
ग़ज़ल “यादों की धुंध” एक गहराई से भरी शायरी है जो मोहब्बत (प्यार) की मासूम जुस्तजू (खोज), जुदाई की सर्दी और यादों की महक को अल्फ़ाज़ों (शब्दों) की शक्ल में ढालती है। इसमें तन्हाई (अकेलापन), रू-ब-रू (सामने-सामने) की खामोशी, और दिल की चुप सिसकियों (दर्द में निकली सांसों) को बेहद नर्म लहजे में बयां किया गया है।
हर शेर एक एहसास है — कहीं रंग-ए-अंदोह (ग़म का रंग) है, कहीं तहरीर (लिखावट) की भीगी स्याही है, तो कहीं फज़ा (हवा/वातावरण) की महकती खामोशी है। शायर ने ज़ुल्फ़ों (बालों) की छांव, तासीर (असर) से भरे लब, और तस्सवुर (कल्पना) की दुनिया में जो रूह (आत्मा) महसूस की, उसे सादगी और दर्द के साथ पेश किया है।
यह ग़ज़ल महज़ अल्फ़ाज़ों का सिलसिला नहीं, बल्कि एक तज़ुर्बा (अनुभव) है — मोहब्बत की उस धुंध का, जो वक्त गुज़रने के बाद भी दिल के कोने में कहीं ठहरी रहती है।
ग़ज़ल: “यादों की धुंध”
तेरी गली में आ के मेरी जुस्तजू ख़ामोश हो गई
लब हिले भी नहीं थे अभी, बात रू-ब-रू हो गई।-1
तन्हा बदन से लिपटी रही यादों की सर्द चादर
तेरी जुदाई में फिर रात रंग-ए-अंदोह हो गई।-2
हमने जिसे जाना था आसमान अपनी चाहत का
वो तो इक ख़्वाब था, बिखरा तो बस धूल हो गई।-3
वो जो कहते थे कभी, ‘हम तो तुम्हारे हैं’
वक़्त बदला तो उन आँखों की भी जुस्तजू हो गई।-4
छांव थी ज़ुल्फ़ों की, महकती सी फ़ज़ा थी
इश्क़ की शाम थी जो अब तन्हा-सी हो गई।-5
वक़्त से शिकवा तो नहीं, मगर गिला ये है
ख़ुशबू थी जो तुझसे, अब वो भी बे-सुकूं हो गई।-6
ख़त लिखा तेरा नाम लेकर सौ बार हमने
हर बार स्याही से तहरीर नम-नम सी हो गई।-7
क़िस्सा-ए-इश्क़ था या सबक़-ए-बेबसी,
अंजाम ये हुआ कि रूह भी मज़लूम हो गई।-8
आँखों में ठहरी रही जो बात अधूरी सी,
वही अब मेरी जिंदगी का इल्ज़ाम तू हो गई।-9
जिसे समझा था राहत मेरी तन्हाई की,
वो अब बेबसी की एक और वजह हो गई।-10
लबों पे थी जो तासीर कभी तेरे नाम की
वो भी अब खामोशियों में गुम हो गई।-11
तेरे आने की जो उम्मीद बाँधी थी दिल ने
वो भी अब एक लतीफ़ा-ए-ग़म हो गई।–12
‘क़बीर’ जिसे चाहा था जान से भी ज़्यादा
वो तस्सवुर भी अब सिसकियों में दफ़्न हो गई।-13
उर्दू शब्दों के अर्थ:
जुस्तजू – खोज, चाहत, लगन, रू-ब-रू – आमने-सामने, सामने, तन्हा – अकेला, अकेलापन, रंग-ए-अंदोह – दुःख का रंग, ग़म का असर, ख़्वाब – सपना, जुस्तजू – तलाश, इच्छा, ज़ुल्फ़ – बाल (महिलाओं के, खासकर सिर के बाल), फ़ज़ा – वातावरण, हवा, तन्हा-सी – अकेली सी, ख़ुशबू – सुगंध, खुशबू, स्याही – स्याही (कलम या लिखने के लिए इस्तेमाल होने वाली स्याही), तहरीर – लेख, दस्तावेज़, मज़लूम – शोषित, पीड़ित, शबनमी – ओस की तरह, रात की नमी जैसी, तासीर – प्रभाव, असर, तस्सवुर – कल्पना, विचार, सिसकियाँ – आहें, छोटी-छोटी सासें जो दुख या दर्द में आती हैं।