‘वक़्फ़ का सवाल’ एक ऐसे गहरे मामले को जन्म देता है जो मात्र धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व तक सीमित नहीं, बल्कि समाज और सियासत के पेचीदा रिश्तों को भी बेनक़ाब करता है। यह नज़्म उस क़दीम संस्था की दास्तान-ए-हयात और उसकी तहरीक को बयान करती है, जिसे सियासी साज़िशों और तब्दीलियों के झोंकों ने अपनी लपेट में ले लिया। यहाँ वक़्फ़ की सही नीयत और मक़सद को परखते हुए यह सवाल उभरता है कि क्या हम उस रूहानी विर्से को हक़ीक़ी तौर पर महफ़ूज़ कर पा रहे हैं, जो हमारी तहज़ीबी तारीख़ और संस्कृति का एक नाग़िज़ हिस्सा रहा है।

इस नज़्म में हम देखते हैं कि किस तरह वक़्फ़ की तामीर, जो हुस्न-ए-मज़हब की बुनियादों पर क़ायम थी, अब सियासत की खींचतान और सरकारी दख़लंदाज़ियों के जाल में उलझ गई है। यह मामला मात्र किसी ख़ास संस्था या दीन तक मुहद्दद नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए अहम है कि हम अपनी तहज़ीब और संस्कृति को किस हद तक ज़िंदा रख सकते हैं।

‘वक़्फ़ का सवाल’ का हर मिसरा हमें इस सोच पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी तारीख़ और संस्कृति को सिर्फ़ क़ानूनी दायरों में मक़य्यद कर देंगे, या फिर उसकी रूह को बचाने के लिए हक़ीक़ी फ़हम और इंसाफ़ की शाहराह अपनाएँगे। यह इंतख़ाब हमारी नस्ल की सबसे बड़ी आज़माइश है — क्या हम मात्र रस्मी हिफ़ाज़त के चक्कर में अपनी रूहानी पहचान खो देंगे, या अपने असलाफ़ के उस अहद को पूरा करेंगे जिसमें वक़्फ़ सिर्फ़ जायदाद नहीं, बल्कि एक ज़िंदा तहज़ीबी निशान था?

नज़्म: “वक़्फ़ का सवाल”

हुस्न-ए-मज़हब की ज़मीन पर, वक़्फ़ की तामीर थी,
हर सदा में रूह बसती, हर हवा में तासीर थी।

इबादतों के हर नुक़्ते में बस यक़ीन ही यक़ीन था,
मगर सियासत की साज़िश में खो गया वो दिल-नशीन था।

धारा चौदह की सूरत में, क्यों दख़्ल गैरों का हुआ था,
जहाँ ‘हम’ का बसेरा था, वहाँ शक महज़ीन था।

कलेक्टर की निगहबानी में सजदा भी तौला जाएगा,
हर दुआ की तास्दीक़ अब सरकारी तर्ज पर लिखा जाएगा।

“बाय यूज़र” की जो मिसालें थीं, वो अब हटा दी गईं,
माथों से लगे जो पत्थर, वो तारीख़ से मिटा दी गईं।

जामा से हज़रतबल तक, हर साँस उलझी हुई सी थी,
रौशनी में भी अंधेरे की कोई पुरानी तदबीर थी।

औलादों का वक़्फ़ भी अब इंसाफ़ के तराज़ू में आ गया,
मगर क्या ये इन्साफ़ था — या कोई नया फ़साना बना गया?

हिस्सादारी दी औरतों को — बात तो जहीन थी,
पर रस्मों की उन जंजीरों में भी इक सुकून की तर्ज थी।

मजारें, मस्जिदें, मयारक़ अब स्मारक बन जाएँगे,
रूहानी फ़ज़ा की जगह, क़लमी नक़्शे छा जाएँगे।

RTI में जो फ़ाइलें खुलेंगी, वो कौन-सी दलील देंगी?
जो रूह बसती थी वहाँ, क्या वो गवाही नहीं देंगी?

कहते हैं ये शफ़्फ़ाफ़ियत की नई तमीज़ है,
हम कहते हैं — ये तहज़ीब की सबसे बड़ी सलीब है।

ज्ञानवापी, मथुरा, अजमेर की गलियाँ अब गवाह बनेंगी,
यक़ीन नहीं, दस्तावेज़ अब मस्जिदों की राह बनेंगी।

बोर्ड की ख़ुदमुख़्तारी को अब सरकारी नक़्शा लील गया,
सवालों की बारिश में, हर फ़ाइल भीगी-सी धील गया।

पाँच सौ साल का इतिहास गर गवाही नहीं दे सका,
क्या दस्तख़तों से मिटा देंगे वो जो इबादत का सिलसिला था?

तहज़ीबों के इस मर्कज़ में, फ़ैसले सियासी ना हो,
इंसाफ़ हो हर सिम्त में, पर हुक्मत से रस्सी ना हो।

सुप्रीम अदालत जब सुने, दीवारों की सदा हो,
जहाँ जुबां खामोश हो, वहाँ बस दुआ का सिला हो।

न साज़िश चले, न जज़्बात कटें, न आस्था रोती रहे,
वक़्फ़ भी रहे, वतन भी फले — यही दुआ सच्ची रहे।

‘क़बीर’ कहता है — मत छेड़ो इस विरसे की तर्जुमानी,
हर क़दम पर इबादत है, हर वक़्फ़ में है इक कहानी।

An ancient mosque with intricate Islamic arches stands on cracked golden soil, symbolizing faith's beauty. Political shadows and legal documents loom in the background under a split sky: one side glowing with a crescent moon, the other stormy with chains. Ethereal hands hold a fragile scroll labeled 'Virsa' (Legacy)."
“An ancient mosque stands resilient on cracked golden earth, its intricate arches whispering prayers. Above, the sky is torn between the radiant light of faith (symbolized by a crescent moon) and the stormy chains of political intervention. Ethereal hands cradle a fragile scroll—’Virsa’ (legacy)—caught in the crossfire of time and power.”

🔖 उर्दू शब्दों के सरल हिंदी अर्थ

हुस्न-ए-मज़हब – धर्म की ख़ूबसूरती, वक़्फ़ – धार्मिक या सामाजिक संपत्ति (अल्लाह के नाम पर समर्पित),
तामीर – निर्माण, तासीर – असर, प्रभाव, यक़ीन – भरोसा, विश्वास, दिल-नशीन – दिल को छू लेने वाला, प्यारा, साज़िश – चाल, षड्यंत्र, महज़ीन – दुख से भरा, उदास, निगहबानी – निगरानी, देखरेख,
तौला जाएगा – मूल्यांकन किया जाएगा, तास्दीक़ – पुष्टि, प्रमाणिकता, मिसालें – उदाहरण, रौशनी – उजाला, तदबीर – उपाय, योजना, तराज़ू – तराजू, न्याय का मापदंड, फ़साना – कहानी, अफ़साना, जहीन – समझदार, बुद्धिमान, तर्ज – ढंग, तरीका, मयारक़ – कब्रिस्तान, फ़ज़ा – माहौल, वातावरण,
क़लमी नक़्शे – दस्तावेज़ी नक्शे, कागज़ी योजना, दलीलें – तर्क, प्रमाण, शफ़्फ़ाफ़ियत – पारदर्शिता, साफ़गोई, सलीब – बोझ, तकलीफ़, गवाह – साक्षी, ख़ुदमुख़्तारी – स्वायत्तता, स्वतंत्रता, लील गया – निगल गया, अपने में समा लिया, रस्सी – नियंत्रण, पकड़, सिला – फल, इनाम, जज़्बात – भावनाएँ,
तर्जुमानी – अनुवाद, व्याख्या, विरसा – विरासत।