हामास : इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में एक नई शक्ति

Author: Er. Kabir Khan B.E.(Civil Engg.) LLB, LLM

परिचय :

“हामास : इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में एक नई शक्ति” शीर्षक, हामास के उभरने और उसके संघर्ष में भूमिका को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष की जटिलता और इसकी गहरी ऐतिहासिक जड़ें इसे विश्व के सबसे लंबे और गंभीर संघर्षों में से एक बनाती हैं। इस संघर्ष में कई संगठनों और ताकतों की भूमिका रही है, लेकिन 1987 में हामास के गठन ने इस संघर्ष में एक नया और निर्णायक मोड़ लाया। हामास, जिसे “हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया” के नाम से भी जाना जाता है, इज़राइल के कब्जे के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध और इस्लामी शासन की स्थापना का समर्थन करने वाला एक प्रमुख संगठन है।

इसने इज़राइल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष को न केवल धार्मिक आधार पर, बल्कि एक राष्ट्रीय संघर्ष के रूप में भी प्रस्तुत किया है। यह संगठन सिर्फ एक सशस्त्र प्रतिरोध समूह ही नहीं है, बल्कि फिलिस्तीनी जनता के लिए सामाजिक और राजनीतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन गया है। गाज़ा पट्टी पर इसका नियंत्रण और उसकी राजनीति ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को और भी पेचीदा बना दिया है, जहाँ कूटनीति और युद्ध साथ-साथ चलते हैं।

इस लेख में हम इसके इतिहास, उसकी विचारधारा, और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में उसकी भूमिका को विस्तार से समझेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि कैसे हामास एक स्थानीय संगठन से एक अंतरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरा।

प्रारंभिक इतिहास: हामास का उदय और विकास

हामास का गठन और उद्देश्‍य (1987): हामास (हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया) की स्थापना 1987 में हुई थी, जो फिलिस्तीनी संघर्ष के संदर्भ में एक निर्णायक मोड़ था। इसका उदय उस समय हुआ जब पहला इंटिफ़ादा (पहला फिलीस्तीनी विद्रोह) शुरू हुआ। यह इंटिफ़ादा इज़राइल के कब्जे वाले पश्चिमी तट और गाज़ा पट्टी में फिलीस्तीनी जनता के बीच इज़राइल के सैन्य शासन और नीतियों के खिलाफ व्यापक विद्रोह था। इस इंटिफ़ादा ने फिलीस्तीनियों में राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता को प्रोत्साहित किया और इज़राइल के खिलाफ आंदोलन को और तेज कर दिया।

हामास का गठन:

हामास की स्थापना शेख अहमद यासिन और कुछ अन्य प्रमुख इस्लामी नेताओं द्वारा की गई थी, जिनमें अब्दुल अजीज अल-रंतीसी और मोहम्मद ताहिर शामिल थे। हामास को मुस्लिम ब्रदरहुड (Muslim Brotherhood) की फिलीस्तीनी शाखा के रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य इस्लामी मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित फिलीस्तीनी समाज का निर्माण करना था।

हामास ने खुद को एक इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में स्थापित किया और इसका मुख्य उद्देश्य इज़राइल के कब्जे का विरोध करना, फिलिस्तीनी क्षेत्रों को स्वतंत्र करना और एक इस्लामी राज्य की स्थापना करना था।

इंटिफ़ादा और संघर्ष:

1987 में शुरू हुआ पहला इंटिफ़ादा वह संदर्भ था जिसमें हामास ने अपने सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की। यह विद्रोह एक जन आंदोलन था, जिसमें नागरिक विरोध प्रदर्शन, हड़तालें, पत्थरबाज़ी, और इज़राइल के खिलाफ कई प्रकार के विद्रोही गतिविधियाँ शामिल थीं। हामास ने इस विद्रोह को धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर एक संगठित रूप दिया।

2000 में शुरू हुई दूसरी इंटिफ़ादा: इस दौरान, हामास ने इजराइल के खिलाफ सशस्त्र हमलों को तेज किया। इस संघर्ष ने फ़लस्तीनियों के बीच हामास के प्रभाव को बढ़ाया।

हामास की विचारधारा के अनुसार, फिलीस्तीनी भूमि पर इज़राइल का कोई वैध अधिकार नहीं है। हामास मानता है कि फिलिस्तीन एक “वक्फ” (इस्लामी संपत्ति) है, और इसे किसी भी गैर-मुस्लिम शासन को नहीं सौंपा जा सकता। इस प्रकार, हामास के संघर्ष का एक प्रमुख उद्देश्य इज़राइल को पूरी तरह से समाप्त करना है।

हामास का चार्टर (1988):

1988 में हामास ने एक आधिकारिक चार्टर जारी किया, जिसमें इज़राइल के खिलाफ उनके सशस्त्र संघर्ष और इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित एक फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना के लक्ष्य को स्पष्ट किया गया। यह चार्टर इज़राइल को एक अवैध राज्य मानता है और इसका उद्देश्य फिलीस्तीनी भूमि की “मुक्ति” को इस्लामी धर्मयुद्ध (जिहाद) के रूप में प्रस्तुत करता है। चार्टर में कहा गया कि फिलीस्तीन को कभी भी इज़राइल के साथ शांति समझौते या बातचीत के माध्यम से नहीं छोड़ा जा सकता।

 सामाजिक कल्याण नेटवर्क:

हामास ने केवल सशस्त्र संघर्ष पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, बल्कि उन्होंने फिलीस्तीनी जनता के लिए सामाजिक कल्याण सेवाओं का भी विस्तार किया। यह पहल हामास की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, जिसने संगठन को व्यापक सार्वजनिक समर्थन दिलाया।

गाज़ा और पश्चिमी तट के कई क्षेत्रों में, हामास ने अस्पताल, स्कूल, मस्जिद, और अन्य सामाजिक सेवाएं प्रदान कीं। उन्होंने गरीबों, शरणार्थियों, और वंचित वर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, और रोजगार के अवसरों का प्रबंध किया। इसके चलते हामास का जनाधार मजबूत हुआ, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ सरकारी या फिलीस्तीनी प्राधिकरण (Fatah) द्वारा दी जा रही सेवाएं अपर्याप्त थीं।

 मुस्लिम ब्रदरहुड से संबंध:

हामास के गठन के पीछे का वैचारिक आधार मुस्लिम ब्रदरहुड से निकला था, जो एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आंदोलन है, जिसका उद्देश्य इस्लामी कानून (शरिया) पर आधारित समाज की स्थापना करना है। मुस्लिम ब्रदरहुड के फिलिस्तीनी विंग के रूप में, हामास ने इज़राइल के खिलाफ संघर्ष को एक धार्मिक और राजनीतिक लड़ाई के रूप में देखा। उन्होंने फिलिस्तीनी मुद्दे को केवल एक राष्ट्रीय समस्या नहीं, बल्कि इस्लामी एकजुटता का प्रतीक माना।

मुस्लिम ब्रदरहुड ने हामास को संगठनात्मक समर्थन, विचारधारात्मक मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता दी। इसके साथ ही, हामास ने ब्रदरहुड के इस्लामी सिद्धांतों को अपनाते हुए फिलिस्तीनी समाज में धार्मिक पहचान और राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया।

सशस्त्र विंग:

1980 के दशक के अंत तक, हामास ने अपने सशस्त्र विंग “इज़्ज़ अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड” का गठन किया। इसका उद्देश्य इज़राइल के खिलाफ हमले करना और फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष को मजबूत करना था।

इज़्ज़ अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड ने इज़राइल पर रॉकेट हमलों, आत्मघाती बम विस्फोटों और छापामार युद्ध जैसी रणनीतियों को अपनाया। यह सशस्त्र विंग हामास की सैन्य क्षमताओं का प्रतीक बना और इज़राइल के साथ बार-बार के संघर्षों में हामास के प्रमुख हथियार के रूप में उभरा।

हामास का विकास और प्रभाव:

1987 में स्थापित होने के बाद, हामास ने धीरे-धीरे फिलीस्तीनी समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। उनकी इस्लामिक विचारधारा और सामाजिक सेवाओं के नेटवर्क ने उन्हें फिलीस्तीनियों के बीच एक मजबूत जनाधार प्रदान किया।

इसके अलावा, हामास का सशस्त्र संघर्ष और इज़राइल के खिलाफ उनके कड़े रुख ने उन्हें फिलीस्तीनी संघर्ष के एक प्रमुख घटक के रूप में स्थापित किया। हामास का इंटिफ़ादा के दौरान सक्रिय होना और सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों में शामिल होना उसे अन्य फिलीस्तीनी संगठनों, विशेष रूप से फतेह (Fatah) से अलग करता है, जिसने एक अधिक धर्मनिरपेक्ष और राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाया था।

1987 के बाद, हामास ने फिलिस्तीनी समाज में गहरी जड़ें जमा लीं। इसका सामाजिक कल्याण कार्य और सशस्त्र संघर्ष दोनों ने संगठन को लोकप्रिय बनाया, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ लोग इज़राइल के कब्जे और फिलीस्तीनी प्राधिकरण की कमियों से असंतुष्ट थे। हामास की इस्लामिक पहचान और इज़राइल विरोधी विचारधारा ने उसे एक स्थायी शक्ति के रूप में उभरने में मदद की, जो आज भी फिलिस्तीनी राजनीति और संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

हामास का चार्टर क्या है ?

 1988 में, हामास ने एक आधिकारिक चार्टर जारी किया, जिसे “हामास चार्टर” या “हामास का संविधान” के नाम से जाना जाता है। यह दस्तावेज संगठन के विचारधारात्मक आधार और राजनीतिक लक्ष्यों को स्पष्ट करता है। चार्टर ने हामास को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य ताकत के रूप में स्थापित किया और इसे इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया।

 मुख्य बिंदु:

इज़राइल का खंडन:

चार्टर के अनुसार, इज़राइल को एक अवैध राज्य माना गया है। हामास के अनुसार, यह राज्य इस्लामी धरती पर स्थित है और इसे किसी भी प्रकार की वैधता नहीं दी जा सकती। हामास का मानना है कि इज़राइल की स्थापना एक प्रकार का औपनिवेशिक आक्रमण है, जिसके खिलाफ हर फिलीस्तीनी नागरिक को विद्रोह करने का अधिकार है।

फिलीस्तीनी भूमि की मुक्ति:

चार्टर का एक केंद्रीय सिद्धांत है कि फिलीस्तीनी भूमि की मुक्ति केवल सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से संभव है। हामास ने इस उद्देश्य को “जिहाद” (धर्मयुद्ध) के रूप में प्रस्तुत किया, जो न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है।

शांति समझौते का खंडन:

चार्टर में यह स्पष्ट किया गया है कि फिलीस्तीनी भूमि को कभी भी इज़राइल के साथ शांति समझौते या बातचीत के माध्यम से नहीं छोड़ा जा सकता। यह विचारधारा हामास के संघर्ष को एक ऐसे आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करती है, जो कभी भी कूटनीतिक समाधान को स्वीकार नहीं करेगा।

इस्लाम की भूमिका:

चार्टर में इस्लाम को एक केंद्रीय तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो फिलीस्तीनी पहचान और संघर्ष का आधार है। हामास का मानना है कि एक इस्लामी राज्य की स्थापना आवश्यक है, जहाँ इस्लामी कानून (शरिया) का पालन किया जाएगा।

सामाजिक सेवाएँ:

हामास ने चार्टर में अपने सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का भी उल्लेख किया है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक सेवाएँ शामिल हैं। यह हामास की रणनीति का हिस्सा है, जिससे संगठन को फिलीस्तीनी जनता के बीच समर्थन प्राप्त होता है।

अन्य समूहों के प्रति दृष्टिकोण:

चार्टर में यह भी कहा गया है कि हामास अन्य फिलीस्तीनी संगठनों, जैसे कि फतेह, के साथ सहयोग नहीं करेगा यदि वे इज़राइल के साथ समझौते पर सहमत होते हैं। हामास ने खुद को उन संगठनों से अलग रखा है जो अधिक लचीला और वार्ताकार दृष्टिकोण अपनाते हैं।

चार्टर का प्रभाव:

हामास का चार्टर न केवल संगठन के लिए एक वैचारिक दस्तावेज था, बल्कि यह इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में उसकी रणनीति को भी निर्धारित करता है। इस चार्टर ने हामास को एक स्पष्ट दिशा दी, जिसने इसे न केवल फिलीस्तीनी राजनीति में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दिलाई।

चार्टर के बाद, हामास ने एक सशस्त्र प्रतिरोध समूह के रूप में अपनी पहचान को और मजबूत किया। इसके सशस्त्र विंग, इज़्ज़ अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड, ने इज़राइल के खिलाफ कई हमले किए, जो चार्टर में निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ने का प्रयास था।

चार्टर में बदलाव की आवश्यकता:

हालांकि 1988 का चार्टर हामास की नींव का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसके कुछ बिंदुओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद और आलोचना भी उत्पन्न की है। कई विश्लेषकों का मानना है कि हामास को अपनी रणनीति और विचारधारा में बदलाव करने की आवश्यकता है ताकि वह फिलीस्तीनी लोगों की समस्याओं का समाधान कर सके और इज़राइल के साथ शांति की दिशा में आगे बढ़ सके।

2021 में, हामास ने एक नया राजनीतिक दस्तावेज़ जारी किया, जिसमें संगठन की प्राथमिकताओं और लक्ष्यों को फिर से परिभाषित करने का प्रयास किया गया। इस दस्तावेज़ ने अधिक लचीलेपन और राजनीतिक समाधान की संभावना की ओर संकेत किया, लेकिन इसके मूल चार्टर में निहित सिद्धांत अभी भी हामास की पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा बने हुए हैं।

ओस्लो समझौता (1993) क्या है ?

पृष्ठभूमि

1990 के दशक की शुरुआत में, इज़राइल और फ़लिस्तीनियों के बीच एक शांति प्रक्रिया की आवश्यकता महसूस की गई। इस दौरान फ़लस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) के नेता यासिर अराफात और इज़राइल के प्रधानमंत्री इजरायल कामिनी के बीच कई अस्थायी वार्ताएं हुईं। इन वार्ताओं का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापित करना और फ़लिस्तीनी स्वायत्तता को बढ़ावा देना था।

ओस्लो समझौते का उद्देश्य

1993 में ओस्लो समझौते के तहत, इज़राइल और PLO ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके मुख्य उद्देश्य थे:

  • फ़लस्तीनियों को स्वायत्तता देना, विशेषकर गाज़ा और पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों में।
  • दोनों पक्षों के बीच एक समझौतापूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में बढ़ना।
  • भविष्य में स्थायी शांति के लिए आधार तैयार करना।

समझौते की मुख्य बातें

  • स्वायत्तता: समझौते के अनुसार, गाज़ा और पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों में फ़लिस्तीनी प्रशासन को स्वायत्तता दी गई।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन: यह समझौता एक चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत लागू होने वाला था, जिसमें पहले चरण में स्थानीय चुनाव और स्वायत्तता के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया था।
  • सुरक्षा सहयोग: इज़राइल और PLO के बीच सुरक्षा सहयोग स्थापित किया गया, जिससे दोनों पक्षों की सुरक्षा चिंताओं का समाधान किया जा सके।

हामास का विरोध

  • धोखा समझना: हामास, जो इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन था, ने ओस्लो समझौते का vehemently विरोध किया। उनका मानना था कि यह समझौता फ़लस्तीनियों के अधिकारों को कमजोर करेगा और इस्राइल के साथ कोई भी समझौता नाजायज़ है।
  • सशस्त्र संघर्ष का समर्थन: हामास ने अपनी नीति के तहत सशस्त्र संघर्ष को जारी रखा और इज़राइल के खिलाफ आत्मघाती बम हमलों और अन्य हिंसक गतिविधियों का संचालन किया।
  • राजनीतिक प्रभाव: हामास का यह विरोध और हिंसा ने उन्हें फ़लस्तीनी समाज में लोकप्रियता दिलाई, जबकि PLO और फ़तह की स्थिति कमजोर हुई।

समझौते का परिणाम

ओस्लो समझौता प्रारंभ में सकारात्मक संकेत माना गया था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कुछ समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं:

  • सुरक्षा के मुद्दे: समझौते के बाद भी, इज़राइल और फ़लिस्तीनियों के बीच हिंसा और संघर्ष जारी रहा।
  • आर्थिक स्थिति: फ़लस्तीनियों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ, और कई क्षेत्रों में असुरक्षा बढ़ी।
  • विभाजन: ओस्लो समझौते के बाद, फ़तह और हामास के बीच विवाद और गहरा हुआ, जिससे फ़लस्तीन में राजनीतिक विभाजन उत्पन्न हुआ।

ओस्लो समझौता 1993 में इज़राइल और फ़लस्तीन के बीच एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने शांति प्रक्रिया की शुरुआत की। हालांकि, हामास के विरोध और अन्य राजनीतिक जटिलताओं के कारण यह समझौता पूरी तरह से सफल नहीं हो सका। आज भी, ओस्लो समझौते के परिणामों का प्रभाव इज़राइल-फ़लिस्तीन संघर्ष पर देखा जा सकता है, जो अब भी एक जटिल और स्थायी समाधान की प्रतीक्षा कर रहा है।

हामास का नेतृत्व:

हामास का नेतृत्व समय-समय पर बदलता रहा है, और संगठन के भीतर विभिन्न नेताओं ने इसकी दिशा और रणनीति को आकार दिया है। संगठन के नेतृत्व में दो प्रमुख तत्व हैं: राजनीतिक नेतृत्व और सशस्त्र नेतृत्व

1. शेख अहमद यासिन (Sheikh Ahmed Yassin):

शेख अहमद यासिन (Sheikh Ahmed Yassin) फ़लस्तीन के एक प्रमुख इस्लामी नेता और हमास (Hamas) संगठन के संस्थापक थे। उनका जन्म 1937 में फ़लस्तीन के अस्कालान (Ashkelon) के पास हुआ था, जो अब इस्राइल का हिस्सा है। उन्होंने इस्लामिक विचारधारा को अपनाया और फ़लस्तीनी स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रारंभिक जीवन:

शेख अहमद यासिन एक गरीब परिवार से थे और कम उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया। परिवार के संघर्ष के बावजूद, उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। एक दुर्घटना के कारण वे किशोरावस्था में ही स्थायी रूप से लकवाग्रस्त हो गए, जिससे उनकी शारीरिक स्थिति कमजोर हो गई और वे व्हीलचेयर पर निर्भर हो गए।

शिक्षा और इस्लामिक विचारधारा:

उन्होंने काहिरा (मिस्र) में इस्लामिक धर्मशास्त्र का अध्ययन किया। यहां उन्होंने मुस्लिम ब्रदरहुड (Muslim Brotherhood) के विचारों से प्रेरणा ली, जिसने इस्लामी समाज और राजनीति में उनकी गहरी रुचि को बढ़ावा दिया। फ़लस्तीनी संघर्ष को इस्लामी दृष्टिकोण से देखने का उनका दृष्टिकोण यहीं से उभरा।

हमास का गठन:

1987 में, शेख अहमद यासिन ने हमास (Hamas) का गठन किया, जो फ़लस्तीन में इस्लामिक रेसिस्टेंस मूवमेंट के रूप में काम करता है। हमास का उद्देश्य फ़लस्तीन को इस्राइली कब्जे से मुक्त कराना था और इसके लिए उन्होंने सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया। हमास का गठन पहली इंटीफादा (Palestinian uprising) के समय हुआ, जो फ़लस्तीनियों का इस्राइली कब्जे के खिलाफ विद्रोह था।

संघर्ष और गिरफ्तारी:

शेख यासिन का जीवन संघर्ष और विवादों से भरा रहा। इस्राइली सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया और 1989 में उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई, लेकिन 1997 में जॉर्डन और इस्राइल के बीच कैदी विनिमय के तहत उन्हें रिहा कर दिया गया।

हत्या:

शेख अहमद यासिन पर कई बार हमले हुए, लेकिन 22 मार्च 2004 को इस्राइल ने उन्हें गाज़ा सिटी में एक हवाई हमले में मार दिया। उनकी हत्या के बाद फ़लस्तीन में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और उनकी मौत ने इस्लामिक दुनिया में गहरा असर डाला।

विरासत:

शेख अहमद यासिन को एक प्रेरणास्रोत के रूप में देखा जाता है, खासकर फ़लस्तीनी स्वतंत्रता संग्राम के समर्थकों के बीच। उनके जीवन ने इस्लामी विचारधारा और फ़लस्तीन के राष्ट्रीय संघर्ष को गहराई से प्रभावित किया है। उनके नेतृत्व में हमास एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सशस्त्र संगठन बना, जो आज भी फ़लस्तीनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है।

उनकी कहानी एक ऐसी व्यक्ति की है, जिसने गंभीर शारीरिक बाधाओं के बावजूद अपने विचारों और संघर्षों के माध्यम से एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया।

2. अब्दुल अजीज अल-रंतीसी (Abdel Aziz al-Rantisi):

अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी (Abdel Aziz al-Rantisi) फ़लस्तीन के एक प्रमुख राजनीतिक और इस्लामी नेता थे, जिन्होंने हमास (Hamas) संगठन के सह-संस्थापक के रूप में अपनी भूमिका निभाई। शेख अहमद यासिन के बाद वे हमास के एक प्रमुख नेता बने और फ़लस्तीनी स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में जाने गए।

प्रारंभिक जीवन:

अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी का जन्म 23 अक्टूबर 1947 को फ़लस्तीन के यिबना (Yibna) शहर में हुआ था। 1948 के अरब-इस्राइली युद्ध के बाद उनका परिवार शरणार्थी बन गया और उन्हें गाज़ा पट्टी (Gaza Strip) में खान यूनुस शरणार्थी शिविर में शरण लेनी पड़ी। बचपन से ही वे फ़लस्तीन के संघर्ष और दमन के गवाह बने, जिसने उनके विचारों को गहराई से प्रभावित किया।

शिक्षा और चिकित्सा पेशा:

रंतीसी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाज़ा में पूरी की और इसके बाद मिस्र की एलेक्जेंड्रिया यूनिवर्सिटी (Alexandria University) से बाल चिकित्सा (Pediatrics) में डिग्री प्राप्त की। डॉक्टर होने के साथ-साथ, वे इस्लामिक विचारधारा के प्रति भी गहरे समर्पित थे। मिस्र में शिक्षा के दौरान ही वे मुस्लिम ब्रदरहुड के संपर्क में आए और इस्लामिक राजनीति में रुचि लेने लगे।

हमास का गठन:

1987 में, शेख अहमद यासिन के साथ मिलकर अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी ने हमास की स्थापना की। हमास का उद्देश्य फ़लस्तीनी संघर्ष को इस्लामी दृष्टिकोण से लड़ना था और इस्राइली कब्जे के खिलाफ प्रतिरोध करना था। रंतीसी हमास के शुरुआती नेताओं में से एक थे और उन्होंने संगठन को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस्राइली संघर्ष और गिरफ्तारी:

हमास के गठन के बाद, रंतीसी ने इस्राइल के खिलाफ सक्रिय रूप से संघर्ष किया और कई बार जेल गए। इस्राइली सरकार ने उन्हें पहली बार 1988 में गिरफ्तार किया और उन्हें कई साल जेल में बिताने पड़े। जेल में रहते हुए भी उन्होंने हमास के संचालन में भाग लिया और संगठन की नीतियों को दिशा दी।

शेख अहमद यासिन की हत्या और नेतृत्व:

2004 में शेख अहमद यासिन की हत्या के बाद, अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी को हमास का नया नेता घोषित किया गया। हालांकि, यह पद उन्होंने लंबे समय तक नहीं संभाला। वे हमास के विचारों को फैलाने और सशस्त्र संघर्ष को समर्थन देने के पक्षधर थे।

हत्या:

शेख अहमद यासिन की तरह ही, अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी भी इस्राइली हमलों के निशाने पर थे। 17 अप्रैल 2004 को, हमास का नेतृत्व संभालने के कुछ ही समय बाद, इस्राइली सेना ने गाज़ा सिटी में एक हवाई हमला करके उनकी हत्या कर दी। उनके साथ उनकी कार में बैठे उनके अंगरक्षक और बेटे की भी मृत्यु हो गई।

विरासत:

अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी को फ़लस्तीनी जनता के लिए एक मजबूत, निडर नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने इस्राइली कब्जे के खिलाफ संघर्ष को अपना जीवन समर्पित किया। उनके नेतृत्व ने हमास को फ़लस्तीन की स्वतंत्रता के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी विचारधारा और संघर्ष की भावना हमास और फ़लस्तीनी स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करती रही है।

रंतीसी का जीवन एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण है, जिसने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा की, बल्कि अपने देश की आजादी के लिए सशक्त रूप से संघर्ष किया। उनकी भूमिका फ़लस्तीनी संघर्ष में हमेशा महत्वपूर्ण मानी जाएगी।

3. खालिद मशाल (Khaled Mashal):

खालिद मशाल फ़लस्तीन के एक प्रमुख राजनेता हैं, जिन्होंने हमास (Hamas) संगठन के नेता और अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।वह हमास के वैश्विक चेहरे और संगठन के राजनीतिक विंग के नेता के रूप में जाने जाते हैं। खालिद मशाल का जीवन फ़लस्तीन के संघर्ष और हमास की विचारधारा के प्रति समर्पण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

प्रारंभिक जीवन:

खालिद मशाल का जन्म 28 मई 1956 को फ़लस्तीन के पश्चिमी तट (West Bank) के सिल्वाद (Silwad) गांव में हुआ था, जो रामल्लाह के पास स्थित है। 1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद, उनके परिवार को फ़लस्तीन छोड़ना पड़ा और वे कुवैत में शरणार्थी बनकर रहने लगे। कुवैत में, मशाल ने अपनी शिक्षा पूरी की और इस्लामी राजनीति में गहरी रुचि ली।

शिक्षा और राजनीतिक विचारधारा:

खालिद मशाल ने कुवैत यूनिवर्सिटी से भौतिकी (Physics) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। कुवैत में अपने छात्र जीवन के दौरान ही वे इस्लामी विचारधारा से प्रभावित हुए और मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ जुड़े। 1970 और 1980 के दशकों के दौरान, फ़लस्तीनी स्वतंत्रता संग्राम में इस्लामी संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान था। इसी समय खालिद मशाल हमास की विचारधारा से प्रभावित हुए और उसे अपना लिया।

हमास में शामिल होना:

1987 में जब हमास की स्थापना हुई, तो खालिद मशाल संगठन से जुड़ गए और इसके राजनीतिक विंग में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। उनका मुख्य काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमास की नीतियों और संघर्ष को प्रस्तुत करना और संगठन के लिए समर्थन जुटाना था। उन्होंने हमास को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस्राइल द्वारा हत्या का प्रयास:

1997 में, खालिद मशाल पर इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad) द्वारा हत्या का प्रयास किया गया था। मोसाद के एजेंट्स ने जॉर्डन की राजधानी अम्मान में उन्हें जहर देने की कोशिश की। यह हत्या का प्रयास असफल रहा, क्योंकि तत्कालीन जॉर्डन के राजा हुसैन ने इस्राइल पर दबाव डाला और मशाल को बचाने के लिए प्रतिरक्षी (antidote) उपलब्ध कराया गया। इस घटना के बाद, हमास के कई प्रमुख कैदियों को इस्राइल ने रिहा किया, जिनमें शेख अहमद यासिन भी शामिल थे।

नेतृत्व और हमास का विस्तार:

2004 में शेख अहमद यासिन और अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी की हत्या के बाद, खालिद मशाल हमास के राजनीतिक विंग के प्रमुख नेता बने। उन्होंने हमास को एक राजनीतिक संगठन के रूप में मजबूत किया और 2006 के फ़लस्तीनी चुनावों में हमास की जीत में प्रमुख भूमिका निभाई। यह जीत फ़तह (Fatah) के साथ हमास के संघर्ष का एक बड़ा कारण बनी और फ़लस्तीनी क्षेत्रों में राजनीतिक विभाजन को बढ़ावा दिया।

निर्वासन और विदेश में जीवन:

खालिद मशाल का अधिकतर जीवन निर्वासन में बीता है। 1990 के दशक में जॉर्डन में रहने के बाद उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया गया, और इसके बाद उन्होंने सीरिया में शरण ली। सीरिया में रहते हुए, मशाल ने हमास के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को मजबूत किया और संगठन की सैन्य और राजनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद की। हालांकि, 2012 में सीरिया के गृहयुद्ध के दौरान उन्होंने सीरिया छोड़ दिया और कतर में रहना शुरू किया।

हमास और खालिद मशाल की भूमिका:

मशाल हमास की राजनीतिक शाखा का नेतृत्व करते रहे और संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक वैध राजनीतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उन्होंने फ़लस्तीनी संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया और फ़लस्तीनी जनता के अधिकारों के लिए समर्थन जुटाया। मशाल ने बार-बार यह दावा किया कि हमास फ़लस्तीनी भूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है, और उन्होंने हमास के राजनीतिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर काम किया।

विचारधारा और दृष्टिकोण:

खालिद मशाल इस्लामी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध हैं और फ़लस्तीन की मुक्ति को धार्मिक और राष्ट्रीय संघर्ष दोनों के रूप में देखते हैं। हालांकि, उन्होंने कई मौकों पर राजनयिक समाधान की भी वकालत की है, जिसमें 1967 की सीमाओं के तहत फ़लस्तीन के राज्य की स्थापना शामिल है। उनके नेतृत्व में, हमास ने सशस्त्र संघर्ष को जारी रखा, लेकिन साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वार्ता के लिए भी तैयार रहने का संकेत दिया।

विरासत और प्रभाव:

खालिद मशाल फ़लस्तीनी संघर्ष के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने हमास को एक वैश्विक संगठन के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन निर्वासन, संघर्ष और कूटनीति का मिश्रण रहा है, और वे हमास के संघर्षशील और राजनीतिक दोनों चेहरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका नेतृत्व फ़लस्तीनियों के बीच एकता और संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, और उनकी भूमिका फ़लस्तीनी राजनीति और हमास के भविष्य में महत्वपूर्ण बनी रहेगी।

4. इस्माइल हनिया (Ismail Haniyeh):

इस्माइल हनिया फ़लस्तीन के एक प्रमुख राजनीतिक नेता थे और हमास (Hamas) संगठन के शीर्ष पदाधिकारी रहे। वह हमास के राजनीतिक विंग के वरिष्ठ नेता और गाज़ा पट्टी के पूर्व प्रधानमंत्री भी थे। हनिया फ़लस्तीनी राजनीति और इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे, और उन्हें फ़लस्तीनी संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।

प्रारंभिक जीवन:

इस्माइल हनिया का जन्म 29 जनवरी 1962 को गाज़ा पट्टी के शरणार्थी शिविर में हुआ था। उनका परिवार 1948 के अरब-इस्राइली युद्ध के दौरान शरणार्थी बन गया था, और वे गाज़ा के अल-शाती शरणार्थी शिविर में बस गए। हनिया का बचपन फ़लस्तीनियों के संघर्ष और कठिनाइयों के बीच बीता, जिसने उनके राजनीतिक और सामाजिक विचारों को आकार दिया।

शिक्षा:

इस्माइल हनिया ने गाज़ा इस्लामिक यूनिवर्सिटी से अरबी साहित्य में स्नातक किया। अपनी शिक्षा के दौरान, वे इस्लामिक छात्र आंदोलन से जुड़े और हमास का हिस्सा बने। विश्वविद्यालय के दिनों में ही उन्होंने फ़लस्तीन की आज़ादी और इस्लामी राजनीति के लिए अपने दृष्टिकोण को गहरा किया, जिससे वे हमास के एक महत्वपूर्ण नेता बने।

हमास में भूमिका:

1987 में हमास की स्थापना के समय से ही हनिया संगठन में सक्रिय थे। उन्होंने हमास के राजनीतिक विंग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1992 में इस्राइल द्वारा निर्वासन के दौरान भी संगठन के नेतृत्व को बनाए रखा। उनके नेतृत्व में हमास की नीतियाँ मज़बूत हुईं।

प्रधानमंत्री पद और नेतृत्व:

2006 में फ़लस्तीनी चुनावों में हमास की जीत के बाद इस्माइल हनिया फ़लस्तीनी अथॉरिटी के प्रधानमंत्री बने। यह जीत फ़लस्तीनी राजनीति में बदलाव का कारण बनी, जिससे हमास और फ़तह के बीच सत्ता संघर्ष उत्पन्न हुआ। 2007 में यह संघर्ष गाज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के विभाजन में बदल गया, जिसमें गाज़ा पर हमास का नियंत्रण हो गया।

इस्राइल और अंतरराष्ट्रीय स्थिति:

  • इस्माइल हनिया के नेतृत्व में हमास ने इस्राइल के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध को जारी रखा, जिसके चलते दोनों पक्षों के बीच कई बार संघर्ष हुए। हनिया ने फ़लस्तीनी मुक्ति के लिए लगातार संघर्ष किया और इस्राइल के कब्जे का विरोध किया। हालांकि, उनके नेतृत्व के दौरान हमास को कई पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में देखा गया।

शहादत:

31 जुलाई 2024 को तेहरान, ईरान में इस्माइल हनिया को इस्राइली हमले के दौरान शहीद किया गया। हनिया पहले भी इस्राइली हमलों के निशाने पर थे, लेकिन इस बार हमले में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत ने फ़लस्तीनी संघर्ष में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा।

विरासत और प्रभाव:

इस्माइल हनिया को फ़लस्तीनी राजनीति और हमास के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक माना जाता है। उनके नेतृत्व में हमास ने गाज़ा पर अपनी पकड़ मजबूत की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख राजनीतिक और सैन्य ताकत के रूप में उभरा। उनकी मृत्यु ने फ़लस्तीनी संघर्ष को और गहरा किया, और उन्हें फ़लस्तीनियों के संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।

हनिया का जीवन और उनका संघर्ष फ़लस्तीनी इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और उनकी शहादत ने उनके संघर्ष को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।

5. याह्या सिनवार (Yahya Sinwar):

याह्या सिनवार (Yahya Sinwar) फ़लस्तीन के एक प्रमुख राजनीतिक और सैन्य नेता थे, जो हमास (Hamas) संगठन के शीर्ष पदों में से एक पर थे। उन्होंने गाज़ा पट्टी में हमास के सैन्य शाखा के प्रमुख के रूप में और बाद में संगठन के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। याह्या सिनवार को हमास के सशस्त्र प्रतिरोध का एक प्रमुख प्रतीक माना जाता था और उन्हें फ़लस्तीनी राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में देखा जाता था।

प्रारंभिक जीवन:

याह्या सिनवार का जन्म 1962 में गाज़ा में हुआ था। उनका परिवार फ़लस्तीन के शरणार्थियों में से था, जो 1948 के अरब-इस्राइली युद्ध के दौरान अपने घर से भागने के लिए मजबूर हुए थे। उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय गाज़ा पट्टी में बिताया, जहां उन्होंने फ़लस्तीनी संघर्ष और कठिनाइयों का सामना किया।

शिक्षा और सक्रियता:

सिनवार ने गाज़ा के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की और बाद में गाज़ा इस्लामिक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। उनकी छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने इस्लामिक राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और हमास से जुड़ गए।

हमास में भूमिका:

“याह्या सिनवार 1980 के दशक में हमास के गठन के दौरान से ही संगठन में सक्रिय रूप से जुड़े रहे। उन्हें इज्ज़ेद्दीन अल-क़साम ब्रिगेड, जो संगठन की सैन्य शाखा है, में एक प्रमुख भूमिका सौंपी गई।” उनके नेतृत्व में, हमास ने इस्राइल के खिलाफ कई सशस्त्र प्रतिरोध अभियानों का संचालन किया।

1991 में, सिनवार को इस्राइल ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें लंबे समय तक जेल में रखा गया। 2011 में, वे एक सुरक्षा सौदे के तहत रिहा हुए, जिससे उन्होंने फिर से हमास में अपनी गतिविधियों को शुरू किया।

नेतृत्व और राजनीतिक भूमिका:

2017 में, याह्या सिनवार को हमास के राजनीतिक ब्यूरो का प्रमुख चुना गया। उनके नेतृत्व में, हमास ने गाज़ा पट्टी में अपनी पकड़ को मजबूत किया और संगठन की रणनीतियों को नया दिशा देने का प्रयास किया। उन्होंने हमास की राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाए और गाज़ा में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

इस्राइल के साथ संघर्ष:

याह्या सिनवार के नेतृत्व में, हमास ने इस्राइल के खिलाफ कई सैन्य अभियानों का संचालन किया। वे अक्सर फ़लस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष की आवश्यकता को बताते थे। उनका मानना था कि फ़लस्तीनी भूमि की मुक्ति के लिए सशस्त्र प्रतिरोध महत्वपूर्ण है।

विचारधारा और दृष्टिकोण:

याह्या सिनवार की विचारधारा इस्लामी प्रतिरोध और फ़लस्तीनी स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थी। उन्होंने हमेशा यह स्पष्ट किया कि फ़लस्तीनी लोगों को अपनी भूमि वापस मिलनी चाहिए और इस्राइली कब्जे के खिलाफ संघर्ष जारी रहना चाहिए।

विरासत और प्रभाव:

याह्या सिनवार को फ़लस्तीनी राजनीति और हमास के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक माना जाता था। उनके नेतृत्व में, हमास ने गाज़ा में अपनी स्थिति को मजबूत किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख राजनीतिक और सैन्य ताकत के रूप में उभरा। उनकी भूमिका ने फ़लस्तीनियों के संघर्ष को नया आयाम दिया और उन्हें फ़लस्तीन के नागरिकों के अधिकारों का प्रतीक समझा जाता था।

याह्या सिनवार का जीवन और उनका संघर्ष फ़लस्तीनी जनता के अधिकारों, स्वतंत्रता और संघर्ष का प्रतीक है, और वे फ़लस्तीनी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए थे।

शहादत:

हाल ही में, 16 अक्टूबर 2024 को, उनकी मौत गाज़ा में इस्राइल के हमले के दौरान हुई। याह्या सिनवार की शहादत ने फ़लस्तीनी समुदाय में गहरा शोक और आक्रोश फैलाया। उनके समर्थकों का मानना था कि उनकी कमी से हमास को एक महत्वपूर्ण नेता और प्रेरणास्त्रोत का नुकसान हुआ है। याह्या सिनवार के संघर्ष और विचारधारा ने उन्हें फ़लस्तीनी प्रतिरोध का प्रतीक बना दिया था, और उनकी शहादत ने फ़लस्तीनियों की एकता और संघर्ष के प्रति प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है। उनकी याद में कई प्रदर्शन और श्रद्धांजलियाँ आयोजित की गईं, जिसमें लोगों ने उनकी राजनीतिक विरासत को याद किया और फ़लस्तीन के अधिकारों के लिए लड़ने की कसम खाई।

हामास की वर्तमान स्थिति क्या है ?

हाल के संघर्ष (2021)

2021 में, इज़राइल और हामास के बीच एक बड़ा और विनाशकारी संघर्ष हुआ। इस संघर्ष की शुरुआत उस समय हुई जब इजरायल ने पूर्वी येरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की, जिससे स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई। इस घटना के बाद, हामास ने इजरायल पर रॉकेट हमले शुरू कर दिए, जिसके जवाब में इज़राइल ने गाज़ा में हवाई हमले किए।

  • संघर्ष का विस्तार: यह संघर्ष 11 दिनों तक चला और इसमें दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इजरायल के हवाई हमलों में गाज़ा में कई इमारतें ध्वस्त हो गईं, और नागरिकों के जीवन को भी खतरा पैदा हुआ। हामास ने अपनी ओर से बड़ी संख्या में रॉकेट दागे, जिससे इज़राइल के शहरों में अलार्म और सुरक्षा चिंताएं बढ़ गईं।
  • नागरिक जीवन पर प्रभाव: संघर्ष ने गाज़ा में मानवीय संकट को और बढ़ा दिया। अस्पतालों पर दबाव पड़ा, और भोजन और पानी की कमी के कारण आम लोगों की जीवन स्थिति गंभीर हो गई। युनाइटेड नेशंस और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस स्थिति की निंदा की और शांति की अपील की।

राजनीतिक जटिलताएँ

हामास अब भी गाज़ा पट्टी पर शासन कर रहा है, जबकि पश्चिमी तट पर फ़तह पार्टी का प्रभुत्व है। यह विभाजन न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी फ़लस्तीनियों के बीच अलगाव को बढ़ा रहा है।

  • अंतरराष्ट्रीय संबंध: हामास का शासन और उसके साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जटिलता ने स्थिति को और मुश्किल बना दिया है। कई पश्चिमी देशों ने हामास को आतंकवादी संगठन के रूप में मान्यता दी है, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय सहायता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। दूसरी ओर, हामास को ईरान और अन्य देशों से समर्थन प्राप्त है, जो इसे और मजबूती प्रदान करता है।
  • आंतरिक राजनीति: हामास और फ़तह के बीच शक्ति संघर्ष ने फ़लस्तीन की राजनीति को स्थिर नहीं रखा है। दोनों गुटों के बीच मतभेदों के कारण चुनावों की प्रक्रिया भी बाधित हुई है, जिससे फ़लस्तीनियों के लिए एक संयुक्त राजनीतिक रणनीति विकसित करना मुश्किल हो गया है।

अक्टूबर 2024 में स्थिति

अक्टूबर 2024 में, इज़राइल और हामास के बीच फिर से एक बड़ा संघर्ष शुरू हुआ है। इस बार भी संघर्ष की शुरुआत उन घटनाओं से हुई जो क्षेत्र में तनाव बढ़ा रही थीं।

  • हालात की गंभीरता: नवीनतम संघर्ष में इजरायल ने हवाई हमले तेज कर दिए हैं, जबकि हामास ने अपने प्रतिरोध की रणनीतियों को और बढ़ाया है। यह स्थिति न केवल गाज़ा में बल्कि पूरे क्षेत्र में अस्थिरता को बढ़ा रही है।
  • नागरिक जनसंख्या पर प्रभाव: हालात की गंभीरता के कारण आम नागरिकों की ज़िंदगी प्रभावित हो रही है। गाज़ा में अस्पतालों पर दबाव बढ़ रहा है और आवश्यक वस्तुओं की किल्लत हो रही है।

वर्तमान स्थिति इज़राइल-फ़लस्तीन संघर्ष की जटिलता और स्थायित्व की कमी को दर्शाती है। जबकि हामास गाज़ा पट्टी पर शासन कर रहा है, राजनीतिक विभाजन और संघर्ष की निरंतरता ने क्षेत्र की स्थिति को और जटिल बना दिया है। सामुदायिक हिंसा, मानवीय संकट, और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक दबाव के कारण यह संघर्ष अभी खत्म होता नहीं दिखता। इसके परिणामस्वरूप, फ़लस्तीनियों की स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण होती जा रही है।

निष्कर्ष:

हामास ने इज़राइल-फ़लस्तीन संघर्ष में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद भूमिका निभाई है। अपने अस्तित्व के समय से, इस संगठन ने फ़लस्तीनी प्रतिरोध का प्रतीक बनकर उभरा है, जिसने राजनीतिक और सैन्य दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। 1987 में इसकी स्थापना के बाद से, हामास ने अपने सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से न केवल इज़राइल के खिलाफ प्रतिरोध किया है, बल्कि फ़लस्तीनी राजनीतिक परिदृश्य को भी पुनर्परिभाषित किया है।

हालांकि, हामास के नेतृत्व में गाज़ा पट्टी में शासन और इज़राइल के साथ संघर्ष ने न केवल फ़लस्तीनियों के बीच असमानता और विभाजन को बढ़ाया है, बल्कि क्षेत्र में मानवीय संकट को भी गहरा किया है। संघर्ष के हालिया दौर, जैसे कि 2021 और अक्टूबर 2024 में होने वाले युद्ध, यह दर्शाते हैं कि स्थिति कितनी जटिल और अस्थिर है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हामास की मान्यता और स्थिति विवादित रही है। जबकि कुछ देशों ने इसे आतंकवादी संगठन के रूप में देखा है, वहीं अन्य ने इसे फ़लस्तीनी लोगों के अधिकारों का प्रतिनिधि माना है। ऐसे में, हामास की भविष्य की भूमिका और इज़राइल-फ़लस्तीन संघर्ष के समाधान की दिशा में क्या कदम उठाए जाएंगे, यह समय के साथ स्पष्ट होगा।

इस प्रकार, हामास की शक्ति और प्रभाव ने इज़राइल-फ़लिस्तीन संघर्ष को एक नई दिशा दी है, जिससे न केवल राजनीतिक और सैन्य वातावरण प्रभावित हो रहा है, बल्कि फ़लस्तीनी जनता की जीवन स्थिति और संघर्ष के समाधान के प्रयास भी चुनौती में हैं। केवल एक समावेशी और बातचीत पर आधारित दृष्टिकोण ही इस लंबे संघर्ष के स्थायी समाधान की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *