Spread the love

तआर्रुफ़:

“ग़ज़ल: ज़ुल्म-ओ-सबर” एक ऐसी रूहानी और प्रेरणादायक ग़ज़ल है जो इंसाफ़ और सब्र की ताक़त को बयान करती है। इसमें मज़लूमों की तड़प, झूठे दावों और जालिमों की नापाकियत के खिलाफ़ सच की जीत का संदेश है। हर शेर में इतिहास और इंसानियत के साथ जुड़े सबक़ को बड़ी नफ़ासत और मार्मिक अंदाज़ में पेश किया गया है। ग़ज़ल में खून, आँसू, आह और हक़ का प्रतीक रूपों में तसव्वुरों का इस्तेमाल किया गया है, जो पाठक के दिल पर गहरा असर छोड़ते हैं। मक़ता में शायर ने अपने नाम ‘कबीर’ के साथ सब्र और उम्मीद का पैग़ाम पेश किया है।

ग़ज़ल: ज़ुल्म-ओ-सबर

मतला
क्यों खुश हो मज़लूमों की तड़प से,
क़ातिल का निशाँ भी मिट के रहेगा।

नफ़रत का असर नहीं चलेगा बहुत देर,
इन्साफ़ का दरिया भी उठ के रहेगा।

तारीख़ गवाह है कि हर दौर के बाद,
हर झूठ का पर्दा भी हट के रहेगा।

जिस ख़ून से सींचा गया मिट्टी का दामन,
वो ख़ून चिराग़ों में जलता रहेगा।

फ़िर क़ैद में तन्हा न रहेगा कोई दिल,
फ़िर हक़ का परचम लहर के रहेगा।

दिल से निकली आह का असर देख लेना,
झूठा दावानामा भी झुक के रहेगा।

मज़लूम की आँखों से टपकते हुए आँसू,
हर ज़ुल्म के पर्दे को उठा के रहेगा।

इतिहास लिखेगा कि सितमगर का सफ़र,
झूठा शोहरत भी मिट के रहेगा।

जो सोचते हैं ताक़त है अमर उनकी,
वो नाम भी मिट्टी में मिल के रहेगा।

मायूस न हो ऐ दिल-ए-मज़लूम कभी,
सब्र का फ़ल आख़िर मिल के रहेगा।

वो सोचते हैं ख़ामोशी है हमारी कमज़ोरी,
हमारा इरादा भी दिख के रहेगा।

हर दौर के ज़ालिम को मिला है अंजाम,
ये क़ायदा-ए-दुनिया बदल के रहेगा।

कितनी भी अंधेरी हो ये रात-ए-सितम,
सुब्ह का सितारा भी चमक के रहेगा।

मक़ता:
‘कबीर ‘ ये ग़ज़ल सब्र का पैग़ाम है,
तेरा नाम भी दिल में बस के रहेगा।

ख़ातिमा:

“ज़ुल्म-ओ-सबर” ग़ज़ल का ख़ातिमा यही कहता है कि चाहे कितनी भी तंगहाली, ज़ुल्म या झूठ का सामना क्यों न हो, इंसान का सब्र और हक़ की आवाज़ हमेशा बुलंद रहती है। मज़लूमों की तड़प, आह, आँसू और खून की ताक़त अंततः हर झूठ और जालिम को परास्त कर देती है। इतिहास इसका गवाह है कि असल ताक़त केवल इंसाफ़ और सब्र में निहित है। ग़ज़ल का मक़ता शायर ‘कबीर’ के नाम से इसे व्यक्तिगत और प्रेरक बनाता है, और पाठक के दिल में उम्मीद और साहस की लौ जलाता है। यह ग़ज़ल हर दौर के इंसान के लिए हौसला और सुकून का संदेश देती है।

मुश्किल उर्दू शब्दों के अर्थ आसान हिंदी में:

रूहानी = आध्यात्मिक, प्रेरणादायक = उत्साह बढ़ाने वाला, इंसाफ़ = न्याय, सब्र = धैर्य, मज़लूम = अत्याचारित, तड़प = पीड़ा, झूठे दावे = गलत दावे, जालिम = अत्याचारी, नापाकियत = बुराई, सच की जीत = सच की सफलता, नफ़ासत = नाज़ुकता, मार्मिक = दिल को छू लेने वाला, तसव्वुर = कल्पना, ख़ून = रक्त, आँसू = आँसू, आह = कराह, हक़ = अधिकार, मक़ता = अंतिम दो शेर में शायर का नाम, मुकम्मल = पूरा, ख़ातिमा = समाप्ति, तंगहाली = कठिनाई, झूठ = फरेब, परास्त = हरा, सुब्ह = सुबह, सितारा = तारा, आवाज़ बुलंद = आवाज़ ऊँची और प्रभावशाली, हौसला = साहस, सुकून = चैन, मक़ता शायर = शायर का नाम जो ग़ज़ल के अंत में आता है।