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🖋️ तआर्रुफ़:

“सोज़-ए-नवा” एक रूहानी ग़ज़ल है जो वफ़ा, मोहब्बत, तहज़ीब और इश्क़ की पाकीज़गी को अल्फ़ाज़ की सदा में ढालती है। इसमें हर शेर एक सच्चे जज़्बे की तर्जुमानी करता है। “क़बीर” ने इस ग़ज़ल में लफ़्ज़ों को हर्फ़-ए-दुआ, सुकून और एहसासात की जुबान बना दिया है, जहाँ मोहब्बत सिर्फ़ एक रूहानी रिश्ता नहीं, बल्कि एक रहमत है।

🕊️ ग़ज़ल: सोज़-ए-नवा

मतला:

वो नक़्श-ए-वफ़ा हैं, वो अल्फ़ाज़-ए-सुकूँ हैं,
वो हर्फ़-ए-दुआ भी, वो सोज़-ए-नवा हैं।

नज़रें झुकीं तो हया-ए-नज़र बन गए वो,
उठीं तो तसव्वुर की रहनुमा हैं।-1

वो मिट्टी की ख़ुशबू, वो बाद-ए-सबा हैं,
वो तहज़ीब की लौ, वो रूह-ए-अदा हैं।-2

जो टूटी हुई साँसों को हिम्मत दिलाए,
वो नग़्मा-ए-साँसों की दास्ताँ हैं।-3

जो आँखों से बहकर दुआ-ए-वफ़ा हैं,
वो अश्कों में लिपटी सदा-ए-हया हैं।-4

जो लफ़्ज़ों से पहले ही महसूस हो जाएँ,
वो खामोश लब की अदा-ए-बयाँ हैं।-5

न ज़ख़्मों की तरह, न मरहम की मानिंद,
वो इक रहमत-ए-ख़ास की तर्ज़-ए-फ़ना हैं।-6

जो छू लें तो मंज़िल भी ख़ुद पूछती है,
वो रहबर-ए-दिल हैं, वो मंज़र-ए-जाँ हैं।-7

जो चुपचाप हँसते हुए सब सहें भी,
वो सब्र-ओ-वफ़ा की नई इन्तहा हैं।-8

जो तन्हा सफ़र में भी हमदम बने हों,
वो रिश्ता नहीं, ख़्वाब-ए-वफ़ा हैं।-9

जो चाहें बिना कहे सब जान जाएँ,
वो समझ नहीं, ज़ुबान-ए-जाँ हैं।-10

जो हाथों में लकीरें बदलकर रखें,
वो किस्मत नहीं, तदबीर-ए-जाँ हैं।-11

जो हर बात में ख़ुद को भी भूल जाएँ,
वो इश्क़ नहीं, रुसवाई-ए-जाँ हैं।-12

मक़ता

जो लफ़्ज़ों से “क़बीर” को पहचान लें अब,
वो मीरास नहीं, रूह की दवा हैं।

🔚 ख़ातमा:

इस ग़ज़ल की हर पंक्ति जैसे रूह की गहराइयों से निकली एक दुआ है। “सोज़-ए-नवा” में न सिर्फ़ मोहब्बत की तसव्वुराती तस्वीर है, बल्कि वफ़ा, सब्र, और रूहानी जुड़ाव का पैग़ाम भी है। “क़बीर” के अल्फ़ाज़ यहाँ सिर्फ़ शायरी नहीं, बल्कि तस्सवुर की एक नई राह हैं जो दिल और रूह को छू जाती है।

कठिन उर्दू अल्फ़ाज़ के सरल हिंदी अर्थ:

नक़्श-ए-वफ़ा मतलब वफ़ादारी की छाप, अल्फ़ाज़-ए-सुकूँ यानी सुकून देने वाले शब्द, हर्फ़-ए-दुआ मतलब दुआ का लफ़्ज़, सोज़-ए-नवा यानी दर्दभरी आवाज़, हया-ए-नज़र मतलब नज़रों की शर्म, तसव्वुर यानी कल्पना या सोच, रहनुमा मतलब मार्गदर्शक, बाद-ए-सबा मतलब सुबह की ठंडी हवा, रूह-ए-अदा यानी शालीनता की आत्मा, नग़्मा-ए-साँसों मतलब साँसों का गीत, सदा-ए-हया यानी शर्म की आवाज़, अदा-ए-बयाँ मतलब बयानी अंदाज़, मरहम की मानिंद यानी मरहम जैसा,

रहमत-ए-ख़ास मतलब ख़ास रहमत या कृपा, तर्ज़-ए-फ़ना यानी फ़ना (समर्पण) का तरीका, रहबर-ए-दिल मतलब दिल का रहनुमा, मंज़र-ए-जाँ यानी आत्मा का दृश्य, सब्र-ओ-वफ़ा मतलब धैर्य और वफ़ादारी, ख़्वाब-ए-वफ़ा यानी वफ़ा का सपना, ज़ुबान-ए-जाँ मतलब आत्मा की भाषा, तदबीर-ए-जाँ यानी आत्मा की योजना या क़िस्मत, रुसवाई-ए-जाँ मतलब आत्मा की बदनामी, मीरास मतलब विरासत।