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🖋️ तआर्रुफ़ (Introduction):

“रंग-ए-रज़ा” एक सूफ़ियाना और रूहानी अहसास से लबरेज़ ग़ज़ल है, जिसमें शायर ने ज़िंदगी के ग़मों, शिकस्तों और बदनसीबियों को खुदा की रज़ा में बदलते देखा है। हर शेर एक सफ़र है — बदनसीबी से ताबीर, ठोकरों से तज़ुर्बा, आँसुओं से दुआ और शिकस्त से सब्र तक।

यह ग़ज़ल हमें बताती है कि कैसे जब इंसान रज़ा में रंग जाता है, तो तक़दीर की हर तहरीर में उसे खुदा की इनायत महसूस होती है। यही तो है “रंग-ए-रज़ा” — जब हर दर्द में रब की रज़ामंदी नज़र आने लगे।

📜 ग़ज़ल: रंग-ए-रज़ा

मतला:

जो बदनसीबी थी, अब तक़दीर लगती है,
उसी में रज़ा-ए-यार की ताबीर लगती है।

ग़मों की गर्द भी अब नूर बन गई जैसे,
हर एक चोट में अब तुझसे तासीर लगती है।-1

कहीं ठोकर मिली, कहीं जल उठे दीपक,
हयात अब तो तज़ुर्बों की तावीज़ लगती है।-2

हक़ीक़तों की जो किरचें चुभी थीं आँखों में,
वो अब बस इक नसीहत की तस्वीर लगती है।-3

जिसे कहा था हमने रुसवाई-ए-वक़्त,
अब उसी लफ़्ज़ में तासीर लगती है।-4

हर इक सवाल में अब रौशनी है शामिल,
हर इक जवाब में अब तन्हाई छलकती है।-5

कभी जो आँसू थे, अब दुआ बन गए हैं,
ये भी रहमत की कोई तहरीर लगती है।-6

जिसे हम अपनी शिकस्त समझते थे,
वही अब सब्र की ज़ंजीर लगती है।-7

वो राह जो कभी मंज़िल से दूर थी बहुत,
अब उसी से दिल को तालीम मिलती है।-8

वो जो लुट गया था सब कुछ राह-ए-हक़ में,
अब वही फ़क़ीरी हमें ताजीर लगती है।-9

वो नाम जो लबों से ना उतरता कभी,
अब दिल की धड़कनों की तज़हीर लगती है।-10

जिसे तर्क किया था दुनियावी ख़्वाब समझकर,
अब वही ख़्वाब राह-ए-यक़ीन लगती है।-11

मकता:
क़बीर’ ये क्या रंग है रहमतों का यारब,
तेरा फक़्र भी अब जागीर लगती है।

🕊️ ख़ातमा (Conclusion):

“रंग-ए-रज़ा” सिर्फ़ एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि तस्लीम व रज़ा की एक दास्तान है। यह उन सब के लिए आईना है जो ज़ख़्मों से गुज़रकर राहत चाहते हैं, जो शिकस्तों को सबक और तन्हाई को तस्लीम बना लेते हैं। मक़ते में ‘क़बीर’ ने एक सूफ़ियाना हकीकत को छुआ है — जब फक़्र भी जागीर बन जाता है, तो समझिए इंसान रज़ा के असल रंग में रंग चुका है।

📘 मुशकिल अल्फ़ाज़ और उनके आसान मायने

रंग-ए-रज़ा – खुदा की मरज़ी का रंग, सूफ़ियाना – आध्यात्मिक, रूहानी – आत्मिक, ग़म – दुख, शिकस्त – हार, रज़ा – मरज़ी, ताबीर – सच्चाई की व्याख्या, तज़ुर्बा – अनुभव, तावीज़ – रक्षक चीज़ (प्रतीकात्मक ज्ञान), हक़ीक़त – सच्चाई, किरचें – टुकड़े, नसीहत – सीख, रुसवाई – बदनामी, तासीर – असर, रौशनी – प्रकाश, तन्हाई – अकेलापन, रहमत – कृपा, तहरीर – लिखी हुई बात, सब्र – धैर्य, फक़ीरी – दरवेशी जीवन, ताजीर – इनाम या बदला, तज़हीर – खुलासा, तर्क किया – छोड़ दिया, राह-ए-यक़ीन – विश्वास की राह, तस्लीम – स्वीकार करना, फक़्र – ज़ाहिरी गरीबी लेकिन रूहानी अमीरी, जागीर – मिलकियत, सौगात।