“हक़ और अमल की बात”: एक ग़ज़ल
📘 तआर्रुफ़: “हक़ और अमल की बात” एक ऐसी ग़ज़ल है जो इस दौर के दोहरे मयार, मज़हब के दिखावे, और ख़ालिस इंसानियत के गुम होते उसूलों पर गहरा सवाल…
📘 तआर्रुफ़: “हक़ और अमल की बात” एक ऐसी ग़ज़ल है जो इस दौर के दोहरे मयार, मज़हब के दिखावे, और ख़ालिस इंसानियत के गुम होते उसूलों पर गहरा सवाल…