
✍️ तआर्रुफ़:
“बेमिसाल लोग” एक ऐसी ग़ज़ल है जो इंसानियत, मोहब्बत, और बेमतलब की ख़िदमत को सलाम पेश करती है। इसमें वो किरदार उभरते हैं जो न नाम के भूखे हैं, न शोहरत के, बल्कि रूह की गहराई से दूसरों के ज़ख़्मों पर मरहम रखते हैं। ग़ज़ल का हर शेर एक ऐसे बेनाम फ़रिश्ते की तस्वीर पेश करता है, जो समाज के हर कोने में चुपचाप अपनी मौजूदगी से रोशनी बाँटता है। ‘कबीर’ की यह पेशकश उन सच्चे इंसानों के नाम है, जो बग़ैर किसी इनाम की उम्मीद के, इस दुनिया को बेहतर बनाने में लगे हैं। यह ग़ज़ल पढ़ने वालों के दिल को भी रौशन कर देती है।
ग़ज़ल: “बेमिसाल लोग”
जो लोग सदा ज़ख़्म-ए-दिलों पर मरहम रखते,
हम समझते हैं वही रूह-ए-आदम से लगे हैं।
जो बूढ़े गिरें राह में, बच्चों को जो थामें,
कुछ हाथ दुआओं की तरह हर ग़म में लगे हैं।-1
हर सांस ने पाया है सुकूँ उनकी वजह से,
जो दिल से, बिना नाम के, नेमत में लगे हैं।-2
दौलत नहीं पूछी कभी, मज़हब नहीं देखा,
कुछ लोग वफ़ा बन के मोहब्बत में लगे हैं।-3
हम भी तो चलें राह-ए-अमल उनके ही पीछे,
जो लोग खुदा की ही इबादत में लगे हैं।-4
ये ज़िन्दगी असल में है औरों के लिए जीना,
जो बात समझते हैं, हिकमत में लगे हैं।-5
जहाँ में अंधेरों को जलाना है जिन्हें,
वो लोग चराग़ों की सियासत में लगे हैं।-6
किसी की मुसीबत को जो अपनी समझते,
वो लोग दुआ बन के राहत में लगे हैं।-7
कहीं आँख को आँसू मिले, और कहीं हँसी,
जो लोग भी तक़सीम-ए-नेअमत में लगे हैं।-8
ना नाम है, ना शोहरत, ना सियासी जलसे,
वो ग़ैर-मशहूर ही रहमत में लगे हैं।-9
न थकते हैं, न रूठते, न करते हैं शिकायत,
वो लोग जो सब्र की सीरत में लगे हैं।-10
किसी की भी आँखों में जो आँसू न रहने दें,
वो लोग ही इस दौर की उल्फत में लगे हैं।-11
बिना किसी मज़हब के बाँटें जो ख़ुशबुएँ,
वो लोग तो बस अम्न की तर्ज़ीह में लगे हैं।-12
न अफ़्साना बनें वो, न मंज़र बन सकें वो,
जो लोग ग़रीबों की हिकायत में लगे हैं।-13
हम पूछते हैं कौन हैं वो बेमिसाल लोग?
कहा गया — जो “ख़ल्क़” की ख़िदमत में लगे हैं।-14
न देखी सियासत, न माँगा सिला कुछ,
जो थे भीड़ में, वो ही राहत में लगे हैं।-15
जहाँ चीख़ है, आँसू हैं, सन्नाटे हैं,
कुछ लोग वहाँ हौसले बन के लगे हैं।-16
ख़ुलूस-ए-नज़र से जो पढ़ते हैं दुख-दर्द,
वो लोग ही फ़र्ज़-ए-मुहब्बत में लगे हैं।-17
नशेमन-ए-ग़म की तामीर-ए-जाँ में जो हैं,
वो लोग हर इक जज़्बा-ए-नेमत में लगे हैं।-18
कबीर उनको ही पहचानता है अब तो,
जो बेनाम रह कर भी ख़िदमत में लगे हैं।
🔚 ख़ातमा:
“बेमिसाल लोग” ग़ज़ल उन बेनाम किरदारों को समर्पित है जो इस दुनिया को बेहतर बनाने में लगे हुए हैं — चुपचाप, बिना किसी इनाम या तालियों की चाहत के। शायर ‘कबीर’ ने इस ग़ज़ल में ऐसे लोगों की तस्वीर खींची है जो दूसरों की तकलीफ़ को अपना समझते हैं और ख़ुशियाँ बाँटने को अपनी इबादत मानते हैं। ग़ज़ल का हर शेर एक आईना है, जो इंसानियत के उस चेहरे को दिखाता है जो अक्सर भीड़ में खो जाता है। यह ग़ज़ल हमें सिखाती है कि असली greatness दिखावे में नहीं, बल्कि ख़ामोश रहकर दूसरों के लिए कुछ करने में है।
📚 मुश्किल अल्फ़ाज़ के आसान मअ’नी:
ज़ख़्म-ए-दिल = दिल का दर्द, रूह-ए-आदम = इंसान की आत्मा, नेमत = ईश्वर की दी हुई भलाई, वफ़ा = निष्ठा, राह-ए-अमल = अच्छे कर्मों की राह,
इबादत = पूजा या सेवा,
हिकमत = बुद्धिमानी,
चराग़ों की सियासत = रोशनी फैलाने की कोशिश,
तक़सीम-ए-नेअमत = खुशियाँ बाँटना,
रहमत = दया,
सब्र की सीरत = सहनशील स्वभाव,
उल्फत = प्रेम, तर्ज़ीह = प्राथमिकता,
हिकायत = कहानी, ख़ल्क़ = जनता या इंसानियत, ख़ुलूस-ए-नज़र = सच्ची नज़र, फ़र्ज़-ए-मुहब्बत = प्रेम का कर्तव्य, नशेमन-ए-ग़म = ग़मों का बसेरा, तामीर-ए-जाँ = आत्मा की तामीर, जज़्बा-ए-नेमत = भलाई की भावना