ख़ामोश इंक़िलाब: एक ग़ज़ल

तआर्रुफ़: यह ग़ज़ल “ख़ामोश इंक़िलाब” उस बेआवाज़ मगर असरदार जद्द-ओ-जहद का बयान है जो एक तहज़ीब, एक क़ौम, और एक सोच ने हर ज़ुल्म, तशद्दुद और साज़िश के मुक़ाबिल में…