तआर्रुफ़:
ग़ज़ल: रूह की पुकार एक रूहानी और इंसानियत से भरपूर ग़ज़ल है। इसमें लेखक ने बदलते वक़्त, रिश्तों, मोहब्बत और इंसानियत के महत्व को बड़ी नफ़ासत से बयां किया है। हर मिसरा जीवन की सीख, सच्चाई, संतोष और इबादत की राह दिखाता है। यह ग़ज़ल पाठक को यह एहसास दिलाती है कि दुनिया की भीड़ और लालच में खो जाने के बजाय रूह की पवित्रता, इंसानियत, क़नाअत और सच्चाई को हमेशा बनाए रखना चाहिए। दुश्मनी और झूठ के बीच भी अदब और सच्चाई का पालन करना जीवन की असली पहचान है। इश्क़ और मक़सद-ए-ज़िन्दगी में सुकून और अरमान बनाए रखना आवश्यक है।
ग़ज़ल: रूह की पुकार
मतला:
बदलते वक़्त में रिश्तों में जान रख,
अपनी पाक रूह से दूर हैवान रख।
दिल की सच्चाई को आईना बना,
हर झूठे चेहरे पे एक पहचान रख।
मोहब्बत की ज़मीं को ना तू रौंद दे,
हर क़दम पे इबादत का अरमान रख।
दुनिया की भीड़ में गुम ना हो ए दोस्त,
दिल में इंसानियत का निशान रख।
लालच के समंदर से दूर रह सदा,
क़नाअत को ही अपनी पहचान रख।
मक़सद-ए-ज़िन्दगी में गुम मत हो ,
रूह की चाह में हर अरमान रख।
दुनिया तेरा इम्तिहान लेगी हर रोज़,
सच्चाई को अपनी पहचान रख।
इश्क़ की राह में काँटे हज़ारों सही,
मगर दिल में सुकून-ए-जहाँ रख।
दुश्मनी में भी अदब की रविश रख,
तू हर हाल में खुद पे एहसान रख।
क़यामत से पहले सुधर जा ऐ इंसान,
अपने अन्दर खुदा की पहचान रख।
मक़ता:
कबीर कहता है — रूह की महक रख,
ज़िन्दगी में सदा इंसानियत का मान रख।
ख़ातिमा:
इस ग़ज़ल का मक़सद पाठक को यह याद दिलाना है कि ज़िन्दगी केवल सांसों का सिलसिला नहीं, बल्कि इंसानियत और रूह की पुकार का एहसास है। हर इंसान को अपने अंदर खुदा की पहचान, दिल में सुकून, रिश्तों में ईमानदारी और हर हाल में तहज़ीब बनाए रखना चाहिए। लालच, झूठ और दुनिया की भीड़ से दूर रहना और संतोष, इबादत, मोहब्बत और सच्चाई को जीवन का हिस्सा बनाना जरूरी है। मक़ता में कबीर साहब की सीख इस ग़ज़ल का सार प्रस्तुत करती है कि रूह की महक और इंसानियत का मान बनाए रखना ही असली सफलता और सच्चे इंसान बनने का रास्ता है।
कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ आसान हिंदी में:
रूहानी = आत्मिक / आध्यात्मिक, इंसानियत = मानवता, नफ़ासत = नाज़ुक और सुंदरता, पाक = पवित्र, हैवान = बर्बर / निर्दयी, आईना = प्रतिबिंब / झलक, ज़मीं = जमीन / क्षेत्र, रौंद देना = दबा देना / नुकसान पहुँचाना, अरमान = इच्छा / ख्वाहिश, निशान = चिन्ह / संकेत, क़नाअत = संतोष / संतुष्टि, मक़सद-ए-ज़िन्दगी = जीवन का उद्देश्य, इम्तिहान = परीक्षा / कसौटी, सुकून-ए-जहाँ = दुनिया में शांति / मन की शांति, रविश = तरीका / ढंग, एहसान = भलाई / उपकार, खुदा = भगवान / ईश्वर, महक = खुशबू / असर, मान = आदर / प्रतिष्ठा
