रूह की पुकार: एक ग़ज़ल

तआर्रुफ़: ग़ज़ल: रूह की पुकार एक रूहानी और इंसानियत से भरपूर ग़ज़ल है। इसमें लेखक ने बदलते वक़्त, रिश्तों, मोहब्बत और इंसानियत के महत्व को बड़ी नफ़ासत से बयां किया…

ख़ामोश जज़्बात: एक ग़ज़ल

🖋️ तआर्रुफ़ (प्रस्तावना) “ख़ामोश जज़्बात” एक समकालीन चेतना से लबरेज़ ग़ज़ल है, जो समाज की उन परतों को उघाड़ती है जो बाहर से शांत मगर भीतर से विद्रोही हैं। यह…

ज़ुल्म की रवानी: एक ग़ज़ल

🖋️ तआर्रुफ़ (प्रस्तावना): “ज़ुल्म की रवानी” एक दर्द से भरी ग़ज़ल है जो आज के समाज में फैले ज़ुल्म, अन्याय और मज़हबी तंगदिली को बयां करती है। हर शेर एक…

साज़िशों के साये में: एक ग़ज़ल

🖋️ तआर्रुफ़ (प्रस्तावना): “साज़िशों के साये में” एक समकालीन और जज़्बाती ग़ज़ल है जो समाज के टूटते ताने-बाने, मज़हबी साज़िशों, और इंसानियत के ख़िलाफ़ हो रहे जुल्मों को शायरी की…

सोज़-ए-नवा: एक ग़ज़ल

🖋️ तआर्रुफ़: “सोज़-ए-नवा” एक रूहानी ग़ज़ल है जो वफ़ा, मोहब्बत, तहज़ीब और इश्क़ की पाकीज़गी को अल्फ़ाज़ की सदा में ढालती है। इसमें हर शेर एक सच्चे जज़्बे की तर्जुमानी…

“रौशनी की तलाश”: एक ग़ज़ल

तआर्रुफ़: रौशनी की तलाश” एक ऐसी ग़ज़ल है जो दिलों के अंधेरों को मोहब्बत, तहज़ीब और इंसानियत की रौशनी से रौशन करने की कोशिश करती है। यह शायरी सिर्फ़ जज़्बातों…

“सादगी का इंक़लाब”: एक ग़ज़ल

तआर्रुफ़: “सादगी का इंक़लाब” एक ऐसी शायरी है जो ज़िंदगी की असलियत और इंसानी फ़ितरत को सादगी की चादर में लपेटकर बयान करती है। इसमें शायर की ख़ामोशी, अदब, फ़क़्र,…

ख़ामोश इंक़िलाब: एक ग़ज़ल

तआर्रुफ़: यह ग़ज़ल “ख़ामोश इंक़िलाब” उस बेआवाज़ मगर असरदार जद्द-ओ-जहद का बयान है जो एक तहज़ीब, एक क़ौम, और एक सोच ने हर ज़ुल्म, तशद्दुद और साज़िश के मुक़ाबिल में…

तलाश-ए-गुल-वतन: एक ग़ज़ल

ताअर्रुफ़: “तलाश-ए-गुल-वतन” सिर्फ एक ग़ज़ल नहीं, बल्कि एक तहज़ीबयाफ़्ता चीख़ है — उस शायर की जो अपने वतन की उजड़ी हुई सूरत से ग़मगीन भी है और बेदार भी। हर…

ज़ुल्म की वीरानी

ज़ुल्म की वीरानी पर ग़ज़ल – ग़ज़ल: “ज़ुल्म की वीरानी को ग़म-ए-दिलख्वे ना दे” ज़न्नत-ए-कश्मीर को ज़ुल्म-ए-सियाह का सितम-ए-सहे ना दे, बेगुनाहों के ख़ून से फ़र्द-ए-ख़ुदा को ग़म-ए-दिलख्वे ना दे।…