“बिखरे ख़्वाब, जलते सवाल” एक दिल से निकली हुई शेरों की कश्ती है, जो ज़िंदगी के समंदर में बहते दर्द, मोहब्बत, तन्हाई, और रिश्तों की हक़ीक़त को अपनी हर मौज में समेटे हुए है। यह मजमूआ उन जज़्बात का आईना है जो अक्सर अल्फ़ाज़ में बयान नहीं होते—माँ-बाप की मोहब्बत, औलाद की बेरुख़ी, टूटते रिश्ते, बिखरे ख़्वाब, और जलते हुए सवाल।

हर शेर एक अलग एहसास, एक अलग मंज़र, और एक अलग रूहानी सफ़र की दास्तान है। बिखरे ख़्वाब यहाँ सिर्फ़ तसव्वुर नहीं, बल्कि उन अधूरी ख्वाहिशों की आवाज़ हैं जो तन्हा रातों में दिल से सवाल करती हैं। कहीं दुआ की तासीर कमज़ोर पड़ती है, तो कहीं वक़्त की सख़्ती रिश्तों को चकनाचूर कर देती है।

अगर आपने भी कभी बिखरे ख़्वाब सँभाले हैं, टूटे जज़्बात महसूस किए हैं, या रिश्तों की उलझनों में उलझे हैं—तो यह मजमूआ आपका अक्स बनकर सामने आएगा। बिखरे ख़्वाब ही इस कलेक्शन की जान हैं, जो हर पाठक के दिल को छूने की सलाहियत रखते हैं।

मजमूआ : बिखरे ख़्वाब, जलते सवाल

1. नादान-ए-दिल हूँ, लापता-ए-ख़्वाब भी,
ग़मगीन-ए-नज़र में बे-नाम-ए-कहानी हूँ मैं।

2. माँ की दुआओं को भी लगता है अब असर नहीं,
बेटा ही घर की इज़्ज़त को तार-तार करता है।

3. किस कदर बेग़रज़ हैं ये रिश्ते के ठेकेदार,
मौत आए तब भी सिर्फ़ मिरास की बात करते हैं।

4. रोते हैं बचपन से जिनके लिए माँ-बाप,
वो बच्चे बुढ़ापे में उन्हें ही कोसते हैं।

5. सुकूँ माँगा था जिस्म-ओ-रूह ने मिलकर,
हवा ने आँच दी, बारिश ने राख बना दिया।

6. यूँ तो हर शख़्स कहता है “वक्त बदल गया”,
मगर बदलने वाले चेहरे भी वही पुराने हैं।

7. ग़म की दावत पे बैठे हैं सभी अज़ीज़-ओ-यार,
ख़ुशी के मौक़े पे कोई नहीं आता है।

8. जलते दिये की लौ से दुआ की थी उस ने,
पर अँधेरे ने उसकी हर उम्मीद खा ली है।

9. जिन्हें सिखाया था हमने “इंसान बनो” बस,
वो आज इंसानियत को शर्मसार करते हैं।

10. नादाँ समझते हैं हमें, ग़म से लड़ना नहीं आता,
हर दर्द को चुपचाप दिल में दफ़्न कर लेते हैं।

11. ये कैसा जहाँ है जहाँ माँ की मोहब्बत सस्ती है,
और बेटे की नज़र में सिर्फ़ उसका अरमान बचता है।

12. हँसते-हँसते कट गई ज़िंदगी की सभी रातें,
मगर सुबह आई तो आँखों ने स्याही उगल दी।

13. तालीम से पहले तर्बियत है ज़रूरी,
वरना शख़्सियत भी अधूरी रह जाती है।

14. जिसने माँ की ममता को ठुकरा दिया,
उसकी हर कामयाबी अधूरी रह जाती है।

15. जिनके लिए सब कुछ लुटा दिया जाता है,
वो औलाद अक्सर सवालों में रखती है।

16. हर माँ-बाप की दुआओं में असर होता है,
मगर औलाद अगर समझे तो बात बनती है।

17. माँ-बाप का दिल शीशे से भी नाज़ुक है,
बातों से भी ये टूट जाया करता है।

18. बुलंदियों पे पहुँची औलाद जब खफा हो,
माँ की नज़र हर शाम झुकी-झुकी रहती है।

19. नसीहतों का असर अगर वक्त पे न हो,
तो उम्र भर की मेहनत भी धुंधली लगती है।

20. औलाद अगर फिसल जाए राह से,
तो माँ-बाप का हर सपना बुझ सा जाता है।

21. दौलत नहीं, अदब सिखाओ औलाद को,
वरना वो आँखों में आँसू छोड़ जाती है।

22. जो बुढ़ापे में साथ छोड़ दे औलाद,
वो वक्त से पहले ही मर जाया करता है।

23. रिश्तों की कश्ती में जो दरार आ जाए,
वो टूटे हुए तारों को जोड़ती नहीं है।

24. मोहब्बत के जज़्बात जो दबा दिए जाएं,
वो दर्द भी दिल की दीवारें तोड़ देता है।

25. वो रिश्ते जो टूट कर बिखर जाएं कहीं,
वो जज़्बात भी दिल को घुटन दे जाते हैं।

26. बच्चों की नादानी में जो दर्द छुपा हो,
वो दिल भी कभी-कभी टूट जाता है।

27. न जाने किस मौसम की बारिश है ख़्वाब भी,
भीगते हैं रात भर, सूखते नहीं सुबह तक।

28. कटी रातों की सिसकी, सही सबाब भी,
उजालों में छुपा है कोई अज़ाब भी।

29. कभी सूरत-ए-यार था, अब आईना-ए-आब भी,
बिखर गया है वक़्त में, जैसे कोई ख़्वाब भी।

30. न वो रहा, न वो दौर, न कोई इंतेख़ाब भी,
कभी था जो हमारी रूह, अब नहीं वो ख़्वाब भी।

31. न वफ़ा के लिए रहा, न बेगाने का ख़्वाब भी,
राहों में उलझा हूँ, खो गया है मेरा हिसाब भी।

32. न वो क़तरा, न दरिया, न कोई साहिल-ए-आब भी,
धुंधला सा अब हो गया है, वो पुराना ख़्वाब भी।

33. वो सपने जो अधूरे रह जाएं कहीं,
वो ख्वाहिशें भी दिल को जलाती हैं।

34. रुकूँ कहाँ, चलूँ कहाँ, ये सिलसिला-ए-ख़्वाब भी,
हर कदम पे उलझता है, कोई नया सवाल भी।

35. न वो गुल, न बहारें, न कोई चमन-ए-सराब भी,
हर रंग में अब घुल गया है, दिल का कोई जवाब भी।

36. न सुबह, न शाम, न कोई रात-ए-तनहाई भी,
लम्हे टूटकर गिरते हैं, जैसे कोई ख़्वाब भी।

37. न वो रंग, न वो बू, न कोई नग़मा-ए-शबाब भी,
राहों में उलझकर खो गया है, हर एक ख़्वाब भी।

38. हर साँस पे लिखी है कोई नई तलाश भी,
सफर में छुपा है, एक नया एहसास भी।

39. चिराग़-ए-मोहब्बत था, पर बुझ गया हवा के साथ,
सिलसिला रुका है, मगर कुछ सवालात के साथ।

40. न पूछ किसी से मेरे दर्द की दास्ताँ कोई,
ये ख़ामोशी ही है, जो मेरे जीने का राज़ है।

41. यूँ तो हवाओं में बिखरा हूँ मैं गुबार की तरह,
फिर भी दिल में एक चुप सी उम्मीद है कहीं।

42. मुद्दतों से सुन रहा हूँ दर्द की आवाज़ें ख़ुद,
आईने में मिलती हैं मुझसे ही माजराएँ ख़ुद।

43. न वो शख़्स रहा, न वो राहें, न वो मंज़िलें रहीं,
कुछ धुंधली सी यादें थीं, बस वही सिलसिलें रहीं।

44. न कभी मिला वो हुस्न, न कभी मिली वो बहार,
ख़्वाबों में सजी रही वो गुमशुदा बहार।

45. तुझे याद करके जो लिखा था वो ख़त मिट गया,”
“मेरे आँसूओं में डूबकर हर लफ़्ज़ छिटक गया।

46. न वक़्त की रफ़्तार रुकी, न दिल की धड़कन थमी,”
“दिल में तेरा ही नाम है, और कुछ भी नहीं।

47. किसी के चेहरे पे आँसू बनकर न उतर सका,”
“जो लफ़्ज़ों में था, वो दर्द कभी बयाँ न हो सका।

48. न माँगा था कभी दर्द, न चाहा था कोई सुकूँ,”
“बस तुझसे मिलने की ख्वाहिश थी, और कुछ नहीं

49. अब तक न जान सका ये फानी दुनिया का राज़ क्या,
हर दौर-ए-ज़माना लाता है सवाल-ए-निराज़ क्या।

50. जख़्मों के हर लफ़्ज़ में बे-माँगी निशानी हूँ,”
“एहसास-ए- दफ़न हूँ, अनकही कहानी हूँ।

A monochromatic dreamscape with burning origami cranes, a crumbling hourglass, shattered mirrors reflecting starry-eyed faces, and ghostly hands reaching toward flames.
Time turns questions to ash, but the stars still listen.”