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तआर्रुफ़:

“सादगी का इंक़लाब” एक ऐसी शायरी है जो ज़िंदगी की असलियत और इंसानी फ़ितरत को सादगी की चादर में लपेटकर बयान करती है। इसमें शायर की ख़ामोशी, अदब, फ़क़्र, वफ़ा, और हुनर का बेहतरीन संगम है। हर शेर एक एहसास, एक तजुर्बा और एक सोच का आईना है जो ज़िंदगी की सख़्तियों और रूह की परवाज़ को बयान करता है। ‘कबीर’ की कलम से निकली ये ग़ज़ल उन लोगों के लिए है जो दिखावे से दूर, तसव्वुर, तहज़ीब और तहक़्क़ुक़ को समझते हैं। ये सिर्फ़ अल्फ़ाज़ का खेल नहीं, बल्कि एक ख़ामोश बग़ावत है — जो चीख़ती नहीं, मगर असर छोड़ती है। यह ग़ज़ल सादगी को इनक़लाब बनाने की एक पुरअसर कोशिश है।

ग़ज़ल: “सादगी का इंक़लाब”

हमने ओढ़ ली है सादगी की चादर जनाब,
पर हुनर की रोशनी अब भी बेहिसाब है।

हर एक बात में हमको ज़ुबाँ की ज़रूरत नहीं,
हमारी ख़ामोशी में भी जवाब है।-1

जिन्हें समझा था आईना ज़िंदगी का हमने,
वही बोले — ये चेहरा साया-ए-नक़ाब है।-2

हमने टूट कर भी अपनी पहचान नहीं खोई,
क्योंकि हमारी फ़ितरत में इताब है।-3

वो समझते रहे हमें फक़त मिट्टी का पुतला,
उन्हें क्या ख़बर कि इसमें भी लावा-ए-अहतराम है।-4

ख़ामोश हैं तो लोग समझते हैं ग़लत,
कौन बतलाए कि ये सोच का हिसाब है।-5

हमने चलना सीखा है ठोकरों से यारो,
हर निशान-ए-ज़ख़्म अब ताज-ओ-नक़्श-ए-नायाब है।-6

बहुत लोग आए जो तौलने लगे हमारा हुनर,
उन्हें क्या पता कि ये बाज़ार नहीं, फ़क़्र-ए-हिजाब है।-7

सादगी को हमने अपना गहना-ए-जाँ बना लिया,
क्योंकि दिखावे की दुनिया आग़ोश-ए-अज़ाब है।-8

तअल्लुक़ निभाना हमें आता है हर हाल में,
क्योंकि हमारी रगों में वफ़ा की किताब है।-9

हमने बुझते चिराग़ों से पाया ये हुनर-ए-हयात,
कि आख़िरी लम्हे तक रौशनी हुस्न-ए-लाजवाब है।-10

गर्दिश-ए-वक़्त ने कई बार गिराया ज़मीन पर,
मगर रूह की उड़ान में आज भी नफ़ासत का हिसाब है।-11

हमने न छेड़ी कोई जंग-ओ-फ़साद कभी,
मगर हमारी ख़ामुशी भी एक इंक़लाब है।-12

वो जो कहते थे हमें बेअसर लफ़्ज़ों का शायर,
आज उन्हीं को हर मिसरा, हुस्न-ए-नायाब है।-13

मक़ता:

कबीर’ की ख़ामोशी को हल्क़ा न जानिए,
यह चुप भी कभी-कभी पूरा इंक़लाब है।

ख़त्मा:

“सादगी का इंक़लाब” ग़ज़ल सिर्फ़ एक अल्फ़ाज़ की रचना नहीं, बल्कि सोच का एक सलीक़ा है — जहां हर मिसरा तहज़ीब, तजुर्बा और तअल्लुक़ का गवाह है। इस ग़ज़ल की रूह में वो फ़लसफ़ा है जो शोर से नहीं, बल्कि ख़ामोशी से असर करता है। यह उन लोगों के लिए है जो ज़िंदगी के शोर में भी सुकून ढूंढते हैं, और उन लम्हों को समझते हैं जो लफ़्ज़ों से नहीं, एहसास से बयान होते हैं। ‘कबीर’ की शायरी का ये रंग बताता है कि सादगी महज़ एक सिफ़त नहीं, बल्कि इंक़लाब की पहली सीढ़ी हो सकती है। अगर आपकी रूह भी सुकून, हुस्न और हयात के तलाश में है, तो यह ग़ज़ल आपके दिल की ज़बान बन सकती है।

उर्दू अल्फ़ाज़ के आसान हिंदी अर्थ:

सादगी – सरलता, इंक़लाब – क्रांति, जनाब – श्रीमान, हुनर – कला/काबिलियत, बेहिसाब – अनगिनत, ज़ुबाँ – भाषा, ख़ामोशी – चुप्पी, आईना – दर्पण, साया-ए-नक़ाब – नक़ाब की छाया, फ़ितरत – स्वभाव, इताब – सख़्ती/आत्मगौरव, फक़त – सिर्फ़, लावा-ए-अहतराम – इज़्ज़त का ज्वाला, निशान-ए-ज़ख़्म – घाव का निशान, ताज-ओ-नक़्श-ए-नायाब – बेमिसाल मुकुट व डिज़ाइन, फ़क़्र-ए-हिजाब – पर्दे की गरिमा, गहना-ए-जाँ – आत्मा का आभूषण, आग़ोश-ए-अज़ाब – दुखों की गोद, तअल्लुक़ – रिश्ता, वफ़ा – निष्ठा, हुनर-ए-हयात – जीवन की कला, हुस्न-ए-लाजवाब – अद्वितीय सुंदरता, गर्दिश-ए-वक़्त – समय की चाल, नफ़ासत – नज़ाकत/कोमलता, जंग-ओ-फ़साद – लड़ाई-झगड़ा, मिसरा – शेर की पंक्ति, हुस्न-ए-नायाब – दुर्लभ सुंदरता, हल्क़ा – साधारण, फ़लसफ़ा – दर्शन/सोच, हयात – जीवन, तहज़ीब – संस्कृति, तहक़्क़ुक़ – विवेक/जांच, तसव्वुर – कल्पना, अज़ाब – पीड़ा।