नूर-ए-दुआ: एक नज़्म
तआर्रुफ़: “नज़्म – नूर-ए-दुआ” इंसानी रूह की पाक तलाश और रब्ब से उसकी गहरी मुहब्बत का आइना है। इसमें दुआओं की रौशनी, सब्र की गर्माहट और मोहब्बत की नज़ाकत को…
तआर्रुफ़: “नज़्म – नूर-ए-दुआ” इंसानी रूह की पाक तलाश और रब्ब से उसकी गहरी मुहब्बत का आइना है। इसमें दुआओं की रौशनी, सब्र की गर्माहट और मोहब्बत की नज़ाकत को…
🖋️ तआर्रुफ़ (प्रस्तावना): “ज़ुल्म की रवानी” एक दर्द से भरी ग़ज़ल है जो आज के समाज में फैले ज़ुल्म, अन्याय और मज़हबी तंगदिली को बयां करती है। हर शेर एक…
तआर्रुफ़: यह ग़ज़ल “ख़ामोश इंक़िलाब” उस बेआवाज़ मगर असरदार जद्द-ओ-जहद का बयान है जो एक तहज़ीब, एक क़ौम, और एक सोच ने हर ज़ुल्म, तशद्दुद और साज़िश के मुक़ाबिल में…