Spread the love

तआर्रुफ़:

“सफ़र-ए-मौत” एक ग़ज़ल है जो ज़िन्दगी, मौत और इंसानी भावनाओं की गहराई को बयान करती है। इसमें लेखक ने मृत्यु के पास आने पर इंसान की मानसिक स्थिति, तन्हाई, दर्द और अधूरी मोहब्बत को उजागर किया है। ग़ज़ल के हर मिसरे में ग़म, एहसास और रूहानी तड़प का असर है। मतला में मौत के पास आने पर मंज़र बदल जाने और जीवन में अधूरी तसल्ली का जिक्र है। मिसरा-ए-सानी में ज़ख़्म, खामोशी, रिश्तों की बदलती सच्चाई और फ़ना के सफ़र का रोशन चित्रण है। यह ग़ज़ल इंसान को अपने अंदर झाँकने और ज़िन्दगी के असली अर्थ को समझने का अवसर देती है।

ग़ज़ल: सफ़र-ए-मौत

मतला
मौत जब पास हो, मंज़र बदल जाते हैं,
लोग ज़िन्दा तो रहते हैं, मगर जीते नहीं।

ज़ख़्म दिल के जो गहरे हों, भरते नहीं,
आँखें भीगी हैं मगर अश्क गिरते नहीं।

ज़िक्र उनका जहाँ भी हुआ बस वहीं,
रूह जलती है मगर दर्द कहते नहीं।

अब मोहब्बत में वो ताजगी भी नहीं,
लोग इकरार तो करते हैं, निभाते नहीं।

ज़िन्दगी की दुआ माँगते-मांगते,
साँसें चलीं, मगर कभी जीते नहीं।

रात ढलती रही, नींद आती नहीं,
ख्वाब आँखों में सजते हैं, मगर जीते नहीं।

साँस चलती है, मगर तसल्ली कहाँ,
हम जो हँसते हैं, सच में जीते नहीं।

मौत आई तो जैसे करम हो गया,
अब एहसास भी पल में बदलते नहीं।

सफ़र-ए-दर्द में कोई हमराही न था,
हम थके भी तो पल भर ठहरते नहीं।

वक़्त ने कैसी तदबीर की है अजब,
अब तो अपने भी अपने लगते नहीं।

तेरी ख़ामोशी अब बोलती जा रही,
हम सवालों से आगे बढ़ते नहीं।

अब न रंजिश, न उल्फ़त का कोई असर,
मोहब्बत जताते हैं, मगर निभाते नहीं।

मक़ता:

क़बीर अब फ़ना का सफ़र तय हुआ,
लोग कहते हैं ज़िन्दा, पर सच में जीते नहीं।

ख़ातिमा:

इस ग़ज़ल का मक़सद इंसानी भावनाओं, दर्द और मृत्यु के सामने इंसानी असहायता को बयान करना है। लेखक ने बड़े नज़ाकत और संवेदनशीलता से यह दिखाया है कि कैसे इंसान ज़िन्दा होने के बावजूद जीता नहीं। रिश्तों की दूरी, मोहब्बत का अधूरापन, खामोशी और ज़ख़्मों की गहराई ग़ज़ल को रूहानी और फ़लसफ़ी आयाम देती है। मक़ता में फ़ना का सफ़र और असली ज़िन्दगी की हक़ीक़त को उकेरा गया है। यह ग़ज़ल पाठक को आत्मनिरीक्षण और जीवन की नाजुकता को महसूस करने के लिए प्रेरित करती है। हर मिसरा एक नया एहसास देता है और ग़ज़ल के अंत में फ़ना और रहस्य की अनुभूति होती है।

🌿 कठिन उर्दू शब्द और आसान हिंदी अर्थ

ग़ज़ल – शायरी का एक रूप, भावपूर्ण शेरों की श्रृंखला, सफ़र-ए-मौत – मौत का सफ़र, जीवन से रूह का अलविदा, मंज़र – दृश्य, हालात, स्थिति, अधूरी मोहब्बत – पूरी न हुई प्यार की भावना, रूहानी – आत्मिक, आध्यात्मिक, दिल और आत्मा से जुड़ा, तड़प – बेचैनी, दर्द, अंदर का जलन, मतला – ग़ज़ल का पहला शेर, मिसरा-ए-सानी – ग़ज़ल का दूसरा शेर जो मतले से जुड़ा हो, इकरार – स्वीकार करना, मान लेना, प्यार का इज़हार, तसल्ली – सुकून, राहत, दिल को शांति, फ़ना – खुदी या अहंकार का खत्म होना, आत्मा का विलीन होना, सफर-ए-दर्द – दुख का सफ़र, दर्द भरे अनुभव, हमराही – साथी, सहयात्री, तदबीर – योजना, चाल, परिस्थिति को संभालने का तरीका, अजब – अजीब, अनोखा, हैरतअंगेज़, ख़ामोशी – चुप्पी, मौन, बिना बोले हालात, उल्फ़त – प्यार, मोहब्बत, असर – प्रभाव, असर, परिणाम, हक़ीक़त – सच्चाई, वास्तविकता, नाजुकता – संवेदनशीलता, कोमलता