तआऱुफ़ (Introduction) :

वक़्फ़ एक ऐसा निज़ाम है जो सदीयों से मुस्लिम समाज में मआशी (आर्थिक) और समाजी (सामाजिक) फ़लाह-ओ-बहबूदी के लिए बुनियादी किरदार अदा करता चला आ रहा है। लेकिन वक़्फ़ से मुताल्लिक़ क़ानूनात वक़्त के साथ कई सवालात, इख़्तिलाफ़ात और गलतफ़हमियों की ज़द में आ गए हैं। वक़्फ़ क़ानून 1995 ने जहां एक बुनियादी ढांचा दिया, वहीं 2025 का मुतवक़्क़े (अपेक्षित) तरमीमी क़ानून बहुत से अहम तब्दीलियाँ लेकर आया है—ख़ुसूसन ASI के तहफ़्फ़ुज़शुदा आसार और आदिवासी ज़मीन से मुताल्लिक़ मुआमलात में। इस ब्लॉग में हमने इन दोनों क़वानीन के दरमियान मुत्तहिद तक़ाबुली जद्दोजहद पेश की है, ताकि क़ारीन को एक वाज़ेह और मुकम्मल तसव्वुर मिल सके कि ये तब्दीलियाँ किन मक़ासिद के तहत की गईं हैं और इनका असर समाजी व तामीरी (संरचनात्मक) सतह पर किस तरह पड़ेगा।

“नज़्म: वक़्फ़ का सवाल”

हुस्न-ए-मज़हब की ज़मीन पर, वक़्फ़ की तामीर थी,
हर सदा में रूह बसती, हर हवा में तासीर थी।-1

इबादतों के हर नुक़्ते में बस यक़ीन ही यक़ीन था,
मगर सियासत की साज़िश में खो गया वो दिल-नशीन था।-2

धारा चौदह की सूरत में, क्यों दख़्ल गैरों का हुआ था,
जहाँ ‘हम’ का बसेरा था, वहाँ शक महज़ीन था।-3

कलेक्टर की निगहबानी में सजदा भी तौला जाएगा,
हर दुआ की तास्दीक़ अब सरकारी तर्ज पर लिखा जाएगा।-4

“वक़्फ़ बाय यूज़र” की जो मिसालें थीं, वो अब हटा दी गईं,
माथों से लगे जो पत्थर, वो तारीख़ से मिटा दी गईं।-5

जामा से हज़रतबल तक, हर साँस उलझी हुई सी थी,
रौशनी में भी अंधेरे की कोई पुरानी तदबीर थी।

औलादों का वक़्फ़ भी अब इंसाफ़ के तराज़ू में आ गया,
मगर क्या ये इन्साफ़ था — या कोई नया फ़साना बना गया?

हिस्सादारी दी औरतों को — बात तो जहीन थी,
पर रस्मों की उन जंजीरों में भी इक सुकून की तर्ज थी।

मजारें, मस्जिदें, मयारक़ अब स्मारक बन जाएँगे,
रूहानी फ़ज़ा की जगह, क़लमी नक़्शे छा जाएँगे।

RTI में जो फ़ाइलें खुलेंगी, वो कौन-सी दलील देंगी?
जो रूह बसती थी वहाँ, क्या वो गवाही नहीं देंगी?

कहते हैं ये शफ़्फ़ाफ़ियत की नई तमीज़ है,
हम कहते हैं — ये तहज़ीब की सबसे बड़ी सलीब है।

ज्ञानवापी, मथुरा, अजमेर की गलियाँ अब गवाह बनेंगी,
यक़ीन नहीं, दस्तावेज़ अब मस्जिदों की राह बनेंगी।

बोर्ड की ख़ुदमुख़्तारी को अब सरकारी नक़्शा लील गया,
सवालों की बारिश में, हर फ़ाइल भीगी-सी धील गया।

पाँच सौ साल का इतिहास गर गवाही नहीं दे सका,
क्या दस्तख़तों से मिटा देंगे वो जो इबादत का सिलसिला था?

तहज़ीबों के इस मर्कज़ में, फ़ैसले सियासी ना हो,
इंसाफ़ हो हर सिम्त में, पर हुक्मत से रस्सी ना हो।

सुप्रीम अदालत जब सुने, दीवारों की सदा हो,
जहाँ जुबां खामोश हो, वहाँ बस दुआ का सिला हो।

न साज़िश चले, न जज़्बात कटें, न आस्था रोती रहे,
वक़्फ़ भी रहे, वतन भी फले — यही दुआ सच्ची रहे।

‘क़बीर’ कहता है — मत छेड़ो इस विरसे की तर्जुमानी,
हर क़दम पर इबादत है, हर वक़्फ़ में है इक कहानी।

🔖 उर्दू शब्दों के सरल हिंदी अर्थ

हुस्न-ए-मज़हब – धर्म की ख़ूबसूरती, वक़्फ़ – धार्मिक या सामाजिक संपत्ति (अल्लाह के नाम पर समर्पित),
तामीर – निर्माण, तासीर – असर, प्रभाव, यक़ीन – भरोसा, विश्वास, दिल-नशीन – दिल को छू लेने वाला, प्यारा, साज़िश – चाल, षड्यंत्र, महज़ीन – दुख से भरा, उदास, निगहबानी – निगरानी, देखरेख,
तौला जाएगा – मूल्यांकन किया जाएगा, तास्दीक़ – पुष्टि, प्रमाणिकता, मिसालें – उदाहरण, रौशनी – उजाला, तदबीर – उपाय, योजना, तराज़ू – तराजू, न्याय का मापदंड, फ़साना – कहानी, अफ़साना, जहीन – समझदार, बुद्धिमान, तर्ज – ढंग, तरीका, मयारक़ – कब्रिस्तान, फ़ज़ा – माहौल, वातावरण,
क़लमी नक़्शे – दस्तावेज़ी नक्शे, कागज़ी योजना, दलीलें – तर्क, प्रमाण, शफ़्फ़ाफ़ियत – पारदर्शिता, साफ़गोई, सलीब – बोझ, तकलीफ़, गवाह – साक्षी, ख़ुदमुख़्तारी – स्वायत्तता, स्वतंत्रता, लील गया – निगल गया, अपने में समा लिया, रस्सी – नियंत्रण, पकड़, सिला – फल, इनाम, जज़्बात – भावनाएँ,
तर्जुमानी – अनुवाद, व्याख्या, विरसा – विरासत।

वक़्फ़ क़ानून 1995 बनाम वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025:

मुत्तहिद तक़ाबुली (तुलनात्मक) जद्दोजहद (वक़्फ़ क़ानून 1995 बनाम वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025 बनाम ASI से मुताल्लिक़ मुक़र्ररात)

मौज़ू/मुक़र्ररात वक़्फ़ क़ानून, 1995 वक़्फ़ (तरमीम) क़ानून, 2025 (उम्मीद क़ानून) ASI महफ़ूज़ आसामी पर असर (2025 तरमीम के बाद)
क़ानून का नाम वक़्फ़ क़ानून, 1995 मुत्तहिद वक़्फ़ इंतज़ामात, ताक़त, कुशादगी व तरक़्क़ी क़ानून, 2025
वक़्फ़ की तशरीह के तरीक़े एलान, इस्तेमाल, वक़्फ़-अल-औलाद “इस्तेमाल से वक़्फ़” मंसूख़; सिर्फ़ एलान या वक़्फ़-अल-औलाद ASI आसार पर “इस्तेमाल से वक़्फ़” नाफ़िज़ नहीं
सरकारी आसामी का वक़्फ़ दर्जा साफ़ मुक़र्ररात नहीं सरकारी आसामी को वक़्फ़ न समझा जाएगा ASI महफ़ूज़ा आसार सरकारी आसामी माने जाएँगे
वक़्फ़ आसामी की तहक़ीक़ात वक़्फ़ बोर्ड द्वारा कलेक्टर/मालिया अफ़सर द्वारा ASI आसार की तहक़ीक़ात ASI द्वारा ही होगी
मर्कज़ी वक़्फ़ कौंसिल की बनावट सिर्फ़ मुस्लिम अफ़राद मुस्लिम ख़वातीन, मुख़्तलिफ़ फ़िरक़े व ग़ैर-मुस्लिम अफ़राद शामिल ASI आसार पर वक़्फ़ बोर्ड का कोई असर नहीं

वक़्फ़ ट्रिब्यूनल की बनावट

मुस्लिम क़ानूनदाँ शामिल मुस्लिम क़ानूनदाँ हटाए गए; हाईकोर्ट में दरख़्वास्त का इंतज़ाम ASI आसार से मुताल्लिक़ झगड़े सिविल कोर्ट में जाएँगे
माली शफ़ाफ़ियत वक़्फ़ बोर्ड को 7% हिस्सा हिस्सा घटाकर 5% किया गया; हिसाबात की जाँच लाज़िम ASI आसार की देखभाल के लिए वक़्फ़ बोर्ड हिस्सा नहीं देगा
वक़्फ़ आसामी का दर्ज़ वक़्फ़ बोर्ड द्वारा दर्ज़ मर्कज़ी पोर्टल के ज़रिए दर्ज़ ASI आसार को वक़्फ़ पोर्टल पर दर्ज़ नहीं किया जाएगा
दावे व झगड़ों का हल वक़्फ़ बोर्ड के पास इख़्तियारात कलेक्टर/मालिया अफ़सर द्वारा फ़ैसला ASI आसार के झगड़े ASI/अदालत द्वारा सुलझाए जाएँगे
मुद्दत (लिमिटेशन एक्ट) लागू नहीं 12 साल की मुद्दत लागू ASI आसार पर दावे AMASR क़ानून, 1958 के तहत लागू
आदिवासी ज़मीन कोई पाबंदी नहीं आदिवासी ज़मीन पर वक़्फ़ दावे मुमानिअ ASI आसार की तरह आदिवासी ज़मीन भी वक़्फ़ से आज़ाद
ASI महफ़ूज़ आसार का दर्जा वक़्फ़ बोर्ड दावा कर सकता था (मिसाल: जामा मस्जिद) साफ़ मुमानिअ: ASI आसार को वक़्फ़ न समझा जाएगा 250+ ASI आसार वक़्फ़ दावों से मुक्त होंगे
ख़वातीन के हुक़ूक़ महदूद नुमाइंदगी बोर्ड में 2 ख़वातीन सदस्य लाज़िम ASI आसार से मुताल्लिक़ नहीं

अहम तब्दीलियों (महत्वपूर्ण बदलावों) का ख़ुलासा (सारांश)

ASI आसार (स्मारक/पुरातात्विक स्थल) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा):

  • 1995 क़ानून: वक़्फ़ बोर्ड ASI महफ़ूज़ (संरक्षित) आसार को वक़्फ़ (धार्मिक न्यास की संपत्ति) घोषित कर सकता था (मिसाल (उदाहरण): दिल्ली की जामा मस्जिद)।
  • 2025 तरमीम (संशोधन): ASI द्वारा महफ़ूज़ किसी भी आसार को वक़्फ़ नहीं माना जाएगा। झगड़ा होने पर कलेक्टर ASI दस्तावेज़ात (दस्तावेज़ों) के बुन्याद (आधार) पर फ़ैसला करेंगे।

आदिवासी ज़मीन पर पाबंदी (प्रतिबंध):

  • आदिवासी इलाक़ों में वक़्फ़ आसामी (दावा/स्वामित्व) का दावा नहीं किया जा सकेगा, जिससे उनकी ज़मीन महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहेगी।

वक़्फ़ इंतज़ामात (प्रबंधन) में शफ़ाफ़ियत (पारदर्शिता):

  • माली इस्लाह (वित्तीय सुधार): वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाने वाला हिस्सा 7% से घटाकर 5% किया गया।
  • ख़वातीन (महिलाओं) की ताक़त: बोर्ड में कम-से-कम 2 ख़वातीन सदस्य लाज़िम (अनिवार्य)।

क़ानूनी दस्तूर (प्रक्रिया) में तब्दीली (परिवर्तन):

  • ट्रिब्यूनल: अब वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ 90 दिनों में हाईकोर्ट में दरख़्वास्त (याचिका) की जा सकेगी।
  • दावों की मुद्दत (अवधि): वक़्फ़ आसामी के दावों पर इंतहा (सीमा) क़ानून, 1963 (12 साल) लागू होगा।

ASI महफ़ूज़ आसार पर असरात (प्रभाव)

मिसालें (उदाहरण):

  • जामा मस्जिद, दिल्ली: पहले वक़्फ़ बोर्ड के तहत थी, अब ASI के इंतज़ाम (प्रबंधन) में आ जाएगी।

  • हुमायूँ का मक़बरा: ASI के पास रहेगा, वक़्फ़ बोर्ड का कोई दख़ल (हस्तक्षेप) नहीं।

क़ानूनी बुन्याद (आधार): AMASR क़ानून, 1958 के तहत ASI आसार पर वक़्फ़ दावे नाक़ारा (अमान्य/अस्वीकार्य) होंगे।

इस तरमीम (संशोधन) का मक़सद (उद्देश्य):
वक़्फ़ इंतज़ामात को शफ़ाफ़ (पारदर्शी) बनाना और ASI की सांस्कृतिक विरासत को वक़्फ़ दावों से आज़ाद (मुक्त) करना है।

उर्दू शब्दावली का इस्तेमाल:

S.No. शब्द मायने तफ़्सील (व्याख्या)
1 मुत्तहिद (Mutahid) इत्तेहाद (समझौता) इत्तेफ़ाक़ (सहमत) या इज्तिमाईयत (सामूहिकता) का इशारा, जब मुख़्तलिफ़ हिस्से या तंज़ीमात एक साथ मुत्तसिल (जुड़ा हुआ) हो जाएँ।
2 तक़ाबुली (Taqabuli) मुक़ाबलाती (तुलनात्मक) मुताला (अध्यान) या मुवाज़ना (तुलना) करने का अमल, जहाँ दो या ज़्यादा चीज़ों का तक़ाबुल (तुलनात्मक मूल्यांकन) हो।
3 जद्दोजहद (Jadd-o-Jahd) मुबाहिसा (संघर्ष) मुशाक्कत (कठिन परिश्रम), मेहनत-ए-फ़ानी (सफलता की मेहनत), या किसी मक़सद की तह में सई (प्रयास)।
4 वक़्फ़ (Waqf) इनायत (दान) किसी मिल्कियत को मज़हबी, ख़ैराती (दान से संबंधित) या आम सेवा के लिए अब्दियत (स्थायी) तौर पर तब्सरा (समर्पण) करना।
5 क़ानून (Qanoon) ज़ाब्ता (नियम) दस्तूर-अल-अमल (कानूनी प्रक्रिया), जो समाज में इंतज़ाम (प्रबंधन) और निज़ाम (व्यवस्था) क़ायम रखता है।
6 मुक़र्ररात (Muqararat) मुहैया शर्तें (प्रस्तावित शर्तें) क़वाइद (नियम), शराइत (शर्तें), या अहकाम (आदेश) जो किसी हालात पर नाज़िर (नियंत्रण करना) होते हैं।
7 उम्मीद (Umeed) रजा (इच्छा) किसी नतीजे की आरज़ू (इच्छा) या इंतज़ार (प्रतीक्षा), जब निकाह (संपूर्णता) की गुज़ारिश हो।
8 तरमीम (Tarmeem) इस्लाह (सुधार) किसी ज़ाब्ते (नियम) या निज़ाम (प्रणाली) में तब्दीली (परिवर्तन) या बहाली (सुधार) करना।
9 महफ़ूज़ (Mahfooz) हिफ़ाज़तशुदा (सुरक्षित) किसी प्रक्रिया का खुलासा (खुलासा) और बे-लगाम (अनियंत्रित) होना, ताकि खुलूस (ईमानदारी) बरक़रार रहे।

10

आसामी (Asami) मुस्तहिक़ (लाभार्थी) वह शख़्स जो किसी मिल्कियत (स्वामित्व) या हक़ (अधिकार) का मुतास्सिर (लाभान्वित) हो।
11 नाफ़िज़ (Nafez) जारी (लागू) किसी हुक्म (आदेश), क़ानून (कानून) या मुक़र्रर (निर्धारित) का अमल में आना (लागू होना)।
12 कलेक्टर (Collector) हाकिम-ए-ज़िला (जिला प्रशासनिक अधिकारी) सरकारी अफ़सर जो इलाक़े (क्षेत्र) के इंतज़ामात (प्रशासन) और मालियात (वित्तीय) की निगरानी (देखरेख) करता है।
13 मालिया अफ़सर (Maliya Officer) सरमाया अफ़सर (वित्तीय अधिकारी) वह अधिकारी जो आमदनी (आय) और माली मसाइल (वित्तीय समस्याएं) की देखरेख (पर्यवेक्षण) करता है।
14 मुसीबत (Museebat) आफ़त (दुश्वारी) मुश्किलात (कठिनाइयाँ) या परेशानी (समस्या) जो किसी पर मुसल्लत (लादे गए) हो।

15

दावा (Dawa) मुक़दमा (अर्जी) हक़ (अधिकार) या मिल्कियत (स्वामित्व) पर इद्दिया (दावा) करना, या अदालत में अर्ज़ी (अर्जी) पेश करना।
16 फ़ैसला (Faisla) हुक्म (निर्णय) किसी मुबाहिसे (विवाद) या निज़ा (विवाद) का अंजाम (निष्कर्ष), जो क़ाज़ी (न्यायाधीश) या मजलिस (पैनल) द्वारा सुनाया जाता है।
17 इस्तेमाल (Istamal) इस्तिमाल (प्रयोग) किसी चीज़ का इस्तेमाल (प्रयोग) या कारोबार (व्यापार) में लाना।
18 तहक़ीक़ात (Tahqiqat) तफ़्तीश (जाँच) किसी वाक़िए की गहराई से जाँच (विस्तृत जांच) या तहक़ीक़ (जाँच) करना।
19 आदिवासी (Adivasi) मूलनिवासी (प्रारंभिक निवासी) वह क़ौम (जाति) जो किसी इलाक़े की अस्ल (मूल) बाशिंदा हो, जिनकी रिवायत (परंपरा) और तहज़ीब (संस्कृति) अलग हो।
20 झगड़ा (Jhagda) निज़ा (विवाद) दो फ़िरक़ों के बीच इख़्तिलाफ़ (विरोध) या टकराव (संघर्ष)।
21 शफ़ाफ़ियत (Shafafiyat) बे-पर्दगी (स्पष्टता) किसी प्रक्रिया का खुलासा (खुलासा) और बे-लगाम (अनियंत्रित) होना, ताकि खुलूस (ईमानदारी) बरक़रार रहे।
22 मलिक (Malik) साहिब-ए-मिल्क (स्वामी) वह शख़्स जो किसी आसामी (स्वामित्वधारी) का मालिकाना हक़ (स्वामित्व अधिकार) रखता हो।
23 तजवीज़ (Tajweez) पेशकश (प्रस्ताव) किसी मसले (समस्या) का हल (समाधान) या तजवीज़ (प्रस्ताव) पेश करना।
24 मुस्तफ़ी (Mustafi) इस्तीफ़ा देने वाला (त्यागी) वह शख़्स जो किसी मंसब (पद) या ज़िम्मेदारी (उत्तरदायित्व) से अलग (छोड़) हो जाता है।
25 नियम (Niyam) क़ायदा (विधान) कोई मुक़र्रर (निर्धारित) या मुस्तहकम (स्थिर) तरीक़ा जिसका पाबंदी (अनुपालन) से पालन हो।

वक़्फ़ तरमीम क़ानून, 2025 पर मुस्लिम समाज की अहम इश्कालियात (आपत्तियाँ)

1. मज़हबी ख़ुदमुख़्तारी में दख़लंदाज़ी

मुस्लिम नुक्ता-ए-नज़र:

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का इत्तेहाम है कि ग़ैर-मुस्लिम अफ़राद की तशरीह (धारा 14) और कलेक्टर की ज़िम्मेदारी (धारा 4), दस्तूर के मद्दा-ए-26 (मज़हबी इदारों के इंतज़ाम का हक़) की ख़िलाफ़वर्ज़ी है।

हुकूमत का दावा: यह तब्दीली शफ़ाफ़ियत और ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़ों को रोकने के लिए की गई है।

2. “इस्तेमाल से वक़्फ़” हटाने का असर

मुस्लिम एतराज़: जामा मस्जिद (दिल्ली) और हज़रतबल दरगाह (श्रीनगर) जैसी आसामी अब ASI/सरकारी नियंत्रण में चली जाएँगी, क्योंकि ये “इस्तेमाल” की बुनियाद पर वक़्फ़ थीं।

हुकूमत का जवाब: यह मुक़र्ररा मुज़म्मल दावों (जैसे बेट द्वारका केस) को रोकने के लिए मंसूख़ किया गया।

3. वक़्फ़-अल-औलाद में तब्दीली पर इश्काल (आपत्ति)

मुस्लिम चिंता: नए क़वाइद में ख़वातीन वारिसों को शामिल करने से पैरवारी वक़्फ़ के रिवायती सांचे में इन्क़िलाब आएगा।

हुकूमत की दलील: यह जेंडर बराबरी और मिल्कियत झगड़ों को कम करने के लिए लाज़िमी है।

4. सरकारी आसामी पर पाबंदी का मुताल्लिक़ एतराज़

मुस्लिम नाराज़गी: ASI द्वारा महफ़ूज़ क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद और आदम ख़ान मक़बरे जैसे मज़ारात, जो मुस्लिम मज़हबी मक़ामात हैं, अब वक़्फ़ नहीं समझे जाएँगे।

हुकूमत का तर्क: यह क़ौमी आसार की हिफ़ाज़त और निज़ाअत को कम करने के लिए मुनासिब है।

5. क़ानूनी लिहाज़ से देरी का ख़ौफ़

मुस्लिम शिकवा: नए मुक़र्ररात के तहत कलेक्टर द्वारा तहक़ीक़ात और हाईकोर्ट में अपील की रस्मुल-अमल से मुक़दमे सालों तक मुअत्तल रह सकते हैं।

हुकूमत का जवाब: यह बे-लगाम निपटारे को यक़ीनी बनाएगा।

6. RTI और ऑनलाइन पोर्टल से ख़ुफ़ियात का इश्काल

मुस्लिम एतराज़: वक़्फ़ आसामी का ऑनलाइन दर्ज़ (धारा 5) और RTI के ज़रिए मालूमात मुहैया होने से समाजी नियंत्रण कमज़ोर होगा।

हुकूमत का दावा: यह आम लोगों के हुक़ूक़ और जवाबदेही को मज़बूत करेगा।

7. पूजा स्थल क़ानून, 1991 से टकराव

मुस्लिम चिंता: ज्ञानवापी और मथुरा ईदगाह केस में वक़्फ़ बोर्ड के दावे अब कमज़ोर होंगे, क्योंकि 1991 के क़ानून की दस्तूरीयत ख़ुद मुबाहिसे में है।

हुकूमत का नज़रिया: यह तरमीम क़ानूनी ग़ुबार को दूर करने के लिए है।

8. वक़्फ़ बोर्ड की आज़ादी पर सवाल

मुस्लिम शुबहा: मर्कज़ी वक़्फ़ कौंसिल में हुकूमती तशरीह (धारा 9) और फ़ंड्स पर क़ाबू (धारा 10) से बोर्ड की ख़ुदमुख़्तारी मुतास्सिर होगी।

हुकूमत का जवाब: यह माली बे-इंतज़ामियों को रोकने के लिए मुनासिब है।

9. तारीख़ी वक़्फ़ आसामी का मुस्तक़बिल

मुस्लिम एतराज़: 500+ साल पुरानी आसामी (जैसे अजमेर शरीफ़ दरगाह) जिनका दस्तावेज़ीकरण नहीं, अब निज़ाअत का शिकार होंगी।

हुकूमत का दावा: डिजिटल रिकॉर्ड (https://waqf.gov.in) से शफ़ाफ़ियत बढ़ेगी।

10. सियासी एजेंडे का इत्तेहाम

मुस्लिम नुक्ता-ए-नज़र: यह तरमीम हिंदू-विरोधी नरेटिव को बढ़ावा देने और मुस्लिम इदारों को कमज़ोर करने की साज़िश है।

हुकूमत का जवाब: यह क़ौमी इत्तेहाद और आसामी के ग़लत इस्तेमाल को रोकने के लिए है।

मुतवाज़न नज़रिया

  • कुछ तंज़ीमात (जैसे सूफ़ी सज्जादानशीन परिषद) ने मज़हबी इस्तेमाल और क़ानूनी इस्लाह के दरमियान तवाज़ुन क़ायम करने की पेशकश की है।
  • सुप्रीम कोर्ट की अहमियत: 72+ दरख़्वास्तों के साथ, आख़िरी फ़ैसला अदालत-ए-आज़म द्वारा होगा।

मुस्लिम समाज की इश्कालियात मज़हबी ख़ुदमुख़्तारी, तारीख़ी हक़ूक़ और इंसाफ़ी रस्मुल-अमल पर मर्क़ूज़ हैं, वहीं हुकूमत का मक़सद शफ़ाफ़ियत, क़ानूनी इस्लाह और क़ौमी मसलहत है। इस मुबाहिसे का हल क़ानूनी बहस और समाजी मुबाहिसा (Dialogue) के तालमेल से ही मुमकिन है।

उर्दू शब्दावली का इस्तेमाल:

इत्तेहाम = आरोप, मुअत्तल = लंबित, मुतास्सिर = प्रभावित, निज़ाअत = विवाद, तवाज़ुन = संतुलन, मसलहत = हित (मसलहत का मतलब होता है — ऐसा काम या फ़ैसला जो किसी के भले (भलाई) के लिए हो, भले ही वो बाहर से समझौता लगे।) रस्मुल-अमल = प्रक्रिया, इदारा = संस्थान
मुबाहिसा = चर्चा

नतीजा (Conclusion): वक़्फ़ क़ानून

वक़्फ़ (तरमीम) क़ानून 2025 न सिर्फ़ क़ानूनी व तदबीराती (प्रशासनिक) सतह पर एक नई सिम्त का इशारा करता है, बल्कि ASI की तहज़ीबी विरासत को महफ़ूज़ रखने की सई (प्रयास) भी है। इस तरमीम के ज़रिए वक़्फ़ इंतज़ामात में माली शफ़ाफ़ियत, औरतों की नुमाइंदगी, और आदिवासी हुक़ूक़ की तहफ़्फ़ुज़ जैसी कई अहम पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है। वहीं, वक़्फ़ बोर्ड की बाइसख़्त (बिना अनुमति) दख़ल अंदाज़ी को भी रोका गया है। ये तब्दीलियाँ ना सिर्फ़ इदारी बेहतरी की अलामत हैं, बल्कि एक मुक़द्दस विरासत को सियासी और ज़ाती मफ़ादात से बचाने का बाइस भी हैं। उम्मीद है कि ये जद्दोजहद एक मज़बूत, मुततहिद और साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ वक़्फ़ निज़ाम की बुनियाद रखेगी।