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तआर्रुफ़:

रौशनी की तलाश” एक ऐसी ग़ज़ल है जो दिलों के अंधेरों को मोहब्बत, तहज़ीब और इंसानियत की रौशनी से रौशन करने की कोशिश करती है। यह शायरी सिर्फ़ जज़्बातों की नहीं, बल्कि एक सोच, एक मंशा, और एक सामाजिक पैग़ाम की आवाज़ है। इसमें हर शेर किसी न किसी इंसानी हक़ीक़त को उजागर करता है — कभी मुफ़लिसी, कभी उम्मीद, कभी अदब और कभी मोहब्बत की ज़रूरत। ग़ज़ल हर उस इंसान के लिए है जो चाहत रखता है उजाले की, चाहे वो रूहानी हो, सामाजिक हो या इल्मी। इसमें हर लफ़्ज़ अपने अंदर एक चराग़ लिए हुए है जो सच्चाई, ताल्लुक़ात और इंसानियत की राह को रौशन करता है।

ग़ज़ल का नाम: “रौशनी की तलाश”

मतला:
यूँ रौशनी करें कि उजाला हो हर तरफ़,
अंधेरों में डूबे दिलों तक बात जाए।

अश्कों की ज़बां हो, दुआओं की बोली,
हर दर्द, हर ज़ख़्म, मोहब्बत समझ पाए।-1

उम्मीद की इक किरण भी काफ़ी है यारो,
अगर दिल की दुनिया में सूरज न आए।-2

हर बात में झलके अदब और वफ़ा का रंग,
गुफ़्तगू की तहज़ीब फिर लौट आए।-3

जो बात दिलों तक पहुँचती नहीं अब,
वो लफ़्ज़ों की पोशाक पहन कर आए।-4

रखें ऐसे उसूल कि झुक जाए ताज भी,
हर तख़्त से ऊँचा जो सच्चाई को पाए।-5

साया हो हर एक को इस चराग़ तले,
कहीं भी किसी को अँधेरा न पाए।-6

बाँटें हँसी, बाँटें सुकून, बाँटें ख़ुशबू,
कि दुनिया हमें देख कर कुछ सीख जाए।-7

हर शख़्स हो एक चराग़ अपने घर में,
ना कोई भी कोना उजाले से चूक जाए।-8

मुफ़लिस की भी आँखों में सपने रहें,
जिन्हें देख के हर दर्द मुस्काए।-9

तालीम, तहज़ीब, मोहब्बत की राहें,
हर बस्ती की पहचान बन जाए।-10

जिसकी जबान हो नर्म, हाथ में फूल,
ऐसा बाशिंदा हर सू नज़र आए।-11

वो शख़्स हीरा है जो ज़ख़्म सी दे,
मगर मुस्कुराहट का मरहम लगाए।-12

तारीख़ें भी नाम लें इंसानियत का,
अब कुछ ऐसा किरदार बन जाए।-13

दीन और दुनिया का मेल हो कुछ यूँ,
कि खुदा भी हमें देख मुस्काए।-14

मज़हब ना बाँटे, मोहब्बत करे सबको,
इस सोच से इक नया दौर आए।-15

मक़ता:
‘क़बीर’ चलो अब ये क़सम ले लें दिल से,
के हर साँस से रौशनी फैल जाए।

ख़ातमा (Khaatma):

“रौशनी की तलाश” सिर्फ़ एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि एक दुआ, एक अज़्म और एक उम्मीद है — कि हम सब अपने-अपने दिलों में रौशनी का चराग़ जलाएँ। इस ग़ज़ल का मक़सद नफ़रतों के घुप्प अंधेरे में मोहब्बत की एक किरण बनकर सामने आना है। मक़ता इस बात पर ख़त्म होता है कि ‘क़बीर’ जैसे शाइर रौशनी को साँसों की तरह महसूस करते हैं और इसे हर ज़र्रे तक पहुँचाने का जज़्बा रखते हैं। यह शायरी हमें याद दिलाती है कि जब लफ़्ज़ तहज़ीब से भर जाएँ, और नीयत साफ़ हो — तो समाज, सोच, और दौर सब बदल सकते हैं। यही इस ग़ज़ल का असल संदेश है।

मुशकिल उर्दू अल्फ़ाज़ के आसान हिंदी मअ’नी (अर्थ):

अश्क – आँसू, ज़बां – ज़ुबान/भाषा, किरण – रोशनी की रेखा, गुफ़्तगू – बातचीत, तहज़ीब – शालीनता/संस्कार, तख़्त – सिंहासन, साया – छाया/सुरक्षा, मुफ़लिस – गरीब/निर्धन, तालीम – शिक्षा, बाशिंदा – निवासी/रहने वाला, मरहम – ज़ख़्म पर लगाने वाला इलाज, तारीख़ – इतिहास, दीन – धर्म, मज़हब – संप्रदाय/धार्मिक विचार, चराग़ – दीया/लाइट का स्रोत, क़सम – वचन/संकल्प, मक़ता – ग़ज़ल का अंतिम शेर (शाइर का नाम सहित), मतला – ग़ज़ल का पहला शेर