ।

बिना वतन, बिना काग़ज़, सिर्फ़ जज़्बा है,
दिल में आग है पुरानी, मैं फ़िलस्तीन हूँ।

मैं वो दादी हूँ जो लाश से लिपटी है,
लब पे बस ये ही कहानी — “मैं फ़िल….. हूँ।

दर पे बूटों की आवाज़, अंदर अज़ान,
मस्जिद में गूंजती निशानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

हर बार मिटाया गया, फिर उठ खड़ी हुई,
बनी हर बार नई रूहानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

माँ का आँचल हूँ — आँसू से तर-ब-तर,
फिर भी बन गई मैं क़ुरबानी, मैं फ़िलस्तीन हूँ।

चेहरे पे आँसू थमे, मगर हौसला नहीं,
सदीयों की चुप में भी रवानी, मैं फ़िल….. हूँ।

खेत हूँ, जहाँ खून से सिंचती ज़मीं,
उगती नहीं अब भी रवानी, मैं फ़िल….. हूँ।

लहजा हूँ जो ज़ुल्म से डरता नहीं,
हर हर्फ़ में है बग़ावत की निशानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

बच्चा हूँ जिसने किताब उठाई थी,
अब हर लफ़्ज़ से बग़ावत की रवानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

परचम हूँ, जिसे हर रोज़ जलाया गया,
राख से बनी फिर नई कहानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

गलियों में ख़ून, पर हँसी बाकी है,
मासूमियत की भी निशानी, मैं फ़िलस्तीन हूँ।

दीवार हूँ, जिसे गिराया नहीं जा सका,
ईंट-ईंट में है मेरी ज़िंदगानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

क़लम हूँ, जो आँसू से लिखती है बात,
हर लकीर में है मेरी कहानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

ज़मीं जो है शहीदों से रौशन हुई,
हर क़ब्र में है इक ज़िंदगानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

जो शहादत को समझे इबादत की तरह,
उस जज़्बे की हूँ मैं निशानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

दिवारें रोईं, छतें भी कांपीं मगर,
मेरे सब्र की है ये रवानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

हर गोली ने मेरा नाम पुकारा है,
हर ज़ख़्म से निकली कहानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

मैं वो सवाल हूँ जो मरता नहीं,
हर दिल में हूँ एक बे-ज़ुबानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

मैं वो हक़ हूँ जिसे दबाया गया,
फिर भी बन गई पहचान पुरानी, मैं फ़िल….. हूँ।।

क़बीर’ देखता है जलती हुई वो रूहें,
हर आँच में है उसकी जवानी — मैं फ़िलस्तीन हूँ।

Palestinian woman cradling her deceased child amidst the rubble of a demolished neighborhood, with shattered homes and smoke in the background.
In the midst of devastation, a Palestinian mother’s grief is tempered with a quiet strength, symbolizing the resilience of a people enduring unimaginable loss.