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तआर्रुफ़:

नग़्मा-ए-फ़िरदौस” ग़ज़ल इश्क़, तन्हाई और रूहानी जज़्बात का एक हसीन मरकज़ है। ‘नग़्मा-ए-फ़िरदौस’ में शायर ने आँखों में बसे ख़्वाबों से लेकर दिल की वीरानियों तक हर एहसास को नफ़ासत से बयाँ किया है। रात की ख़ामोशी, चाँद की उदास लकीरें, और दिल की साज़िशें—सब मिलकर इस ग़ज़ल को रूहानी तासीर बख़्शते हैं। हर शेर मोहब्बत की तलाश, वफ़ा की ताबीर और तन्हाई की कसक को नए अंदाज़ में पेश करता है। इसमें इल्तिज़ा है, उम्मीद है और यादों की वो ख़ुशबू है जो सदियों तक बाक़ी रहती है। शायर “कबीर” ने अपने अल्फ़ाज़ों में इश्क़ की दास्तान को ऐसा रंग दिया है कि हर पाठक इसमें अपने दिल की परछाईं देख सकता है।

ग़ज़ल- नग़्मा-ए-फ़िरदौस

मतला

मैंने जो देखा था तेरी आँखों में इक जहाँ,
अब उसी ख़्वाब को तन्हाइयों में आबाद कर।

रात ने सुन ली है किसी पैग़ाम की आहट,
सुब्ह से पहले ही सितारों का इज़हार कर।
चाँद की पेशानी पे कुछ उदास लकीरें हैं,
इनकी ताबीर को मेरी वफ़ा से हमवार कर।

हर साँस इक साज़िश है रौशनी के ख़िलाफ़,
दिल के अंधेरों को मिरे नाम से बहला कर।
सदियों से वीरान पड़ा है दिल का मकाँ,
इक लौ जला, कोई हसरत वहाँ दोबारा भर।

तूफ़ान-ए-इल्तिजा लेकर चला था मैं दर-ब-दर,
अब कह रही है रूह कहीं अपना क़रार कर।
मिट्टी में भी सौंप दे अपनी मोहब्बत की दास्ताँ,
शायद कोई कली इसे फिर से अश्कबार कर।

पलकों पे कुछ ख़्वाब अभी भी ठहरे हुए हैं,
इनको हवा-ए-इश्क़ में फिर से शुमार कर।
यूँ ही नहीं बुझते ये जलते हुए दीयों के ख़्वाब,
इनमें मोहब्बत का कोई सिलसिला शुमार कर।

मक़ता:

कबीर’ इस सफ़र में न मंज़िल मिली, न ठिकाना,
जिस राह पे चलने का हुक्म था, उसी पे गुज़ार कर।
सदियों तलक रह जाएगी तेरी याद की महक,
दिल की किताब में इस नाम को बार-बार कर।

ख़ातमा:

ग़ज़ल- नग़्मा-ए-फ़िरदौस” का ख़ातिमा मोहब्बत की उस तलाश पर है जहाँ सफ़र लम्बा है लेकिन मंज़िल अब भी दूर है। इसमें रूह की तड़प और दिल की वीरानी को ऐसे लफ़्ज़ मिले हैं जो मोहब्बत को अमर बना देते हैं। शायर ने ख़्वाबों की लौ, यादों की महक और वफ़ा की रोशनी को ग़ज़ल के हर शेर में बुना है। मक़ते में “कबीर” ने ज़िंदगी की उस हक़ीक़त को बयाँ किया है जहाँ रास्ते तो बहुत हैं मगर हुक्म उसी राह पर चलने का है जो दिल और रूह की गवाही देती है। यह ग़ज़ल मोहब्बत के हर पहलू को अपनी नज़ाकत और गहराई से छूती है और आख़िर में पाठक के दिल पर स्थायी असर छोड़ जाती है।

मुश्किल अल्फ़ाज़ के आसान हिन्दी मतलब:

नग़्मा-ए-फ़िरदौस = जन्नत का गीत, मरकज़ = केंद्र, नफ़ासत = नज़ाकत/कोमलता, रूहानी = आत्मिक/दिल से जुड़ा, तासीर = असर/प्रभाव, ताबीर = मतलब/व्याख्या, हमवार = आसान/सीधा, साज़िश = चाल/योजना, वीरान = सूना/ख़ाली, मकाँ = घर/जगह, इल्तिज़ा = प्रार्थना/गुज़ारिश, क़रार = सुकून/चैन, अश्कबार = आँसुओं से भरा, हवा-ए-इश्क़ = मोहब्बत की हवा, सिलसिला = क्रम/जुड़ाव, मक़ता = ग़ज़ल का आख़िरी शेर, गुज़ार = गुज़ारना/बिताना, तलक़ = तक, नज़ाकत = कोमलता/नर्मी