हाजी उस्मान सेठ: सारा धन मुल्क को दान दिया, किराये का मकान लिया

हाजी उस्मान सेठ, जिन्हें 'कैश बैग ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस' कहा जाता है, एक प्रसिद्ध व्यापारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म बेंगलुरु में हुआ था, और उनके पूर्वज कच्छ (गुजरात) से आए थे।स्वतंत्रता सेनानियों ने एक उद्देश्य के लिए संघर्ष किया और देश के लिए अपना प्रेम छोड़ते हुए इस दुनिया से चले गए। ऐसे ही एक व्यक्ति, जिन्हें आज की पीढ़ी भूल चुकी है, हाजी उस्मान सेठ हैं।

Author: Er. Kabir Khan B.E.(Civil Engg.) LLB, LLM

परिचय:

हाजी उस्मान सेठ, जिन्हें ‘कैश बैग ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस’ कहा जाता है, एक प्रसिद्ध व्यापारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म बेंगलुरु में हुआ था, और उनके पूर्वज कच्छ (गुजरात) से आए थे।स्वतंत्रता सेनानियों ने एक उद्देश्य के लिए संघर्ष किया और देश के लिए अपना प्रेम छोड़ते हुए इस दुनिया से चले गए। ऐसे ही एक व्यक्ति, जिन्हें आज की पीढ़ी भूल चुकी है, हाजी उस्मान सेठ हैं। उनका परिवार अब भी बेंगलुरु में रहता है, जहाँ कभी उनका परिवार सबसे अमीर माना जाता था। उनके पास लगभग 27 बंगले थे और सेंट मार्क्स रोड पर ‘इम्पीरियल टॉकीज’ थी, जो शहर की सबसे महंगी जमीन पर स्थित थी। उनके पास सेंट मार्क्स रोड के क्षेत्र में 20 एकड़ से अधिक भूमि थी।

हाजी उस्मान सेठ की पत्नी जब भी गर्भवती होती थीं, तो वे उस बंगले का नामकरण कर देते थे जहाँ बच्चे का जन्म होना होता था। यही कारण है कि हाल तक उन सभी बंगलों के पत्थर की नेमप्लेट्स पर नाम लिखा होता था जैसे याकूब विला, इब्राहीम विला, खादर विला, इकबाल विला आदि। सभी बंगले रिचमंड रोड पेट्रोल स्टेशन से लेकर आज के इंडिया गेराज तक फैले हुए थे और इन्हें “कैश बाज़ार डिपार्टमेंटल स्टोर्स” कहा जाता था।

हाजी उस्मान सेठ ने लोगों को शिक्षा देने के लिए 1921 में अपने स्टैफोर्ड हाउस (बिशप कॉटन गर्ल्स स्कूल के पास) पर इंडियन नेशनल स्कूल खोला। यह विद्यालय बंगलौर में स्थित था और इसका उद्देश्य स्थानीय बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करना था। सेठ ने अपने बच्चों को भी स्थानीय स्कूलों में पढ़ाने का निर्णय लिया, जिससे उनके समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी।

जंग ए आज़ादी में दाख़िल होना:

1919 में उस्मान सेठ ने अपने सफल व्यापार को पीछे छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का फैसला किया। वह खलीफत आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और महात्मा गांधी और अली ब्रदर्स के निकट संपर्क में आए। स्वदेशी आंदोलन के दौरान, उन्होंने अपने कैश बाजार में रखे सभी विदेशी सामानों को जला दिया, जिससे अंग्रेज सरकार को भारी गुस्सा आया और उनके व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनकी पूरी जिंदगी भारत के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित रही।

1928 में, जब वह केवल 56 वर्ष के थे, उन्होंने अत्यंत गरीबी में एक किराए के मकान में अंतिम सांस ली। उनके अंतिम यात्रा में लगभग 5 किलोमीटर लंबी भीड़ थी, जो जुम्मा मस्जिद, कमर्शियल स्ट्रीट से लेकर जयमहल पैलेस रोड के कुद्दूस साहब कब्रिस्तान तक फैली थी।

हाजी उस्मान सेठ का अपने बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक संदेश : “यदि जीना है, तो भारत के लिए जियो, और मरना है, तो भारत के लिए मरो।”

हाजी उस्मान को “कैश बैग ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस” क्यों कहा जाता है?

हाजी उस्मान सेठ एक प्रमुख व्यापारी और समाजसेवी थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अमूल्य आर्थिक सहायता देकर एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था, हाजी उस्मान सेठ ने महसूस किया कि देश को आज़ाद कराने के लिए आर्थिक सहयोग बहुत आवश्यक है। उन्होंने न केवल नैतिक रूप से स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन किया, बल्कि उनके आर्थिक संकटों को दूर करने के लिए खुलकर सहायता भी की।

हाजी उस्मान सेठ ने अपने निजी खजाने से बड़े पैमाने पर सोने के सिक्के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं, जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी, को दिए। वह चमड़े की थैलियों में सोने के सिक्के भरकर इन्हें कांग्रेस के नेताओं तक पहुँचाते थे। उनके इस उदार और साहसी कदम के कारण उन्हें “नेशनल कांग्रेस का कैश बैग” कहा जाने लगा। यह उपनाम उनकी उदारता और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता था।

उनके इस खुले समर्थन से ब्रिटिश सरकार बेहद नाराज़ हो गई। अंग्रेज़ों ने हाजी उस्मान सेठ और उनके व्यापार को निशाना बनाना शुरू कर दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी व्यावसायिक गतिविधियों का बहिष्कार किया, जिससे उनके व्यापार को भारी नुकसान हुआ। धीरे-धीरे, उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती चली गई। हालात यहाँ तक पहुँच गए कि उन्हें अपनी संपत्तियाँ बेचनी पड़ीं और कई कीमती चीज़ें गिरवी रखनी पड़ीं। इसके बावजूद, हाजी उस्मान सेठ ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और कांग्रेस को आर्थिक सहायता देना जारी रखा, ताकि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई कमजोर न पड़े और पूरा देश स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर बढ़ता रहे।

इतिहासकारों के अनुसार, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हाजी उस्मान द्वारा दान की गई कुल राशि आज के समय में लगभग 7000 करोड़ रुपये के बराबर आंकी गई है। यह उनकी देशभक्ति और त्याग का जीता-जागता उदाहरण है।

उनकी इस उदारता और बलिदान ने उन्हें एक सच्चे देशभक्त और महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अमर कर दिया।

 प्रारंभिक जीवन:

हाजी उस्मान सेठ का जन्म बेंगलुरु में हुआ था। उनके पूर्वज कच्छ (गुजरात) से आए थे। हाजी उस्मान सेठ का प्रारंभिक जीवन सामान्य था, लेकिन उनके परिवार का व्यापार में अच्छा नाम था। उनके पिता का नाम मोहम्मद सईद था और उनकी माता का नाम हज्रत फातिमा था। हाजी उस्मान सेठ का परिवार समृद्ध था और वे एक बड़े व्यापारी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। मोहम्मद सईद ने अपने बेटे हाजी उस्मान को व्यापार की दुनिया में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। हाजी उस्मान ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया।

हाजी उस्मान सेठ के सात पुत्र थे, जिनके नाम निम्नलिखित हैं:

  1. याकूब
  2. इब्राहीम
  3. खादिर
  4. यूसुफ
  5. अब्बास
  6. सईद
  7. नसीर

हाजी उस्मान सेठ का परिवार, जिसमें आज 102 सदस्य हैं, अपने दादा के बलिदानों पर गर्व करता है। उनके बच्चे अब भी उस भारत को देखने की उम्मीद रखते हैं, जिसका सपना उनके दादा और स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने देखा था।

शिक्षा:

हाजी उस्मान सेठ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बेंगलुरु में प्राप्त की। हाजी उस्मान सेठ ने अपनी शुरुआती पढ़ाई बेंगलुरु के सेंट जोसेफ हाई स्कूल में की। यह स्कूल बेंगलुरु के पुराने और जाने-माने स्कूलों में से एक है। यहाँ पर उन्होंने अच्छे माहौल में पढ़ाई की और जरूरी विषयों जैसे गणित, विज्ञान, और भाषाओं में मजबूत आधार बनाया।

सेंट जोसेफ हाई स्कूल में पढ़ते हुए, हाजी उस्मान सेठ ने न सिर्फ किताबों का ज्ञान लिया, बल्कि खेलकूद और दूसरी गतिविधियों में भी हिस्सा लिया। यहाँ के शिक्षकों ने उन्हें अनुशासन, मेहनत और ईमानदारी के मूल्य सिखाए। इस स्कूल की शिक्षा ने उनके चरित्र को मजबूत किया और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

व्यापार:

हाजी उस्मान सेठ एक स्थानीय सैन्य ठेकेदार थे, जो ब्रिटिश लोगों को सेवाएँ प्रदान करते थे, उनके जीवनशैली के अनुसार सामान आयात करते थे। उनका व्यापारिक जीवन भी उल्लेखनीय था। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में निवेश किया और अपने समय में एक सफल व्यापारी बन गए। 1919 में, ओपेरा थिएटर की सफलता से प्रेरित होकर, सैत ने रेजिडेंसी रोड पर ‘इम्पीरियल थिएटर’ शुरू किया। इसमें केवल अंग्रेजी फिल्में दिखाई जाती थीं और यह साउथ परेड के आस-पास के निवासियों के बीच काफी लोकप्रिय था।

हाजी उस्मान के स्थानीय व्यापार में शामिल प्रमुख कार्य थे:

  1. निर्माण सामग्री की आपूर्ति – ईंट, पत्थर, लकड़ी, और अन्य निर्माण सामग्रियों की बिक्री।
  2. स्थानीय निर्माण परियोजनाओं के ठेके – भवन, सड़कें, और पुल बनाने के कार्य।
  3. कारीगरों और मजदूरों को रोजगार देना – निर्माण कार्यों के लिए स्थानीय श्रमिकों की भर्ती।
  4. सैन्य और सरकारी निर्माण कार्यों में सेवाएँ – ब्रिटिश सरकार की जरूरतों के अनुसार सामग्री और सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  5. वस्त्र और रोजमर्रा की चीजों का व्यापार – लोगों की जरूरत की चीजों की बिक्री, जैसे कपड़े और घरेलू सामान।

इन सभी कार्यों ने हाजी उस्मान को एक सम्मानित और प्रभावशाली स्थानीय व्यापारी बना दिया।

‘खिलाफत वाले’ उस्मान सेठ” क्यों कहा जाता है?

हाजी उस्मान सेठ को “खिलाफत वाले’ उस्मान सेठ” के नाम से इसलिए जाना जाता था क्योंकि वे खिलाफत आंदोलन के सक्रिय समर्थक और प्रमुख योगदानकर्ता थे। खिलाफत आंदोलन 20वीं सदी के प्रारंभ में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य उस समय की ऑटोमन (उस्मानी) खिलाफत को बचाने और उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना था। यह आंदोलन खास तौर पर भारत में मुस्लिम समुदाय के बीच बहुत महत्वपूर्ण बन गया था, और इसके समर्थन में देशभर में कई गतिविधियाँ आयोजित की गई थीं।

हाजी उस्मान सेठ ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इसके लिए आर्थिक सहायता भी दी। वे उस समय के प्रमुख मुस्लिम नेताओं और धार्मिक विद्वानों के संपर्क में थे, जो खिलाफत आंदोलन को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने अपने धन, समय और संसाधनों का उपयोग करके आंदोलन को मजबूती देने का काम किया, जिससे वे अपने समुदाय में एक प्रेरणादायक व्यक्ति बन गए।

उनकी इस सक्रिय भूमिका और लगन के कारण लोग उन्हें सम्मानपूर्वक “खिलाफत वाले’ उस्मान सेठ” कहने लगे। यह उपनाम उनके योगदान और आंदोलन के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

कैश बाज़ार की शुरुआत :

कैश बाज़ार एक ऐतिहासिक और भव्य व्यापारिक केंद्र था, जो बेंगलुरु के बौवरिंग क्लब के ठीक सामने स्थित था। यह बाज़ार अपनी विशालता और विविधता के लिए जाना जाता था और एक समय में शहर के सबसे प्रमुख व्यापारिक क्षेत्रों में से एक था। इसकी शुरुआत हाजी उस्मान सेठ के दादा, यूसुफ मोहम्मद पीर ने 1800 के दशक में की थी, जब बेंगलुरु छावनी का निर्माण शुरू हो रहा था। इस व्यापारिक केंद्र को उन्होंने एक बड़े और प्रभावशाली बाज़ार के रूप में स्थापित किया, जहाँ हर तरह की वस्तुएँ उपलब्ध थीं।

कैश बाज़ार लगभग एक वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था और इसे एक प्रमुख व्यापारिक हब बनाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया था। यहाँ हर प्रकार की वस्तु, चाहे वह छोटी हो या बड़ी, उपलब्ध थी। पिन जैसी छोटी चीज़ों से लेकर कार जैसी बड़ी वस्तुएँ, सब कुछ यहाँ खरीदा जा सकता था। इसके अलावा, यहाँ विदेशी फल, सब्जियाँ, और फूल भी मिलते थे, जो स्थानीय लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। यह बाज़ार उस समय के यूरोपीय आयातित ब्रांड और उत्पादों का केंद्र था, जिससे यह आधुनिकता और विलासिता का प्रतीक बन गया था।

कैश बाज़ार की इमारत अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध थी। इसमें कुल 21 दरवाजे थे, जो लोहे की जाली से घिरे हुए बड़े बरामदे में खुलते थे। यह संरचना न केवल इमारत की सुंदरता को बढ़ाती थी, बल्कि इसे एक अद्वितीय रूप भी प्रदान करती थी। लोहे की जाली से बने बरामदे न केवल इमारत को सुरक्षा प्रदान करते थे, बल्कि गर्मियों में ठंडक भी बनाए रखते थे। इस बाज़ार का माहौल हमेशा जीवंत रहता था, और यहाँ दिनभर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी।

1900 के दशक में हाजी उस्मान सेठ को यह बाज़ार विरासत में मिला, और उन्होंने इसे और अधिक समृद्ध और आकर्षक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैश बाज़ार उस समय के व्यापार और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था, जहाँ लोग केवल सामान खरीदने ही नहीं, बल्कि समय बिताने और सामाजिक मेलजोल के लिए भी आते थे।

कुछ वर्षों बाद, कैश बाज़ार में बड़े बदलाव हुए। एक ऑटोमोबाइल कंपनी ने इस बाज़ार के कुछ हिस्सों को खरीद लिया और वहाँ एक नया प्रतिष्ठान स्थापित किया, जिसे ‘इंडिया गेराज’ के नाम से जाना जाने लगा। ‘इंडिया गेराज’ उस समय की एक प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी थी, और यह नया बदलाव बाज़ार की पुरानी चमक और व्यवसायिक महत्त्व को दर्शाता था। इसके बावजूद, कैश बाज़ार की विरासत और उसकी ऐतिहासिक पहचान हमेशा बेंगलुरु के लोगों के दिलों में बनी रही।

हाजी उस्मान सेठ किराये के मकान में निधन:

हाजी उस्मान सेठ का जीवन एक साहसी और प्रेरणादायक कहानी है। इतिहासकारों के अनुसार, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने जो आर्थिक सहायता दी, उसकी कुल राशि आज के समय में लगभग 7000 करोड़ रुपये के बराबर आंकी गई है। यह उनकी देशभक्ति और त्याग का अद्वितीय उदाहरण है।

हालांकि, उनके जीवन का यह हिस्सा बहुत कठिन था। 1928 में, जब वह केवल 56 वर्ष के थे, उन्होंने एक किराए के मकान में अंतिम सांस ली। यह उनकी जिंदगी की विडंबना को दर्शाता है कि एक व्यक्ति जिसने अपने देश के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया, वह अंतिम समय में इतनी साधारण परिस्थितियों में था।

हाजी उस्मान सेठ के अंतिम संस्कार में लगभग 5 किलोमीटर लंबी भीड़ मौजूद थी, जो जुम्मा मस्जिद, कमर्शियल स्ट्रीट से लेकर जयमहल पैलेस रोड के कुद्दूस साहब कब्रिस्तान तक फैली हुई थी। इस विशाल भीड़ ने दिखाया कि उन्हें कितनी श्रद्धा और सम्मान दिया गया था। उनके निधन ने उनके अनुयायियों और समुदाय में गहरा दुख पैदा किया, और उनकी याद में लोगों ने उन्हें एक सच्चे देशभक्त और महान नेता के रूप में याद किया।

आज भी, हाजी उस्मान का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में लोगों के दिलों में जीवित है, और उनकी विरासत हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

नेहरू ने हाजी उस्मान के परिवार को 300 एकड़ जमीन देने की पेशकश:

हाजी उस्मान सेठ का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी सहायता और बलिदान को स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने कभी नहीं भुलाया। हाजी उस्मान सेठ ने न केवल अपने धन से बल्कि अपने सिद्धांतों और नैतिकता से भी स्वतंत्रता आंदोलन में एक अनमोल योगदान दिया। उनके द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता ने कई स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया और उन्हें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद की।

आजादी के बाद, जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हाजी उस्मान सेठ के परिवार को 300 एकड़ जमीन देने की पेशकश की। यह प्रस्ताव उनके द्वारा किए गए बलिदानों और योगदान को मान्यता देने के लिए था। हालांकि, हाजी उस्मान सेठ का परिवार इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने दादा के बलिदानों का सम्मान करते हुए कोई लाभ नहीं लिया, यह दर्शाता है कि वे अपने मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे।

हाजी उस्मान सेठ को मैसूर राज्य का पहला कांग्रेस अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त था। उन्होंने जीवनभर कांग्रेस के साथ अपने संबंध को बनाए रखा। उनकी निष्ठा और समर्पण ने उन्हें पार्टी में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। वे न केवल एक व्यवसायी थे, बल्कि एक सच्चे नेता भी थे, जिन्होंने अपने समुदाय और देश की भलाई के लिए हमेशा प्रयास किए।

उनकी जिंदगी का उद्देश्य हमेशा देश की सेवा और अपने लोगों के हित में काम करना रहा। हाजी उस्मान सेठ की विरासत आज भी लोगों के दिलों में जीवित है, और उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने देश और समाज के प्रति हमेशा जागरूक रहना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर अपनी भलाई को त्यागकर दूसरों की मदद करनी चाहिए। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

निष्कर्ष:

हाजी उस्मान सेठ का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा देशभक्त वही होता है जो अपने व्यक्तिगत लाभ को त्यागकर अपने देश के लिए काम करे। उन्होंने अपने सारा धन स्वतंत्रता संग्राम के लिए दान किया, जिससे यह साबित होता है कि उन्होंने अपने देश की आज़ादी को अपने जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण माना।

उनकी आर्थिक सहायता ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया और उनके संघर्ष में मजबूती दी। हालांकि, जब उनकी जिंदगी का अंत हुआ, तो वे एक साधारण किराए के मकान में थे, लेकिन यह उनके साहस और समर्पण की कहानी को कम नहीं करता।

हाजी उस्मान सेठ की अंतिम यात्रा में शामिल हुई विशाल भीड़ ने यह दिखाया कि लोग उन्हें कितना प्यार और सम्मान देते थे। उनका योगदान आज भी हमारे दिलों में जिंदा है और वे एक महान नेता के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।

उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि वास्तविक समर्पण और त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाते। हाजी उस्मान सेठ का नाम और उनका कार्य स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा अमर रहेंगे, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेंगे।

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